रोहिंगिया मुसलमान और राष्ट्रीय एकता

डॉ.प्रेरणा चतुर्वेदी

रोहिंग्या लोग ऐतिहासिक तौर पर अरकानी भारतीय के नाम पर पहचाने जाते हैं. म्यांमार देश के रखाइन राज्य और बांग्लादेश के चटगांव इलाके में बसने वाले राज्य विहीन हिंद-आर्य लोगों का नाम है .रखाइन राज्य पर बर्मी कब्जे के बाद अत्याचार के माहौल से तंग आकर बड़ी संख्या में रोहिग्या मुसलमान लोग थाईलैंड में शरणार्थी हो गए. रोहिंग्या लोग आमतौर पर मुसलमान होते हैं .म्यांमार में करीब आठ लाख रोहंगिया लोग रहते हैं .लेकिन वर्मा( म्यांमार) के बौद्ध लोग और वहां की सरकार इन रोहिंग्या लोगों को अपना नागरिक नहीं  मानती .रोहिंग्या लोग सुन्नी इस्लाम को मानते हैं. म्यांमार में करीब आठ लाख रोहिंग्या मुस्लिम रहते हैं.
म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमान 12 वीं शताब्दी से रहते आए हैं .अराकान रोहिंग्या नेशनल आर्गेनाईजेशन के मुताबिक- रोहिंग्या अराकान रखाइन में प्राचीन काल से रह रहे हैं. 1824 से 1948 तक ब्रिटिश राज के दौरान भारत और बांग्लादेश से एक बड़ी संख्या में मजदूर वर्तमान म्यांमार के इलाके में ले जाए गए. ब्रिटिश राज्य म्यांमार को भारत का ही एक राज्य समझता था .इसीलिए इस तरह की आवाजाही को देश के भीतर का ही आवागमन समझा गया .ब्रिटेन से आजादी के बाद इस देश की सरकार ने ब्रिटिश राज में होने वाले इस प्रवास को गैरकानूनी घोषित कर दिया. इस आधार पर रोहिंग्या मुसलमानों को नागरिकता देने से इंकार कर दिया गया. रोहिंग्या मुसलमान शुरू से ही आतंकवाद ,उग्रवाद, जबरन वसूली ,धर्मांतरण इत्यादि कुकृत्यों में रमे रहते थे जिसके कारण अधिकांश बौद्ध रोहिंग्या मुसलमानों को बंगाली समझने लगे और उनसे जातीय नफरत करने लगे  1 .ब्रिटेन से आजाद होने के बाद नागरिकता कानून पारित किया गया और इसमें रोहिंग्याओं को शामिल नहीं किया गया. जो लोग पिछली दो पीढ़ियों से रह रहे थे .उन्हें कार्ड के लिए योग्य माना गया .शुरुआत में रोहिंग्याओं को नागरिकता पहचान -पत्र जारी किए गए. इसी दौरान रोहिंग्या मुसलमान सांसद चुने गए .1962 के सैन्य तख्तापलट के बाद की स्थिति में परिवर्तन आया. समस्त नागरिकों को राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी किए गए  जबकि रोहिंग्या मुसलमानों को देशी- विदेशी पहचान -पत्र जारी नहीं किए गए. जिससे उन्हें प्रमुख नागरिक सुविधाओं से वंचित कर दिया गया.
