भागी हुई लड़की

पकड़ कर लाई गई थी वह… चुपके से… रेलवे स्टेशन से,
उतर गई थी वह लड़की न जाने क्यों सबके मन से!
सवालिया नजरों से बिंधी जा रही थी उसकी देह,
किसी को न रह गया था उससे कोई भी मोह-नेह,
सबकी आँखों में उसको लेकर थे तरह -तरह के सवाल,
हर नजर उतार लेना चाहती थी उसके जिस्म से खाल,
यही सवाल कि लड़की क्या कुछ घर से भी लेकर भागी थी?
वह अकेली ही भागी थी या किसी लड़के के साथ भागी थी?
रह -रह कर अंदेशाओं के बादल फूट रहे थे,
मन ही मन लोग उसकी छीछालेदर के मजे लूट रहे थे,
उसकी चुप्पी से बढ़ रही थी लोगों की तल्खियाँ,
वैसे उस लड़की ने बटोर रखी थीं ऊँची-ऊँची डिग्रियां,
फिर भी वह ठहरी एक लड़की ही तो आखिर,
ऐसे -कैसे वह इस द्वंद में गई इतना गिर?
पहले वह उलझी रहती थी अपने कैरियर के सपनों में ,
उसकी दुनिया भी सीमित थी उसके अपनों में,
न जाने कैसे फिर उसके भी दिन फिरे,
जिस उम्र में युवतियां दिखाती हैं नखरे,
पालती हैं सपने रहती हैं जैसे बनफूल,
करती हैं विद्रोही बातें फूंकती हैं क्रांति का बिगुल,
उसी उम्र में न जाने कैसे अचानक यह लड़की बदल गई,
उसमें आये हुए बदलावों की बातें गली- मोहल्ले को खल गई।
कभी -कभी उसके घरवाले उस लड़की पर गुर्राते थे,
फिर उस लड़की से घिघियाते हुए,
उसके विदा हो जाने की खैर मनाते थे,
ऐसे ही मुक्त आकाश की विचरणी वह अल्हड़ युवती,
सबकी सुनती रहती थी पर अपनी किसी से न कहती,
कहाँ उलझ गई लड़की अध्यात्म के जाल में ,
क्यों खो बैठी वो साम्य अपना, इस लोक -परलोक के बवाल में?
लोग मुस्करा कर दबी जुबान में बताते हैं,
कि उसे अक्सर ही न जाने क्यों चक्कर आते थे,
नौजवान लड़के उसके पेट दर्द से मनमाफिक अंदाजा लगाते थे,
औरतें कहती थीं ये तो सिर्फ माहवारी की तकलीफ है,
बड़े -बुजुर्ग कहा करते थे कि कोई अनहोनी करीब है,
इन्हीं आशाओं,सरोकारों से वह चकरघिन्नी बनी ,
उसके और घरवालों के बीच में थी कोई रार ठनी।
दुआ करने के लिए कुछ दिन उसने, बाबा की संगत में बिताये थे,
ऐसा भी लोग बताते हैं कि बाबा ने, देवी -देवताओं के फोटो घर से हटवाए थे ,
जब तक बाबा की साधना चली,
वो रही खुशमिजाज और चंगी- भली,
अचानक बाबा के चले जाने से टूट गया था उसका मन,
क्योंकि बाबा को जुटाना था किसी नई साधना का साधन।
वो बहुत व्याकुल हुई ,परेशान रही,
उसने दीन -दुनिया की बहुत सही,
लोगों के तानों ने उसे बहुत रुलाया था,
कहीं भाग जाने का विचार तब उसके मन में आया था,
खुद से लड़कर मजबूरी में उसने ये कदम उठाया था ,
यूँ तो भागी थी वह घर में सबसे लड़कर,
बहुत बुरे हाल में कोई स्टेशन से पकड़कर,
चुपके से उसको कोई घर लाया था।
लोग कहते हैं कि उसके सिर पर,
किसी भूत या प्रेत का साया था,
वह किसके लिए भागी थी, उसके घर मे कोई भी ये,
अब तक न जान पाया था?
फिलहाल उसे दवा दे दी गई है,
वह शायद बेसुध सी है, या आराम कर रही है,
ताकि भागने के प्रश्नों से कुछ और देर तक बच सके,
लेकिन अपने सपनों में वह निरन्तर भाग ही रही है,
और एक अनजान कस्तूरी की, उसकी तलाश जारी है ।

कृते -दिलीप कुमार

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