वैश्विक अर्थव्यवस्था में तेल की भूमिका
प्रमोद भार्गव
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में लगातार इजाफा हो रहा है। नतीजतन पेट्रोल, डीजल और घरेलू गैस के दाम घटने की बजाय बढ़ने की नौबत आ गई है। वैश्विक बाजार में कअंतरराष्ट्रीय बाजार, च्चे तेल का भाव 71 डाॅलर प्रति बैरल से ऊपर पहुंच गया है, जो 2014 के बाद अब तक का सबसे ऊपरी स्तर है। इस बीच दिल्ली में आयोजित ऊर्जा क्षेत्र के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन ‘इंटरनेशनल एनर्जी फोरम‘ (आईईएफ) के 16वें संस्करण का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेल उत्पादक देशों के संगठन (ओपेक) को चेताते हुए कहा है कि ‘यदि समाज के सभी वर्गों को सस्ती दरों पर ऊर्जा की सुविधा नहीं दी गई तो ओपेक देशों को ही घाटा होगा।‘ इस मौके पर इस संगठन के सदस्य देशों में से सऊदी अरब, ईरान, नाइजीरिया और कतर के ऊर्जा मंत्री मौजूद थे। आईईएफ में वैसे तो 72 सदस्य देश हैं, लेकिन इस बैठक में 92 देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे।
जाहिर है, तेल उत्पादक देशों को तेल खरीदार देशों के हितों का भी ख्याल रखने की हिदायत प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में दी है। हालांकि बहुत दिनों से तेल की कीमतों में जो उतार-चढ़ाव देखने में आ रहा है, उसकी एक अन्य वजह खाड़ी देशों के बीच तनाव का बढ़ना भी है। यूरोप की एयर ट्राफिक कंट्रोल एजेंसी ने अगले कुछ दिनों में सीरिया पर हवाई हमले की आशंका भी जताई है। इससे इतर अमेरिका और चीन के बीच छिड़े कारोबारी युद्ध के चलते भी कच्चा तेल महंगा हो रहा है। इधर ओपेक देश व रूस मिलकर कच्चे तेल की आपूर्ति बाधित कर रहे है। इसकी वजह से भी निर्यात प्रक्रिया में देरी हो रही है। भारत की चिंता तेल को लेकर इसलिए भी है, क्योंकि भारत कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार देश है। यहां कुल खपत का 80 फीसदी से ज्यादा तेल आयात किया जाता है। भारत में तेल की कीमतें बढ़ने से महंगाई बढ़ती है और जनता वर्तमान सरकार से ऊबने लग जाती है। जिसका खामियाजा चुनाव में सरकार को भुगतना होता है। हालांकि कीमतें बढ़ने से तेल की खपत भी प्रभावित होती है, जिसका खामियाजा तेल उत्पादक देशों को भुगतना होता है। भारत में अगले 25 वर्षों तक ऊर्जा की मांग में सालाना 4.2 प्रतिषत की दर से वृद्धि होगी, जो अन्य किसी भी देश में होने वानी नहीं है। भारत में गैस की खपत भी 2030 तक तीन गुना हो जाएगी।
पूरी दुनिया में कच्चा तेल वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं की गतिशीलता का कारक माना जाता है। ऐसे में यदि तेल की कीमतों में लगातार बढ़त दर्ज की जा रही है,तो इसका एक कारण यह भी है कि दुनिया में औद्योगिक उत्पादों की मांग बढ़ रही है। बावजूद विश्व अर्थव्यस्था में तेल की कीमतें स्थिर बने रहने की उम्मीद इसलिए की जा रही थी, क्योंकि 2016 में सउदी अरब और ईरान में चला आ रहा तनाव खत्म हो गया था। अमेरिका और यूरोपीय संघ ने ईरान से परमाणु प्रतिबंध हटा लिए थे। इसलिए कहा जा रहा था कि अब ये दोनों देश अपना तेल बाजार में खपाने में तेजी लाएंगे। इस प्रतिस्पर्धा के चलते कच्चा तेल सस्ता मिलता रहेगा।