1982 में एक नया नागरिक कानून पारित कर रोहिंग्या मुसलमानों से शिक्षा, रोजगार, यात्रा, विवाह ,धार्मिक आजादी यहां तक कि स्वास्थ्य सेवाओं से लाभ को इसलिए वंचित कर दिया क्योंकि रोहिंग्या मुसलमान हिंदुओं तथा बौद्धाें पर हिंसात्मक कारवाई कर रहे थे . उनके द्वारा हिंदुओं के घरों पर गोलियों का बौछार करना तथा उनकी संपत्ति को नुकसान करना इत्यादि प्रमुख बातें शामिल थी जिससे म्यांमार की सरकार को विवश होना पड़ा क्योंकि एक तरफ रोहिंगिया उस देश के नागरिक नहीं थेताे दूसरी आेर इस्लाम की विस्तारवादी नीतियों में एक सबसे बड़ी बात यह होती है कि  किसी भी देश में अवैध रूप से घुसपैठ करते हैं तथा अपनी जनसंख्या के हिसाब से अराजकतावाद, आतंकवाद तथा अराष्ट्रीय गतिविधियों को जारी रखते हैं .यह स्थितियां म्यांमार में भी शुरू हो गई थीं. इस कारण सरकार द्वारा सुविधाओं से वंचित कर दिया गया और आज भी म्यांमार देश की सरकार और सेना रोहिंग्याओं पर वैधानिक कार्रवाई कर रही है .उन्हें देश की सीमाओं से बाहर खदेड़ा जा रहा है… और इन सब को म्यांमार देश के लोग एक कानूनी प्रक्रिया बताते हैं . इस तरह बर्मा के लोग रोहिंग्या मुसलमानों को उत्पीड़ित कर रहे हैं .बिना किसी देश के इन रोहिंग्या लोगों को अपने अस्तित्व का संकट दिखाई पड़ रहा है. इन रोहिंग्याओं के साथ आईएसआई तथा वैश्विक विस्तारवादी आतंकवादी संगठन सह दे रहे हैं जिनके बल पर यह उग्रवाद वादी गतिविधियों में लिप्तहै.2
वर्तमान समय में बड़ी संख्या में रोहिंग्या  बांग्लादेश और थाईलैंड की सीमा पर शरणार्थी शिविरों में  रहने को विवश हैं. कॉमन ईरा(सीई) के अनुसार वर्ष 1400 के आसपास यह लोग पहले मुस्लिम थे, जो बर्मा के अराकान प्रांत में बसे थे. इनमें से बहुत से लोग 1430 में अराकान पर शासन करने वाले बौद्ध राजा नारामीखला (बर्मी में मिन सा मुन) के राज दरबार में नौकर थे .इस राजा ने मुस्लिम सलाहकारों , और दरबारियों को अपनी राजधानी में प्रश्रय दिया था. शताब्दियों से रोहिंग्या मुसलमान इस बौद्ध बहुल देश म्यांमार के रखाइन प्रांत में रह रहे थे .रोहिंग्या मुसलमान रोहिंग्या भाषा बोलते हैं .जो रखाइन और म्यांमार के दूसरे भाग में बोली जाने वाली भाषा से कुछ अलग है .इन्हें अधिकारिक रूप से देश के 135 जातीय समूहों में शामिल नहीं किया गया है. सन 1982 में म्यांमार सरकार ने एक नया नागरिक कानून पारित करके रोहिंग्या मुसलमानों को नागरिता बेदखल कर दिया.जिसके बाद वे बिना नागरिकता के जीवन बिता रहे हैं .रोहिंग्या मुसलमानों को शहरों के दूसरे भागों में जाने की इजाजत नहीं है. यह लोग बहुत निर्धनता में झुग्गी -झोपड़ी में रहने को विवश हैं. पिछले कई वर्षों से इनके इलाके में किसी भी स्कूल या मस्जिद की मरम्मत नहीं की गई है . विदेशी स्रोतों से प्राप्त  चंदे के आधार पर यह धड़ाधड़ मस्जिदों तथा इस्लामी विद्यालयों की स्थापना करते हैं  तथा वहीं आतंकवादी गतिविधियों का प्रशिक्षण दिया करते हैं .नए मकान, दुकान और मस्जिदों को बनाने की रोहिंगिया मुसलमानों को इजाजत नहीं है.
सन 2012 में रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्धों के बीच हिंसा भड़की. इसमें करीब 500 लोग मारे गए और एक लाख लोग यहां से पलायन कर गए थे. इसमें बड़ी मात्रा में रोहिंग्या मुसलमानों ने हिंदू तथा बौद्ध युवतियों को अपना शिकार बनाया उनकी संपत्ति को बर्बाद करने के बाद उनके नौजवान युवतियों को अपने साथ लेकर चले गए प्रतिक्रिया स्वरुप हिंसा भड़की जो वैश्विक मीडिया ने म्यांमार की चित्र को नकारात्मक रूप से उभारने का प्रयास किया गया उसमें यह दिखाया गया कि हिंदू और बौद्ध इस्लामी रोहिंग्या मुसलमानों के साथ बर्बरता कर रहे हैं.
सन 2015 में भी रोहिंग्या मुसलमानों का एक फिर से बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हुआ  3 .म्यांमार में मुसलमान को किसी तीसरे देश में भेजने की बात कही गई है.. तथा अब तक हुई कई हिंसक झड़पों  के लिए इन रोहिंग्या मुसलमानों को ही जिम्मेदार ठहराया गया है, साथ ही उनके प्रजनन  को भी लेकर दावे किए गए हैं .म्यांमार में बौद्ध बहुसंख्यक हैं. वहां रोहिंग्या मुसलमानों के  नागरिक सुविधाओं पर भी कड़े प्रतिबंध हैं. कट्टरपंथी बौद्ध संगठन और रोहिंग्या मुसलमानों के बीच कई बार खूनी झड़प हो चुकी है.
