उषा राय
हाल ही मे आई एक खबर के अनुसार देश के अस्पतालों और घरो में रोजाना मरने वाले नवजातों और गर्भवती महिलाओं की जानकारी केंद्र सरकार के पास नही है। मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय और केंद्रीय स्वास्थ सचिव ने आरजीआई को जल्द से जल्द आंकड़े उपलब्ध कराने को कहा है ताकि वर्तमान समय की परिस्थिति को जाना जा सके। ये सच है कि चिकित्सा क्षेत्र में कई आविष्कार होने के बाद भी हमारे देश मे रोज न जाने कितनी महिलाओं की प्रसव के दौरान और नवजात शिशुओं की सही देखभाल न होने के कारण मृत्यु हो जाती है लेकिन उत्र प्रदेश के अमेठी जिला मे दो गांव- पारसवान जिसकी कुल आबादी 1462 और नारायणी गांव जहाँ की कुल आबादी 5024 है ऐसे गांव हैं जहाँ पिछले 3 सालो मे न तो किसी महिला ने प्रसव के समय अपनी जान गंवाई न ही किसी नवजात शिशु की जान लापरवाही के कारण गई। दूसरे शब्दों मे कहें तो दोनों गांव को मातृ मृत्यु मुक्त गांव बनने के पीछे कारण है गांव में चलने वाली “आरती स्वंय सहायता समूह” की मंजू और मीरा की कड़ी मेहनत। जो शुरु से अपने समूह के लिए तो सक्रिय थी। साल 2005- 2006 के बीच दोनो ने समूह की महिलाओं को बचत परियोजनाओं के बारे जानकारी देने का निर्णय लिया ताकि समूह के सभी सदस्य की आर्थिक स्थिति को सुधारा जा सके। लेकिन कुछ दिनों बाद समूह को ऐसा महसूस हुआ कि बचत के अधिकतर पैसे या तो समूह के सदस्य पर या समूह के परिवार वालों पर उनके खराब स्वास्थ के कारण खर्च हो रहे हैं। कारणवश समूह ने स्वास्थ्य के क्षेत्र मे काम करने का निश्चय किया । परिणामस्वरुप पब्लिक हेल्थ फांउडेशन ऑफ इंडिया, पोपुलेशन कॉउन्सिल और सेंटर फॉर ग्लोबल हेल्थ एण्ड डेवलपमेंट ,इन सब परियोजनाओ ने मिलकर वर्ष 2010 मे सामुदायिक गतिशीलता परियोजना UP COMMUNITY MOBILAZATION PROJECT (UMPMP) के अंतर्गत आरती समूह को स्वास्थ्य संबधित मुद्दों पर कार्य करने के लिए सहयोग दिया। अतः स्वास्थ्य के अन्य मुद्दो पर अच्छा काम करने के बाद जब मंजू और मीरा को आशा कार्यकर्ता का पद दिया गया तो दोनो ने गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों के स्वास्थ्य पर काम करने का निश्चय लिया। लेकिन गांव के बड़े बुजुर्गो द्वारा गर्भवती महिलाओं के प्रति भेदभाव के रवैये और सोच को बदलना बहुत मुश्किल था। दरअसल मान्यता ये थी कि बच्चे के जन्म के साथ ही बुरी आत्माओं का भी प्रवेश घर मे हो सकता है इसलिए प्रसव के बाद मां और बच्चे को एक अलग कमरे मे रखा जाता था और शुद्धिकरण के लिए गाय के सुखे गोबर को कुछ दिनो तक कमरे मे जलाया जाता था ताकि उसके धुएं से मां-बच्चे की शुद्धिकरण के साथ साथ बुरी आत्मा से भी घर को मुक्त किया जा सके। चुंकी मान्यता थी कि प्रसव के बाद महिला का शरीर अपवित्र हो जाता है इसलिए शुरु के 3 दिनो तक मां को बच्चे को दुध पिलाने से भी मना कर दिया जाता था। ये एक ऐसी धारणा थी जिसे समाप्त करना मंजू और मीरा के लिए आसान नही था लेकिन उन्होने अपनी कोशिश को जारी रखा और महिलाओं और नवजात शिशु को सुरक्षा देने के लिए सबसे पहले महिलाओं को ही गर्भवस्था से लेकर प्रसव तक की अवधि मे बरती जाने वाली सावधानियों के प्रति जागरुक करना शुरु किया। इस जागरुकता अभियान को प्रभावशाली बनाने के लिए मीरा और मंजू ने सहारा लिया रंग बिरंगे चित्रो वाले छोटी छोटी किताबो के साथ साथ कुछ वैसे विडियो का जिसे देखने पर ये आसानी से स्पष्ट हो जाता था कि नवजात शिशु के लिए मां के पहले दुध का क्या महत्व होता है। मंजू और मीरा ने इस जागरुकता अभियान मे सबसे महत्वपूर्ण पक्ष रखा “कंगारु मदर केयर” )केएमसी) की प्रक्रिया को जिसके अनुसार बच्चे के जन्म के साथ ही मां, बच्चे को कुछ देर तक अपने छाती से लगाकर शरीर की गर्मी देती है। चिकित्सा क्षेत्र मे इस प्रक्रिया को महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस प्रक्रिया के बाद बच्चे की शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है और भविष्य मे होने वाली कई बिमारियों से वह सुरक्षित हो जाता है। इन सब बातो से गांव की महिलाओं और उनके परिवार वालो को रुबरु कराने के लिए मंजू और मीरा ने घर घर घुमकर लोगो को इस बारे में जागरुक किया और परिणामस्वरुप धीरे धीरे गर्भवती महिला के प्रति लोगो का रवैया और सोच दोनो बदलने लगा। अब उस गांव में महिला और उसके बच्चे के साथ जन्म के बाद अपवित्रता के नाम पर कोई बुरा बर्ताव नही होता साथ ही पारसवान गांव मे 100 प्रतिशत प्रसव न सिर्फ सही रुप मे हो रहा है बल्कि एंबुलेंस की सुविधा भी आ गई है जिस कारण महिलाएं सही समय पर अस्पताल पहुंच जाती हैं और स्वस्थ बच्चे को जन्म देती है। कारणवश पिछले तीन वर्षो से मंजू और मीरा के प्रयासो से पारसवान और नारायणी दोनो गांव मे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार कोई भी मातृ मृत्यु नही हुई है।
आलम ये है कि आज इस गांव मे आने वाली हर नवविवाहीत बहू मंजू और मीरा के आरती स्वंय सहायता समूह का हिस्सा बनना चाहती है ताकि वो भी स्वस्थ माँ और स्वस्थ बच्चे की महत्वपूर्णता को समझ सकें।