समरथ को नहिं दोष गुसाईं

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कहावतों का संसार अजब-गजब है। बड़ी से बड़ी बात को छोटे में कहना हो, तो कहावत का सहारा लिया जाता है। हर भाषा में ये कहावतें विद्यमान हैं। इनसे किसी भी लेख, व्यंग्य, निबंध या भाषण की सुंदरता बढ़ जाती है। भाषा की तरह हर क्षेत्र और जाति-बिरादरी के लिए भी कहावतें बनी हैं। इनमें से कुछ व्यंग्यात्मक होती हैं, तो कुछ जानबूझ कर दिल जलाने वाली।

कई कहावतें किसी ग्रंथ से ली गयी हैं। ‘समरथ को नहिं दोष गुसाईं’ ऐसी ही एक कहावत है। इसका सीधा सा अर्थ है कि सबल और समर्थ व्यक्ति पर कोई दोष नहीं लगता। मुझे बचपन की एक बात याद आती है। एक बार मेरे बाबाजी बाहर धूप में बैठे अखबार और चाय दोनों से न्याय कर रहे थे। चाय पीकर उन्होंने कप वहीं कुरसी के पास नीचे रख दिया। अचानक मैं वहां से गुजरा, तो मेरा पैर लगने से वह कप लुढ़क गया। बची हुई चाय गिरने से फर्श गंदा हो गया। फिर क्या था; बाबाजी भड़क गये। उन्होंने मुझे एक तमाचा लगाया और बोले, ‘‘अंधा होकर चलता है। देख नहीं रहा नीचे कप रखा है।’’ मैं बेचारा, किस्मत का मारा क्या कहता। कप उठाकर रसोई में पहुंचाया और एक गीला कपड़ा लाकर फर्श साफ किया।

अगले दिन मैं धूप में बैठकर अपना स्कूल का काम कर रहा था, तभी मां ने मुझे चाय पकड़ा दी। मैंने भी चाय पीकर कप वहीं नीचे कुरसी के पास रख दिया। अचानक बाबाजी वहां से निकले। उनका पैर लगकर कप गिरा और फर्श गंदा हो गया। बाबाजी ने फिर एक तमाचा लगाया और बोले, ‘‘ये कप रखने की जगह है ?’’ मेरी समझ में नहीं आया कि जो काम कल बाबाजी ने किया था, वही आज मैंने किया; पर दोनों बार सजा मुझे ही मिली। तब मैं छोटा था, इसलिए बात समझ नहीं आयी; पर आज जब ‘समरथ को नहिं दोष गुसाईं’ वाली कहावत पढ़ता हूं, तो पूरी बात स्पष्ट हो जाती है।

कुछ ऐसा ही पिछले सप्ताह हुआ, जब भारतीय वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में एक ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ का अभ्यास किया। उन्होंने अंतरिक्ष में घूमते हुए एक छोटे उपग्रह को धरती से भेजी गयी मिसाइल से मार गिराया। इस काम में कुछ जमा तीन मिनट लगे। 300 कि.मी. प्रति घंटा की गति से उड़कर वह मिसाइल उपग्रह से टकरायी। इससे उपग्रह हजारों टुकड़ों में टूटकर अंतरिक्ष में बिखर गया। आज तक यह क्षमता अमरीका, रूस और चीन के पास ही थी; पर अब भारत दुनिया का चैथा ऐसा देश बन गया, जो अंतरिक्ष से होने वाले किसी प्रहार को वहीं नष्ट कर सकता है।

पर इससे कुछ देशों के पेट में दर्द होने लगा। पाकिस्तान ने इसकी आलोचना की। चीन भी हमारा पुराना शत्रु है; पर डोकलम विवाद के बाद वह भी मोदी से पंगा लेने से बचता है। उसने संयमित टिप्पणी करते हुए कहा कि अंतरिक्ष में शांति बनाये रखने की जरूरत है; पर सबसे मजेदार टिप्पणी अंकल सैम यानि अमरीका ने की। उन्होंने कहा कि ऐसे प्रयोगों से अंतरिक्ष में कचरा फैलता है, जो ठीक नहीं है। यद्यपि वह खुद लगातार ऐसे प्रयोग करता रहता है। हो सकता है उसके ऐसे प्रयोगों से अंतरिक्ष में कचरे की बजाय जलेबी या रसगुल्ले फैलते हों।

आधुनिक युग में ‘समरथ को नहिं दोष गुसाईं’ का यह सबसे अच्छा उदाहरण है। अमरीका जो चाहे कहे या करे, किसी की बोलने की हिम्मत नहीं होती। चूंकि कोई उसके कर्ज से दबा है, तो कोई उसके उधार मिले हथियारों से। अपनी आर्थिक और सामरिक दादागिरी के बल पर वह दुनिया का स्वयंभू खुदा बना है। अगली बार अमरीका जब ऐसा प्रयोग करेगा, तो उससे बरसने वाले रसगुल्ले या जलेबियां दुनिया भर में गिरेंगी ही। मैंने तो कई बड़े टब छत पर रख दिये हैं, जिससे रस सहित हजारों रसगुल्ले और जलेबी समेटी जा सकें।

आप भी आइये। अमरीकी रसगुल्ले और जलेबी साथ-साथ बैठकर खाएंगे। साथ खाने में जो मजा है, वह अकेले खाने में कहां। इसलिए आना जरूर। – विजय कुमार,

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