यूनाइटेड नेशंस के मुताबिक- रोहिंग्या मुसलमान दुनिया के सबसे बड़े उत्पीड़ित अल्पसंख्यक समूह में से एक है. म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों की नस्लीय सफाई जारी है. हालांकि इरानी विदेश मंत्री जरीफ ने ट्वीट करके– रोहिंग्या मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों के प्रति विश्व समुदाय की चुप्पी की निंदा की थी तथा दुनिया के सबसे पीड़ित अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रहे जुल्म को रोकने के लिए कड़ी कार्यवाही की मांग की थी. लेकिन यह एकपक्षीय विचारधारा का नमूना है. आज बांग्लादेश से भारी संख्या में हिंदू तथा पाकिस्तान से सिख एवं हिंदू पलायन कर के   विश्व के दूसरे देशों में बस रहे हैं.
वर्तमान समय में भारत में सरकारी आंकड़ों के अनुसार  14 हजार रजिस्टर्ड रोहंगिया मुस्लिम तथा करीब 40 हजार अवैध तौर पर रोहिंग्या मुसलमान रह रहे हैं .इस समय जम्मू और कश्मीर में करीब 6000 रोहिंग्या मुसलमान हैं. भारत में पहले से ही बांग्लादेश से काफी संख्या में शरणार्थी आकर बसे हैं. जो पूर्वोत्तर राज्यों में नित नई समस्याएं खड़ी कर रहे हैं .ऐसे में रोहिंग्या मुसलमानों के प्रति नरमी बरतना देश के आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है.
यह अपने आप में एक आश्चर्य की बात है कि रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार से निकलकर बांग्लादेश के रास्ते से पहले पूर्वोत्तर के राज्यों में घुसते हैं और फिर वहां से सैकड़ों किलोमीटर दूर जम्मू ,मेवात ,हैदराबाद और दिल्ली तक आ जाते हैं.  4.  निश्चय ही जम्मू जो जनसांख्यिकीय असंतुलन से जूझ रहा है .उसके लिए सबसे उपयुक्त ठिकाना है .जबकि आम तौर पर किसी देश से पलायन करने वाले नागरिक पड़ोसी देश के सीमांत इलाकों में शरण लेते हैं .लेकिन रोहिंग्या मुसलमान भारत के सीमांत क्षेत्र के बजाए मध्य क्षेत्र में आ बसे हैं …यह महज संयोग नहीं है और रोहिंग्या मुसलमानों के बीच ऐसे तत्व होने की प्रबल आशंका है, जो चरमपंथी तत्वों के हस्तक बन सकते हैं. इसीलिए इन रोहिंग्या मुसलमानों को शरणार्थी रुप में भावात्मक संरक्षण देने की बजाय इनको देश से बाहर ही करना उपयुक्त होगा.

बांग्लादेशी घुसपैठियों ने गत दो-तीन दशकों में भारत के सामाजिक ताने-बाने को अस्त-व्यस्त किया है  5 .क्या रोहिंग्या मुसलमानों को भी शरण  देकर भारत अपना सामाजिक संतुलन बिगड़ना चाहेगा ? भारत कोई शरणगाह नहीं है ..जो सभी को बिना शर्त समर्थन, संरक्षण एवं शरण  देता रहे. शरणार्थी तौर पर  भारत में बसे रोहिंग्या मुसलमानों की समस्या की दृढ़ता से निपटना चाहिए .रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने से पूर्वोत्तर भारत का सामाजिक संतुलन ही नहीं बिगड़ेगा.. बल्कि भारतीय संस्कृति को खतरा भी उत्पन्न होगा. क्योंकि रोहिंग्या मुसलमान के प्रति भारतीय मुसलमानों में जो हमदर्दी है .वह निश्चित रूप से आगे चलकर घातक सिद्ध होगी.
संदर्भ- सूत्र
1. विजय कुमार ,राष्ट्रधर्म, दिसंबर 20 17, पृष्ठ 8 एवं 13
2. शंकर शरण, दैनिक जागरण ,25 सितंबर ,2012
3. बलबीर पुंज ,दैनिक जागरण ,3 फरवरी 2018 4.वहीं
5.मासिक विवेक ,मुंबई, दिसंबर 2017 ,पृष्ठ -7

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