2016 तक कच्चे तेल की दरों में गिरावट के चलते भारत में इसकी कीमत पानी की एक लीटर बोतल की कीमत से भी नीचे आ गई थी। सार्वजनिक क्षेत्र की सबसे बड़ी तेल विपणन कंपनी इंडियन आॅयल कारपोरेशन के आंकड़ों के अनुसार,तेल कंपनियां रिफाइनरियों से 22.46 रुपए प्रति लीटर पर तेल उपलब्ध कराती हैं। इस पर विशिष्ट उत्पाद शुल्क 19.73 रुपए प्रति लीटर है। वहीं डीजल का रिफायनरी मूल्य 18.69 प्रति लीटर की दर से क्रय करने के बाद डीलरों को 23.11 रुपए प्रति लीटर की दर से हासिल कराया जाता है। डीजल पर उत्पाद शुल्क प्रति लीटर है। यदि डीजल-पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क घटा दिया जाए तो उपभोक्ताओं को मंहगा तेल खरीदने से राहत मिलेगी। किंतु अब तेल की कीमतों में जिस तरह से उछाल आया है, उसके चलते सरकार भी मुश्किल में है। देश की तेल व ईंधन संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भरता कम करने के उपायों में भी सरकार लगी है। इस मकसद पूर्ति के लिए एथनाॅल की खरीद बढ़ाई जा रही है। एथनाॅल पर उत्पाद शुल्क भी समाप्त कर दिया गया है। इस साल डीजल-पेट्रोल में पांच प्रतिषत एथनाॅल मिश्रण का लक्ष्य हासिल कर लेने की उम्मीद सरकार को है।
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के लिए किसी एक कारक या कारण को जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता है। एक वक्त था जब कच्चे तेल की कीमतें मांग और आपूर्ति से निर्धारित होती थीं। इसमें भी अहम् भूमिका ओपेक देशों की रहती थी। ओपेक देशों में कतर, लीबियां, सऊदीअरब, अल्जीरिया,ईरान, ईराक, इंडोनेषिया, कुबैत, वेनेजुएला, संयुक्त अरब अमीरात और अंगोला शामिल हैं। दरअसल अमेरिका का तेल आयातक से निर्यातक देश न जाना, चीन की विकास दर धीमी हो जाना, शैल गैस क्रांति, नई तकनीक, तेल उत्पादक देशों द्वारा सीमा से ज्यादा उत्पादन, ऊर्जा दक्ष वाहनों का विकास और इन सबसे आगे सौर ऊर्जा एवं बैटरी तकनीक से चलने वाले वाहनों का विकास हो जाने से यह उम्मीद की जा रही थी कि भविष्य में कच्चे तेल की कीमतें कभी नहीं बढ़ेंगी। भारत भी जिस तेजी से सौर ऊर्जा में आत्मनिर्भरता की और बढ़ रहा है, उसके परिणामस्वरूप कालांतर में भारत की तेल पर निर्भरता कम होने वाली है। इस्लामिक आतंकवाद और कई देशों में शिया-सुन्नियों के संघर्ष के चलते सीरिया,लीबिया,इराक और अफगनिस्तान में जिस तरह से जीवन बचाने का संकट उत्पन्न हुआ है, उसने सामान्य जीवन तहस-नहस किया हुआ है। इस कारण भी यही उम्मीद थी कि तेल की कीमतें स्थिर रहेंगी। किंतु इधर खाड़ी के देशों में जिस तरह से तनाव उभरा है, उसके चलते अनेक देशों ने तेल का संग्रह शुरू कर दिया है। जिससे युद्ध की स्थिति में इस तेल का उपयोग किया जा सके। चीन, रूस और उत्तरी कोरिया भी बड़ी मात्रा में तेल का भंडारण कर रहे हैं। यह संग्रह तेल में उछाल की एक प्रमुख वजह है। बहरहाल चार साल की नरमी के बाद कच्चे तेल की कीमतों में 71 डाॅलर प्रति बैरल का जो उछाल देखने में आ रहा है, वह 2 साल पूर्व की कीमत 42 डाॅलर प्रति बैरल पर पहुंच जाएगा यह नामुमकिन है। गोया भारत को बढ़ती तेल की कीमतों के कारण आने वाले दिनों में खान-पान व उपभोक्ता वस्तुओं में महंगाई का सामना करना होगा ?