विरोध और स्त्री

आदित्य कुमार गिरि

downloadआमतौर पर यह धारणा है कि स्त्री विमर्श के अन्तर्गत स्त्री लेखिकाएँ पुरुषों के प्रति घृणा का भाव रखती हैं।उन्हें मानो पुरुष चाहिए ही नहीं।वे पुरुषवादी दृष्टिकोण से नफरत करने के क्रम में पुरुष से ही नफरत करने लगी हैं।पुरुष का हर रवैया उसे नापसंद है कुलमिलाकर वह स्त्रीवादी समाज में पुरुष की उपस्थिति को हर तरह से नकारती है।मैत्रेयी पुष्पा ने अपने साहित्य में इस धारणा का खंडन किया है।वे अपना विरोध पुरुषवादी नजरिये से रखती हैं,न कि पुरुष से।

मैत्रेयी की कहानी ‘अब फूल नहीं खिलते’ इस तथ्य को और स्पष्टता से उजागर करती है।इसके साथ ही इस कहानी में प्रोटेस्ट है,प्रतिरोध है।स्त्री के लिए,उसके रिएक्शन के लिए एक दिशा है।वह रोजमर्रा की समस्याओं का सामना कैसे करे।समाज में प्रचलित मान्यताओं के तहत वह बहुत कुछ है जो सहन करती है।पर मैत्रेयी इस सहनकर्म से अपनी असहमति व्यक्त करती हैं।वे प्रोटेस्ट को अपना हथियार बनाती हैं।

दुनिया में लोक-लाज और संस्कारों के नाम पर स्त्री के शोषण के प्रतिरोध को आवाज नहीं देने दिया है।स्त्री अपने ऊपर हो रहे अत्याचार को चुपचाप सहने के लिए बाध्य की जाती रही है।मैत्रेयी पुष्पा अपनी कहानियों में ऐसे ही मुद्दों को चुनती हैं।वे क्रमवार समस्याएँ चुनती हैं।वे स्त्री को बागी बनाती हैं।उसे उसकी मौजूदा स्थिति से विद्रोह करना सिखाती हैं।सामाजिक रुढ़िबद्धता को तोड़ती हैं।स्त्री के लिए मार्ग बनाती हैं।मैत्रेयी शोषण को मुद्दा बनाती हैं।स्त्री स्वभाव को मुद्दा बनाती हैं।पुरुष निर्मित स्वभाव को बदलने के लिए दिशा देती हैं।स्त्री को जगाती हैं।

‘झरना’ एक ऐसी ही पात्र है।वह दुनिया के रीति रिवाज समझ नहीं पाती।वह पुरुषों का रवैया,उनका दृष्टिकोण उन सबसे परेशान होती है।उसे समझ नहीं आता कि ये पुरुष आखिर समझते क्यों नहीं कि उनकी ऐसी हरकतों से स्त्री कितना आहत होती है।वह अंदर से टूट जाती है।

वह पुरुष की विरोधी नहीं है।बल्कि वह तो प्रिसिंपल से लड़ बैठती है कि उसे और उसकी सहपाठियों को लड़कों के साथ कक्षा में बैठने दिया जाए।वह हर कक्षा के बाद कॉमनरुम में जाने को हास्यास्पद मानती है।उसे शर्म आती है।वह अपने पुरुष मित्रों के साथ बहुत खुश रहती है।वह उनके केयर करने को सराहती है।वह देखती है कि उसके पुरुष मित्र उसका कितना ख्याल रखते हैं।उसके भूखे रहने पर उसे अपना कलेवा खाने को दे देते हैं।उसके साथ गाँव से स्कूल तक आते हैं।उसे अकेला नहीं छोड़ते।कक्षा में जगह न होने पर उठकर उसे बैठने की जगह देते हैं।उसको लेकर चिंतित रहते हैं।

झरना के माध्यम से मैत्रेयी स्त्री विमर्श के बारे में जो धारणा बना ली गई है कि वह पुरुष विरोधी है,का खंडन करती हैं।साथ ही स्त्री लेखिकाओं को भी मानो कह रही हों कि पुरुष को दरकिनार करना स्त्री के हितों के अनुरुप न होगा।एक स्वस्थ और लोकतांत्रिक समाज के निर्माण में दोनों की ही भूमिका होगी।केवल एक को लेकर समाज का निर्माण नहीं हो सकता।

कहानी में मैत्रेयी ने जानबूझकर सहशिक्षा के कॉन्सेप्ट पर बात की है।इसी के माध्यम से वे अपनी सोच को प्रकट कर पाती हैं।पर साथ ही वे झरना के माध्यम से कई और कार्य भी करती हैं।मसलन् झरना बहादुर है।वह गाँव की बाकी लड़कियों की तरह दबी कुचली नहीं रहती बल्कि वह स्वाभिमानी है।वह अपने स्वाभिमान के लिए लड़ पड़ती है।वह साफाई और सुन्दरता पर ध्यान देती है।गाँव की बाकि लड़कियाँ गंदी और मैली कुचैली रहती हैं जबकि झरना न सिर्फ साफ सुथरी रहती है बल्कि अपनी सुन्दरता पर भी ध्यान देती है।

