मजहब ही तो सिखाता है आपस में बैर रखना : औरंगजेब आज भी हिंदुओं की नजरों में है खलनायक

हिन्दुओं की दृष्टि में औरंगजेब आज भी खलनायक है

यही कारण है कि वह इस्लाम के मानने वालों की दृष्टि में आज भी एक बहुत ही उत्कृष्ट कोटि का शासक है, जबकि उसके अत्याचारों को सहन करने वाले हिन्दुओं की दृष्टि में वह आज भी एक कट्टर असहिष्णु और अत्याचारी शासक है। भारत में एक वर्ग की दृष्टि में औरंगजेब इतिहास का नायक है तो दूसरे की दृष्टि में वह इतिहास का खलनायक है। दृष्टिकोण के इस अन्तर के कारण भी भारत में सांप्रदायिक दंगे होते रहे हैं।


औरंगजेब का तत्कालीन हिन्दू समाज ने बहिष्कार कर दिया था। उसके प्रति घृणा का भाव सर्वत्र पाया जाता था। चाहे पंजाब के सिक्ख हों ( हमने यहाँ पर पंजाब के सिक्ख गुरुओं के साथ औरंगजेब के द्वारा किए गए अत्याचारों का जानबूझकर उल्लेख नहीं किया है, क्योंकि उसकी सिक्खों के प्रति नीति पर तो बहुत कुछ पढ़ने को प्राप्त हो जाता है ) और चाहे आसाम के अहोम शासक हों, सभी के भीतर उसके प्रति गहरी घृणा का भाव था। गहरी घृणा का यह भाव केवल साम्प्रदायिक आधार पर नहीं था बल्कि यह इसलिए भी था कि पंजाब और आसाम वाले अपने आपको एक ही राष्ट्र परम्परा से बंधे हुए पाते थे। यदि आसाम में किसी व्यक्ति को कांटा चुभता था तो उसका दर्द पंजाब वालों को होता था , इसी प्रकार पंजाब वालों के कष्ट को आसाम वाले अनुभव करते थे। इस राष्ट्रीय भावना के कारण औरंगजेब को कभी भी राष्ट्रीयनायक का सम्मान प्राप्त नहीं हो पाया। निश्चय ही उसकी आत्मा आज तक भी इस सम्मान को प्राप्त करने के लिए तड़पती होगी ।
यद्यपि वामपंथी और कांग्रेसी इतिहासकारों ने उसकी आत्मा की तड़पन को समझते हुए उसे राष्ट्रनायक या भारत रतन के रूप में स्थापित करने का हरसम्भव प्रयास किया है, परन्तु देश की जनता है कि उसे आज तक भी राष्ट्र नायक मानने को तैयार नहीं है।
जिन लोगों ने औरंगजेब को इतिहासनायक या राष्ट्र नायक के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया और माना वे लोग अपना अलग देश लेने में सफल हो गए। आज भी जो लोग औरंगजेब को अपना इतिहास नायक या राष्ट्रनायक मान रहे हैं वह भी एक नया देश लेने की तैयारी में हैं। देश में जहाँ – जहाँ पर हिन्दू पर अत्याचार हो रहे हैं या जहाँ – जहाँ से हिन्दू को पलायन करने के लिए विवश किया जा रहा है, वहीं वहीं पर औरंगजेब वादी सोच के लोग अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल होते देखे गए हैं ।
इस प्रकार औरंगजेब अपने जीवन भर तो विखण्डन, विभाजन और विघटन का प्रतीक रहा ही अपने मरने के पश्चात भी वह विखण्डन, विभाजन और विघटन का ही प्रतीक बना हुआ है । इसी की सोच को आगे लेकर चलने वाले सर सैयद अहमद खान जैसे लोगों ने देश में सबसे पहले द्विराष्ट्रवाद की बात रखी थी।

