
—विनय कुमार विनायक
धर्म और संस्कृति अलग-अलग चीज है,
दो व्यक्ति का धर्म परिस्थितिवश एक हो सकता है,
लेकिन संस्कृति एक नही हो सकती है!
हो सकता है कोई व्यक्तिवादी धर्म ग्रहण के पूर्व
तुम्हें या तुम्हारे पूर्वजों को भयंकर यातना दी गई हो
तुम्हारी संस्कृति को बहुत दबाई-सताई गई हो!
बहुत दबाए सताए जाने के बाद मजबूरी वश ही
तुम्हारे पूर्वजों ने कोई व्यक्तिवादी धर्म ग्रहण किए हों
तो ऐसे भाड़े के, गुलामी के धर्म को त्याग दो!
जल्द से जल्द त्याग दो ऐसे खूंखार धर्म को
अपने मृत अतृप्त सताए गए पूर्वजों के सम्मान में!
यदि तुम्हारे मृत पूर्वज
धर्म परिवर्तन के पूर्व थे सहज सनातन धर्म के
तो निश्चय ही उन्होंने खुशी-खुशी नहीं
भयंकर यातना के बाद नए धर्म स्वीकार किए होंगे!
अगर तुम्हारी संस्कृति है भारतीय तो निश्चय ही
तुम्हें विदेशी आक्रांताओं से भयंकर पीड़ा मिली होगी!
ऐसी में जबतक विदेशी धर्म के सुर में सुर मिलाओगे
तबतक तुम्हारे आचरण से
तुम्हारे पूर्वजों की आत्मा कल्पित होती रहेगी!
पता नहीं कोई एकेश्वर खुदा है कि नहीं खुदा जाने,
किन्तु हर धर्म सम्प्रदाय के व्यक्ति के
अपने-अपने पूर्वज तो होते ही,वो भी पूरे विकार के साथ
दुखी आत्मा वो भी निर्विकार नही!
आत्मा की पुकार तो सुनिए,आत्मा की चीत्कार तो सुनिए,
अपने पूर्व धर्म संस्कृति के ईश्वर की अवमानना खेल नही,
कोई मजाक नही होना चाहिए अपने पूर्वजों के ईश्वर से!
अपने पूर्वजों के ईश्वर की पूजा ना करो,मगर सम्मान दो,
कृतघ्न ना बनो विदेशी धर्म संस्कृति को अपनाकर
यही होगी अपने दुखी पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि!
सिर्फ समान धर्म के कारण
असमान संस्कृति के व्यक्ति, देश, धर्म का समर्थन ना करो!
ऐसा आचरण क्यों दिखलाना
जिससे देश की राष्ट्रीय नीति, विदेशी दोस्ती पर ठेस पहुंचे!
—विनय कुमार विनायक