अपनों से मिलने की ऐसी तड़प , विकट प्यास तो न थी शहर की सड़कें पहले कभी यूं उदास तो न थी पीपल की छांव तो हैं अब भी मगर बरगद की जटाएंं यूं निराश तो न थी गलियों में होती थी समस्याओं की शिकायत मनहूसियत की महफिल यूं बिंदास तो न थी मुलाकातों में सुनते थे ताने – उलाहने मगर जानलेवा खामोशियों की यह बिसात तो न थी