हिन्दू राष्ट्रनायकों ने किया था भारी विरोध

औरंगजेब की नीतियों का विरोध करने के लिए उस समय अनेकों शिवाजी, गुरु तेग बहादुर, गुरु गोविंद सिंह और बंदा वीर बैरागी जैसे हिन्दू नेता मैदान में छाती तानकर खड़े हो गए थे। जिसका देश के जनमानस ने स्वागत और सत्कार किया था। इतिहास की परम्परा को चाहे इतिहास लेखकों ने कितना ही क्यों न प्रदूषित कर दिया हो पर शिवाजी और बंदा वीर बैरागी के प्रति हिन्दू जनमानस में जिस प्रकार का श्रद्धा भाव आज भी मिलता है, उससे यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय के हिन्दू समाज ने अपने इन दोनों इतिहासनायकों का किस प्रकार सम्मान किया होगा और इन्होंने उस समय हिन्दू जनता पर हो रहे इस्लामिक अत्याचार का सामना करके कितनी बड़ी वीरता का परिचय दिया होगा ?
अपनी इसी प्रकार की वीरता का प्रदर्शन करते हुए गुरु गोविंद सिंह ने अपने चार बेटों का बलिदान दिया। गुरु तेगबहादुरजी ने अपना बलिदान दिया तो शिवाजी ने तो मुगल बादशाहत को समाप्त करने का बीड़ा ही उठा लिया था।
यह कम आश्चर्य की बात नहीं है कि औरंगजेब की मृत्यु के ठीक 30 वर्ष पश्चात शिवाजी के उत्तराधिकारियों ने मुगल वंश को लगभग समाप्त कर आज के भारत वर्ष के बहुत बड़े भाग पर अपना शासन स्थापित करने में सफलता प्राप्त कर ली थी। 1737 की इस घटना को वास्तव में देश की पहली आजादी कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
वास्तव में पंजाब के गुरुओं और वीर शिवाजी के उत्तराधिकारियों के इस प्रयास से हिन्दुओं को मिली यह सफलता मुगलों के दंगों से भरे इतिहास पर प्राप्त की गई एक विजय थी। जिसे सही अर्थ और सन्दर्भ देकर सही ढंग से हमारे इतिहास में स्थान नहीं दिया गया है।

दक्षिण भारत का औरंगजेब टीपू सुल्तान

वामपंथी इतिहासकारों ने टीपू सुल्तान जैसे धार्मिक असहिष्णु, मजहबपरस्त शासक को भी धर्मनिरपेक्ष दिखाने का प्रयास किया है। जबकि उसके बारे में सच यह है कि वह हिन्दुओं का उत्पीड़न करने के मामले में दक्षिण भारत का औरंगजेब था। उसने अपने शासनकाल में लाखों हिन्दुओं का धार्मिक उत्पीड़न किया । उनके प्रति धार्मिक असहिष्णुता और अपनी धर्मांधता का परिचय देते हुए टीपू सुल्तान ने लाखों हिंदुओं को धर्मान्तरित कर मुसलमान बनाया। टीपू सुल्तान ने औरंगजेब की भांति ही हिन्दुओं के अनेकों मन्दिरों का विध्वंस किया। जिससे यह नहीं कहा जा सकता कि वह हिन्दुओं के प्रति सहिष्णु और उदार शासक था।
2015 में आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य में इसी आशय का एक लेख छपा था जिसमें टीपू सुल्तान की जयंती के विरोध में उसको दक्षिण का औरंगजेब बताया गया है, जिसने जबरन लाखों लोगों का धर्मांतरण कराया।
टीपू सुल्तान की धर्मांधता और धार्मिक असहिष्णुता की नीति के बारे में विदेशी विद्वानों ने भी लिखा है । उनके उल्लेख और तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि वह भी अन्य मुस्लिम शासकों की भाँति हिन्दुओं के प्रति कठोरता की नीति का पालन करने का समर्थक था।19वीं सदी में ब्रिटिश सरकार के अधिकारी और लेखक विलियम लोगान ने अपनी किताब ‘मालाबार मैनुअल’ में लिखा है कि टीपू सुल्तान ने अपने 30,000 सैनिकों के दल के साथ कालीकट में विध्वंस मचाया था। टीपू सुल्तान ने पुरुषों और महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर फांसी दी और उनके बच्चों को उन्हीं के गले में बांध पर लटकाया गया। इस किताब में विलियम ने टीपू सुल्तान पर मंदिर, चर्च तोड़ने और जबरन शादी जैसे कई आरोप भी लगाए हैं।
1964 में प्रकाशित किताब ‘लाइफ ऑफ टीपू सुल्तान’ में कहा गया है कि सुल्तान ने मालाबार क्षेत्र में एक लाख से अधिक हिन्दुओं और 70,000 से अधिक ईसाइयों को मुस्लिम धर्म अपनाने के लिए बाध्य किया।

राकेश कुमार आर्य

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

12,770 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress