—विनय कुमार विनायक
धर्म सिखाने की चीज नहीं
धर्म कभी सिखाया नहीं जा सकता
मगर धर्म को सिखा दिया जाता
उनके द्वारा जिसने धर्म नहीं सीखा
ईश्वर खुदा को नहीं जाना परखा!
धर्म दिखाने की चीज नहीं
धर्म कभी दिखाया नहीं जा सकता
मगर धर्म को दिखा दिया जाता
मंदिर मस्जिद गिरजाघर में
उनके द्वारा जिसने धर्म नहीं देखा!
हमसे कहा जाता ईश्वर खुदा रब है
जबकि कहने वालों ने खुद
ईश्वर खुदा से साक्षात्कार नहीं किया
धर्म कोई वस्तु नहीं जिसको दिखाकर
विशेष ज्ञान दिया जा सकता!
धर्म और ईश्वर है आंतरिक अनुभूति
जिसका अंतःकरण में अनुभव किया जाता!
हमें किसी ने कहा ईश्वर का अस्तित्व है
और हमने उनके कहे को मान लिया
हमें किसी ने पूजा नमाज प्रार्थना के लिए
घंटों समय बिताना सिखा दिया!
अगर कोई पूजा नमाज प्रार्थना में
आठ पहर पांच वक्त समय बिताया करते
तो धर्म मजहब के नाम गुलाम हो जाते
पठन पाठन जीविका में समय नहीं दे पाते!
ऐसे में उद्यमहीन दीन मलीन होकर
मुश्किल से जीवन यापन करते
शिक्षा स्वास्थ्य स्वाबलंबन जीवन में
चौतरफा विकास से वंचित हो जाते!
तुम्हें सिखाया गया पशुबलि
और कुर्बानी जैसे धार्मिक कर्मकांड को
मगर जीव जन्तुओं की हत्या करते
तुम्हारी रुह कांप नहीं जाती है क्या?
तुम दुखी नहीं हो जाते हो
जीव जन्तुओं को दुखाते सताते क्या?
धर्म सम्प्रदाय जाति नस्ली घृणा से
दिल में वितृष्णा नहीं होती है क्या?
अगर हां तो यही धर्म का मर्म है
जो मानव के अंत:करण से आते
बिना किसी के बताए सिखाए दिखाए
त्याग करो ऐसे आरोपित ज्ञान को
जो मनुष्य को पाखंडी बनाता हो!
आदमी हो आदमी की तरह
सोचो विचारो तर्क वितर्क करो
आदमी आदमी में नहीं फर्क करो
धर्म मजहब जाति बुराई त्याग दो
सर्वदा धर्म से अच्छाई ग्रहण करो!
धार्मिक भेदभाव अलगाव को भूलकर
आदमी के काम आना आदमी बनकर
धर्म मजहब रहन सहन पहनावा से हटकर
भलाई का काम करना है सच्ची धार्मिकता,
वेशभूषा पूजा नमाज धार्मिकता नहीं, दिखावा!
—विनय कुमार विनायक