अनिल गुप्ता
जैसा की अपेक्षित ही था की तेलंगाना के निर्माण की घोषणा होते ही देश के अन्य क्षेत्रों में नए प्रदेश बनाने की मांग उठ खड़ी होंगी, वैसा ही हुआ.तेलंगाना के निर्माण के सम्बन्ध में पूरे दिन चली अटकलों के बाद जैसे ही मंगलवार की शाम को यु.पी ए.की बैठक में सर्वसम्मति से तेलंगाना के निर्माण का निर्णय घोषित हुआ और कुछ घंटों के बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने भी इस फैसले पर अपनी मुहर लगायी वैसे ही नए प्रदेशों के निर्माण की पुरानी पड़ी मांगों में नयी जान पड़ गयी.सबसे पहले अजीत सिंह ने हरित प्रदेश के निर्माण की मांग ताज़ा कर दी.उसके बाद गोरखालैंड ,बोडोलैंड को अलग राज्य नहीं बनाने पर केंद्र को उग्र प्रदर्शन की चेतावनी मिली है.तो कांग्रेस सांसद विलास मुत्तमवार ने अलग विदर्भ राज्य की मांग करके गर्मी ला दी है. गोरखालैंड की मांग करने वाले गोरखा जनमुक्ति मोर्चा और बोडोलैंड की मांग करने वाले बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट ने तत्काल निर्णय लेने की मांग कर डाली है.और मांग न माने जाने पर हिंसक आन्दोलन की चेतावनी दी है.देशभर में काफी समय से लगभग एक दर्जन नए राज्यों के गठन की मांग होती रही है.उत्तर प्रदेश का विभाजन करके हरित प्रदेश,बुंदेलखंड और पूर्वांचल की मांग भी बहुत पुरानी है.पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर में गोरखालैंड और बोडोलैंड के अलावा गुजरात में सौराष्ट्र,कर्नाटक में कुर्ग और बिहार में मिथिलांचल के लिए भी आन्दोलन चल रहे हैं.तेलंगाना के निर्माण से इन आन्दोलनों और मांगों को बल मिलेगा.गोरखालैंड की मांग तेज करने के लिए गोरखा क्षेत्रीय प्रशासन के मुखिया बिमल गुरुंग ने पद से इस्तीफा दे दिया है और सोमवार से चल रही ७२ घंटे की हड़ताल को अनिश्चितकालीन घोषित कर दिया है तथा सैलानियों को दार्जीलिंग तथा गोरखालैंड के क्षेत्र में न आने की सलाह दी गयी है.
१५ अगस्त १९४७ को भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश में अनेकों श्रेणियां प्रान्तों के गठन की मौजूद थीं.आजादी के बाद चार प्रकार के राज्य या प्रान्त बनाये गए.प्रथम ए श्रेणी राज्य- इसमें वो राज्य थे जो पूर्व में गवर्नर के अधीन प्रान्त थे.
२.बी श्रेणी- इनमे वो राज्य थे जो पूर्व में देसी राजों के अधिंठे या ऐसे राज्यों का समूह.
३. सी श्रेणी के राज्य- ऐसे प्रान्त जो चीफ कमिश्नर के अधीन थे.
४.डी श्रेणी- ऐसे क्षेत्र जो अलग टेरिटरी के रूप में थे.
१९४८ में एस के दार कमेटी बनायीं गयी जिसने भाषावार राज्यों का विरोध किया था.इस पर विचार के लिए जेवीपी(जवाहरलाल नेहरु,वल्लभभाईपटेल और पटाभीसीतारामय्या) कमेटी बनी जिसने दार कमेटी की संस्तुति की पुष्टि की.लेकिन ये कहा गया की यदि जनभावना भाषावार राज्यों के पक्ष में हो तो लोकतान्त्रिक होने के कारन हम उसका सम्मान करेंगे.ये भी कहा गया की तेलुगुभाषी लोगों का अलग राज्य बनाया जा सकता है.इसने मद्रास प्रान्त के तेलुगुभाषी लोगों को आन्दोलन के लिए उकसाने का काम किया और इसकी परिणति ५६ दिन के अनशन के उपरांत पोट्टी श्रीरामुलु की १५ दिसंबर १९५२ को मृत्यु में हुई.१९५३ में आंध्र प्रदेश का जन्म हुआ.१९५६ में इसमें हेदराबाद राज्य,और मद्रास राज्य के तेलुगुभाषी क्षेत्रोंको मिलकर वर्तमान आन्ध्र प्रदेश बनाया गया.
