
—विनय कुमार विनायक
बापू तेरे नाम बड़े काम के,
मिल जाते हैं काम बड़े आराम से!
बापू तेरी खादी बड़े नाम की,
मिल जाती नौकरी बड़ी शान की!
बापू तेरे नाम की डिग्री,
एम. ए. एल. एल. बी. से भी बड़ी!
बापू तेरी खादी जो पहन ले,
उनको मिलते खाकी संतरी रुतबेवाले!
ओ खादी के कुर्ते पहननेवालो,
तेरे क्या कहने, अंग्रेजी बूटों को जो
छूट नहीं थी,वो छूट तुम्हें मिली थी,
जो तुम पहने थे गुलामी के दौर में!
ओ खादी के कुर्ते पहननेवाले,
तेरे क्या कहने, तुम खाकी वर्दी, लाल टोपी,
पहननेवाले के हो हिफाजती सुरक्षित गहने!
देश को आजाद करनेवाले जो शहीद हुए
उन्हें नसीब कहा थी, सफेद रंग की खादी!
रंग गेरुआ को, अपने खून से रंग देनेवाले
जो थे, उनके रक्त को पचा पाने की शक्ति
नहीं थी,गांधी की झक-झक करती खादी में!
केशरिया बाना जिन्हें है पसंद वे सफेदपोश
कदापि कभी नहीं हो सकते खूनी चोलावाले,
देश धर्म पर मिटने वाले कभी नहीं पहनते
गांधी की महंगी बड़प्पन वाली सफेद खादी!
उन्हें प्रिय मां की धानी चुनरिया के
पवित्र आंचल की कोर, केशरिया लाल रंग की!
पिता का अंगोछा सिर पे बन जाए जो कफनी!
खादी कुर्ता, खादी धोती सदा से राजनीति करती,
जहां राजनीति नहीं होती है कुर्सियों वाली
वहां सुर्ख खादी पहली पसंद होती नहीं क्रांतिवीरों की!
राम की पहली पसंद थी, टस-टस लाल भगवा रंग ही,
भगवान राम हर रिश्ते को मर्यादित निर्वाह करनेवाले
वीतरागी गृहस्थ थे, सूर्य कूलभूषण उगते-डूबते सूर्य के
भगवा कासाय रंग के वीरता के प्रतीक धर्म ध्वजधारी!
भगवान कृष्ण की पहली और आखिरी पसंद रही थी,
पीली सरसों फूलों जैसी हल्दी रंग की मांगलिक धोती!
भगवान कृष्ण थे शीतल पूनम की चंदा जैसे सोमवंशी,
उनके नाम स्मरण से हर शुभकर्म में सफलता मिलती!
उनके मुखारविंद से निसृत गीता भारतवर्ष की है निधि!
दस सिख गुरुओं के गुरूर तो यह भगवा रंग ही,
आजादी के कुंआरे, रण बांकुरे कमसिन वीरों की
पहली व आखिरी पसंद थी चोला बासंती रंग की!
लाल, कासाय,भगवा, गेरुआ,पीली, हल्दी,केशरिया,
बासंती पहचान है स्वधर्म-संस्कृति, अस्मिता की!
—विनय कुमार विनायक