झरना किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ का तत्काल विरोध करती है।वह छेड़ने वाले लड़के से आँखें मिलाकर उसका विरोध करती है।छेड़ने वाला लड़का डर जाता है।हक्का-बक्का रह जाता है।असल में वह जिस स्त्री को जानता है वह विरोध नहीं करती।वह चुपचाप शोषण को सहती रहती है।पुरुष को ऐसी ही स्त्रियों की आदत है।झरना एक नई स्त्री है।वह पुरुष की आदतों वाली स्त्री से अलग एक विद्रोही स्त्री है।पुरुष को इसलिए परेशानी होती है।झरना के चरित्र में यह गुण दिखाना मैत्रेयी के लिए जरुरी था।इसलिए क्योंकि पूरी कथा का तानाबाना इसी पर टिका हुआ है।कहानी में झरना के इसी गुण को प्रस्तुत किया गया है।

स्त्री लोक-लाज के भय से अब तक पुरुष का शोषण सहन करती आई है।पुरुष ने जिस स्त्री को निर्मित किया था वह अब तक चुप रहती थी।लेकिन मैत्रेयी इस निर्मित स्त्री की छवि को तोड़ती हैं और नई स्त्री बनाती हैं।यह स्त्री का सशक्तिकरण है।वह विरोध करना सीख जाती है।विरोध करने लगती है।ध्यान रहे कि झरना कहीं भी उच्छृखंल नहीं है।हिन्दी में कई स्त्री लेखिकाएँ स्त्री आजादी का मतलब उसे पुरुष की उच्छृखंलता के बरक्स एक उच्छृखंल स्त्री को प्ररस्तुत करने में समझती हैं।पर मैत्रेयी स्त्री की ताकत उसे ताकतवर बनाने में समझती हैं।वे जजानती हैं कि स्त्री की उच्छृखंलता कोई हल नहीं है।यह प्रतिहिंसा अंतः स्त्री के लेए ही घातक है क्योंकि इससे पुरुष की उच्छृखंलता पर अंकुश लगने के स्छथान पर और बढ़ोत्तरी होगी।

इस क्रम में जो सबसे महत्त्वपूर्ण चीड है वह यह कि स्त्री बोलने लगेगी,विरोध करने वगेगी तो समाज में उसके लिए अस्वीकार्यता का भाव जन्मेगा।समाज ऐसी स्त्री को तिरस्कृत करेगा।उसकी दुनिया कटी हुई हहोगी।मैत्रेयी इस धारणा का खंडन करती हैं।झरना के विरोध करने पर जो लड़के हक्के-बक्के हो गए थे,झरना से चिढझ़ गए थे,वे ही झरना की इज्जत करते हैं।उसकी इस प्रवृति के कारण उसका सम्मान करते हैं।उससे प्रभावित होते हैं।पूरी कक्षा के लिए झरना आकर्षण का केन्द्र है।उसकी देखा-देखी गाँव के लड़के पढ़ाई पर ध्यान देने लगते हैं,खेलकूद कम कर देते हैं।यह है नई स्त्री का प्रभाव और समाज में उसकी स्वीकार्यता।

प्रिसिंपल का बलात्कार करने की कोशिश का झरना विरोध करती है।गाँव,समाज सभी का कहना है कि उसे चुप रहना चाहिए।इससे उसकी बदनामी होगी।लोग विश्वास नहीं करेंगे।कुलमिलाकर तमाम तरीके से उसे रोकने की कोशिश की जाती हैष।पर झरना अपनी आवाज़ बुलन्द करती है।वह प्रिसिंपल को नंगा करती है।इसके बाद सारे विद्यार्थी उसका साथ देते हैं।उसका विरोध जीत-हार या किसी के साथ का मोहताज नहीं बस उसके साथ बुरा हुआ और वह विरोध करती है।स्त्री की छेड़छाड़ की घटनाओं में बढ़ोत्तरी का एक कारण यह भी है कि स्त्री लोक-लाज के भय से इसे किसी के सामने कहती नहीं।पुरुष इस तथ्य को जानता है।

मैत्रेयी पुष्पा अपनी कहानी में इस स्त्री को चेंज करती हैं।वह झरना जैसी स्त्रियों को आदर्श मानती हैं।वे समाज की स्त्रियों को झरना हो जाने को कहती हैं।झरनाएँ जबतक नहीं होंगी तबतक स्त्री के शोषण का चक्र कभी नहीं थमेगा।कायदे से स्त्री को अपने साथ हो रहे अत्याचार का विरोध करना चाहिए।बसों में,सड़कों पर,ट्रेन में घर में जहाँ भी छेड़छाड़ हो उसका विरोध करना चाहिए।कम-से-कम झरना यह काम करती है।

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