आजादी के बाद से ही अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग राज्यों के गठन की मांग उठती रही है.केंद्र सर्कार की पहली प्रतिक्रिया विरोध की होती है और जैसे जैसे आन्दोलन उग्र से उग्रतर होता जाता है अंत में राज्य का गठन कर दिया जाता है. लेकिन एक प्रशासनिक इकाई के रूप में राज्यों के गठन का कोई सुनिश्चित मापदंड आजतक नहीं बन पाया है.
वास्तव में अलग राज्यों की मांग उठने के अनेकों कारन हैं.इनमे सबसे प्रमुख है विकास में क्षेत्रीय असंतुलन.और इसके कारण क्षेत्रीय उपराष्ट्रवाद की भावना का उभार.
अमेरिका में २८ करोड़ की आबादी है और पचास राज्य हैं.जबकि भारत में सवा सौ करोड़ की आबादी पर अभी अट्ठाईस राज्य हैं.जो तेलंगाना के गठन के बाद उनतीस हो जायेंगे.वास्तव में संविधान के निर्माताओं द्वारा भी इस सम्बन्ध में केवल अनुच्छेद ३ में संसद द्वारा नए राज्य का निर्माण किसी मौजूदा राज्य के क्षेत्र में से करने या दो अथवा दो से अधिक राज्यों को मिलाकर नया राज्य बनाने का प्राविधान किया गया है.लेकिन राज्यों के गठन का क्या पैमाना होगा इसे अनुत्तरित छोड़ दिया गया है.
संविधान सभा का गठन किसी चुनाव द्वारा जनता ने नहीं किया था बल्कि उस समय गवर्नमेंट ऑफ़ इण्डिया एक्ट १९३५ के अधीन गठित प्रांतीय असेम्बलियों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से नामित सदस्यों को लेकर किया गया था.संविधान पर जनता द्वारा कोई जनमत संग्रह भी नहीं किया गया था.और ये संविधान जनता द्वारा या उसके द्वारा सीधे चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा नहीं बनाया गया था.इसके फलस्वरूप अनेकों मामलों में संविधान के प्राविधान जनाकांक्षाओं के अनुरूप नहीं बन पाए.संविधान की विफलता इस से भी प्रगट होती है की अब तक इसमें सौ से अधिक संशोधन किये जा चुके हैं.केंद्र और राज्यों का ढांचा वास्तव में १९३५ के गवर्नमें ऑफ़ इण्डिया अधिनियम पर ही आधारित है.जो भारत की मूल प्रकृति के विपरीत है.
भारत की प्रवृति पंचायती राज की है.लेकिन संविधान में इस सम्बन्ध में केवल अध्याय चार (राज्यों के नीति निर्देशक सिद्धांत) में अनुच्छेद ४० में ग्राम पंचायतों के बारे में उल्लेख किया गया है.जिसे बाद में राजीव गाँधी द्वारा कानून बनाकर लागू किया गया.लेकिन राष्ट्रिय और प्रादेशिक/क्षेत्रीय स्तर पर भी कोई वैकल्पिक और ज्यादा कारगर ढांचा हो सकता है इस पर कभी कोई विचार नहीं किया गया.भारत में हर चार कोस पर पानी बदल जाता है और हर बारह कोस पर बोली बदल जाती है.अतः लोकभावनाओं के अनुरूप देश का गठन आवश्यक था ताकि लोगों को अपने अपने क्षेत्रों में अपनी सांस्कृतिक पहचान को अक्षुन्न रखते हुए देश की एकता और अखंडता भी बनी रह सके.
मेरे विचार में संविधान में व्यापक संशोधन करके देश का सांगठनिक ढांचा ग्राम पंचायत स्तर से शुरू करके राष्ट्रिय पंचायत तक लेजाना चाहिए.जिसके लिए विशेषज्ञों की समिति गठित की जाये. मोटे तौर पर मेरे कुछ सुझाव निम्न प्रकार हैं:-
लगभग दो हज़ार की आबादी पर एक ग्राम पंचायत हो जिसके अधिकार क्षेत्र में आने वाले विषय स्पष्ट हों.
एक लाख की आबादी अथवा चालीस/पचास ग्राम पंचायतों के ऊपर एक क्षेत्र (ब्लोक) पंचायत हो.
