समलैंगिक विवाहः आधुनिक सभ्यता का सर्वाधिक असभ्य रूप

-डॉ. कौशलेन्द्र मिश्र-

same genderअप्राकृतिक मैथुन के वशीभूत हो जब एक कामी पुरुष दूसरे कामी पुरुष से विवाह करके अपने छद्म गृहस्थ्य जीवन में प्रवेश करने का उत्सव मनाने लगे तो एक व्यक्तिगत अनैतिक कृत्य सामाजिक अनैतिक कृत्य के अपराध में रूपांतरित होने लगता है, और ऐसा कृत्य यदि किसी प्रधानमंत्री द्वारा किया जाय तो निश्चित ही यह समाज में कई लोगों के लिये एक अनुकरणीय कुकृत्य बन जाता है ।

लग्ज़मबर्ग के प्रधानमंत्री ज़ेवियर बेटेल ने अपने समलैंगिक मित्र गॉथर डेस्टेनी से समारोहपूर्वक विवाह कर लिया है जिसमें लगभग एकसौ अतिथि भी सम्मिलित हुये । समारोह में सम्मिलित हुये बेल्ज़ियम के प्रधानमंत्री चार्ल्स माइकल ने डेस्टेनी की प्रशंसा भी की । इससे पहले आइसलैण्ड के प्रधानमंत्री जोहाना भी समलैंगिक विवाह कर चुके हैं ।

पश्चिम की हर बुरायी के अनुकरण पर आमादा भारतीय समाज के लिये योरोप की इस लज्जास्पद और घृणास्पद घटना पर भारत में चर्चा करना आवश्यक है । समलैंगिक विवाह के प्रकरण में कुछ पक्ष विचारणीय है –

  • नैतिक पक्ष – विश्व के किसी भी समाज में समलैंगिक यौन सम्बन्धों को कभी भी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता रहा है । अप्राकृतिक होने के कारण यह एक लज्जा और घृणा का विषय माना जाता रहा है । व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर यह एक विकृत स्वेच्छाचारिता है जिसे किसी भी सभ्य समाज में अनुकरणीय नहीं माना जा सकता । आज भले ही लोग इन सम्बन्धों को समाज में प्रतिष्ठित करने में लगे हुये हों किंतु बहुत से लोग आज भी इसे छिपाने का प्रयास करते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि यह एक अप्रतिष्ठाकारी कृत्य है । कोई भी कार्य जिसे प्रकट करने में दुस्साहस और निर्लज्जता की आवश्यकता हो प्रतिष्ठाकारक नहीं हो सकता । हमें अनैतिक कृत्यों को नैतिक कृत्यों में और सामाजिक अपराधों को सामाजिक प्रतिष्ठा में रूपांतरित करने के असभ्य आचरण का कोई अधिकार नहीं है । हम किसी को भी सभ्यता विकृत करने की स्वतंत्रता नहीं दे सकते ।
  • सामाजिक पक्ष – स्त्री-पुरुष का विवाह एक सामाजिक सुव्यवस्था है जो सभ्यता का प्रतीक है । विवाह स्त्री के प्रति निष्ठापूर्ण जीवन और समाज के प्रति दायित्वपूर्ण सम्बन्धों को सुनिश्चित करता है । समलैंगिक विवाह का ऐसा कुछ भी आदर्श या उद्देश्य नहीं होता । समलैंगिक यौन सम्बन्ध एक अप्राकृतिक कृत्य एवं मनोविकृति है जिससे विवाह और गृहस्थ जीवन के अन्य उद्देश्यों का दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं है । भारतीय परिवेश में विवाह एक ऐसी संस्था है जो व्यक्ति और समाज के सकारात्मक एवं रचनात्मक सम्बन्धों को न केवल जोड़ती है, उन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे ले जाती है, स्त्री-पुरुष सम्बन्धों को प्राकृतिकरूप से सहज स्थायित्व प्रदान करती है अपितु यौन सम्बन्धों के सभ्य स्वरूप को भी प्रतिष्ठित करती है । समलैंगिकों के पारस्परिक विवाहों की परिवार एवं समाज के किसी भी दायित्व के निर्वहन में कोई भूमिका नहीं होती इसलिये ऐसे अनैतिक सम्बन्धों को समारोहपूर्वक मनाये जाने और सामाजिकरूप से प्रतिष्ठित करने का कोई भी कारण नहीं है ।
  • प्रकृति-वैज्ञानिक पक्ष – यौनसम्बन्ध एक मनोदैहिक प्रक्रिया है जिसमें शरीर के कई अंगों-उपांगों, ग्रंथियों और हार्मोंस का एक सामूहिक संयोग होता है । यह एक फ़िजियोलॉज़िकल घटना है जिसमें भाग लेने वाले सभी घटकों की भूमिका सुनिश्चित होती है । इन घटकों में गुदा का कोई स्थान नहीं है । चूँकि गुदा की म्यूकस मेम्ब्रेन मैथुन के लिये उपयुक्त नहीं है और वह विजातीय तत्वों के प्रति अधिक सुग्राही है इसलिये गुद मैथुन कई वायरस और अन्य सूक्ष्म माइक्रॉब्स को पैथोलॉजिकल घटनाओं के लिये आमंत्रित करने का कारण बनता है । एड्स, हर्पीज़ और हिपेटाइटिस जैसी व्याधियों के लिये गुद मैथुन भी एक कुख्यात माध्यम है ।
  • दार्शनिक पक्ष – ईश्वर ने स्त्री और पुरुष को परस्पर एक-दूसरे का पूरक निर्धारित किया है । यह पूर्णता विपरीत लिंगियों के लिये ही निर्धारित है समलिंगियों के लिये नहीं । स्त्री-पुरुष की जेनेटिक संरचना भी पूरकत्व के सिद्धांत को प्रमाणित करती है । विवाह का एक प्रमुख उद्देश्य संतति के माध्यम से परम्पराओं का संवहन है, विकृत भोग नहीं ।

 

आधुनिक समाज में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर कई अनैतिक कार्य प्रशंसा के कारण बनते जा रहे हैं । “लिव इन रिलेशनशिप”, लिस्बियनिज़्म, सोडोमी, विवाहेतर यौन सम्बन्ध, सामूहिक यौनोत्सव और एक्स्चेंज ऑफ़ पार्टनर जैसी घटनायें परम्पराओं में सम्मिलित होती जा रही हैं । किसी भी समाज के लिये नैतिक विघटन की यह एक गम्भीर चेतावनी है । हमें समय रहते सचेत हो जाने की आवश्यकता है ।

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