दस लाख की आबादी पर एक जनपदीय पंचायत हो.
दो करोड़ की आबादी पर अथवा बीस जनपदों पर एक प्रांतीय पंचायत हो.और
सबसे ऊपर एक राष्ट्रिय पंचायत हो.
इन सब इकाईयों के अधिकार और कर्त्तव्य तथा वित्त,प्रशासन और इनके गठन का तरीका और आधार आदि के बारे में विशेषज्ञों के परामर्श के आधार पर निर्णय लिया जाय.
ऐसा करने से देश में मौजूदा अट्ठाईस राज्यों की जगह लगभग साठ या सत्तर राज्य बन जायेंगे जिससे इस समय जितने भी नए राज्यों की मांग उठ रही हैं वो सब भी संतुष्ट हो सकेंगे.और भविष्य के लिए भी निश्चिंतता हो सकेगी.उचित होगा की इस बारे में विद्वतजन एक बहस चलाकर उचित वातावरण का निर्माण करें.
आपका विचार की “एक लाख की आबादी अथवा चालीस/पचास ग्राम पंचायतों के ऊपर एक क्षेत्र (ब्लोक) पंचायत हो.दस लाख की आबादी पर एक जनपदीय पंचायत हो.
दो करोड़ की आबादी पर अथवा बीस जनपदों पर एक प्रांतीय पंचायत हो.और
सबसे ऊपर एक राष्ट्रिय पंचायत हो.” में थोड़ा संसोधन की आवश्यकता है- पंचायत- जिला- राज्य देश की इकाई रहे है और रहेंगे पर इसके बीच क्षेत्रीय स्तर पर राज्यपाल की जगह क्षेत्रपाल, सर्वोच्च न्यालायाली की जगह क्षेत्रीय न्यायलय 4 किये जा सकते हैं- पूर्व, पशिचम, उत्तर, दक्षिण जा सकते हैं
इस पुनर्गठन का आधार क्या होगा, इसके साथ और क्या व्यवस्थाएं करनी होंगी, न्यायपालिका का क्या स्वरुप होगा राज्यपाल का क्या पद नाम होगा आदि ऐसे विषय हैं जो मूल विषय अर्थात देश के सांगठनिक ढांचे का पुनर्गठन, इससे जुड़े अनुषांगिक विषय हैं.जिन पर इन विषयों के विशेषज्ञों की राय लेकर तथा लोगों से जनमत संग्रह के द्वारा अनुमति लेकर संविधान में आवश्यक परिष्कार किया जा सकता है.इन विषयों पर इसी कारण से मेरे द्वारा कोई मत व्यक्त नहीं किया गया था.आवश्यकता है की इस विषय में एक रचनात्मक बहस चले.आज श्री वेड प्रताप वैदिक जी ने भी अपने लेख में साठ सत्तर राज्यों की वकालत की है.जिसका सुझाव मैंने दिया था.अस्तु, आपने सुझाव देने का कष्ट किया उसके लिए कोटिशः धन्यवाद.
पिछले चार-पांच दिन की घटनाओं ने ये साबित कर दिया है कि तेलंगाना के विलंबित एवं राजनीती प्रेरित निर्णय ने देश के अलग अलग भागों में पृथक राज्य की मांगों ने जोर पकड़ लिया है और चुनावी वर्ष होने के कारण सभी सम्बंधित पक्ष इस स्थिति से लाभ उठाने के लिए इन मांगों को शायद ही ठंडा पड़ने देंगे.ऐसे में देश के व्यापक हित में मेरे द्वारा ऊपर दिए सुझावों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता प्रतीत होती है.इसके लिए संविधान के अध्याय एक के पश्चात् अध्याय एक-क शामिल किया जा सकता है जिसमे भारत संघ में शामिल राज्यों और उनसे नीचे की इकाईयों यथा जिला/जनपदीय इकाई, ब्लोक इकाई और ग्राम इकाई को पूरी तरह परिभाषित करते हुए उनके अधीन आने वाले विषयों क भी पूरा विवरण शामिल किया जाये.इसके लिए सातवीं अनुसूची की वर्तमान तीन सूचियों के स्थान पर छह सूचियों- ग्राम सूचि, ब्लोक सूचि, जनपद सूचि, राज्य सूचि,केंद्र सूचि और समवर्ती सूचि क प्राविधान रखा जा सकता है.