आर्यसमाज धामावाला देहरादून का का सत्संग- ‘जो मनुष्य स्वराज्य की अर्चना करेगा वह कभी बुरा काम नहीं करेगाः आचार्य सत्यदेव निगमालंकार’

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मनमोहन कुमार आर्य,

आर्यसमाज धामावाला, देहरादून ऋषि दयानन्द द्वारा सन् 1879 में स्थापित आर्यसमाज है। ऋषि ने यहां विश्व की सबसे पहली शुद्धि की थी जिसमें जन्म से मुस्लिम बन्धु श्री मोहम्मद उमर को उनकी इच्छा से परिवार सहित ‘वैदिक धर्मी आर्य’ बनाया था। उनका नाम भी बदल कर अलखधारी किया था। यह व्यक्ति अपने जीवन भर आर्यसमाज के अनुयायी बने रहे थे। स्वामी समर्पणानन्द सरस्वती जिनका पूर्व नाम पं. बुद्धदेव विद्यालंकार था, इनके नाना पं. कृपा राम जी ने स्वामी दयानन्द जी को एक धनाड्य परिवार के दो युवकों को ईसाई बनने से बचाने के लिए देहरादून आमंत्रित किया था। स्वामी जी इसी कारण सन् 1879 में देहरादून आये और उन दो युवकों को वैदिक धर्म की श्रेष्ठता बता कर विधर्मी होने से बचाया था। इसी परिवार की निशानी देहरादून का प्रसिद्ध घंटाघर है। यह घंटाघर ही देहरादून की मुख्य पहचान है जो नगर के बीचों-बीच बना हुआ है। आठ घड़ियों वाले इस घंटाघर को सभी राष्ट्रीय पर्वों पर प्रदेश सरकार की ओर से सजाया व संवारा जाता है। आर्यसमाज के आज 19 अगस्त, 2018 के रविवारीय सत्संग का आरम्भ देवयज्ञ अग्निहोत्र से हुआ जिसका ब्रह्मतत्व आर्यसमाज के विद्वान पुरोहित एवं सुमधुर भजन गायक पं. विद्यापति शास्त्री जी ने किया। यज्ञ में पन्द्रह से अधिक स्त्री, पुरुष व युवकों सहित आर्यसमाज द्वारा संचालित श्री श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम के बालक व बालिकायें भी बड़ी संख्या में सम्मिलित थे।

यज्ञ के बाद का कार्यक्रम समाज के सत्संग भवन में हुआ। सत्संग के आरम्भ में श्री श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम की तीन कन्याओं ने एक भजन गाया जिसके बोल थे ‘सविता पिता विधाता दुरितों को दूर दो’ इस भजन की एक अन्य पंक्ति थी ‘तुम हो सुधा के सागर खाली है मेरी गाागर, वर्षा के सोम बरसा सबके रोग दूर कर दो।’ इस भजन के बाद एक अन्य भजन आर्यसमाज के पुरोहित पं. विद्यापति शास्त्री जी द्वारा प्रस्तुत किया गया जिसके बोल थे ‘सारे नामों में है ओ३म् नाम प्यारा, देने वाला है वो सबको सहारा, हमें और जगत से क्या लेना, क्या लेना।’ इस भजन के बाद बाल-वनिता आश्रम के एक बालक रजत ने सामूहिक प्रार्थना कराई। पहले उन्होंने ‘सुखी बसे संसार सब दुखिया रहे न कोई’ गीत की पंक्तियां गाई। उसके बाद गायत्री मन्त्र व उसका पद्यार्थ मधुर आवाज में गाया। इसी क्रम में बालक रजत ने ‘ओ३म् विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव’ मन्त्र का पाठ किया। इस मन्त्र का अर्थ भी उन्होंने प्रस्तुत किया। सामूहिक प्रार्थना के अन्त में उन्होंने कहा कि ‘हे ईश्वर! हमें शक्ति दो कि हम असत्य को छोड़कर सत्य मार्ग पर चलें। विद्या प्राप्त कर हम अमृत पथ की ओर बढ़े।’

सामूहिक प्रार्थना के बाद सत्यार्थ प्रकाश के बारहवें समुल्लास का पाठ आर्य पुरोहित पं. विद्यापति शास्त्री जी ने किया। आज का प्रकरण जैन मुनियों द्वारा मुंह पर पट्टी बांधने के खण्डन का था। स्वामी दयानन्द जी ने सत्यार्थ प्रकाश में जैन मुनियों द्वारा अपने मुंह पर जो पट्टी बांधी जाती है, उसके विषय में कहा है कि उससे अधिक मात्रा में जीवों व किटाणुओं को अधिक कष्ट होता है। इसे तर्क व युक्ति से सिद्ध किया गया है। ऋषि दयानन्द के इससे सम्बन्धित पाठ को पढ़ कर श्रोताओं को समझाया गया। पंडित जी ने कहा कि मुंह में पट्टी बांधने से मुंह के निकट अधिक गर्मी होने से सूक्ष्म किटाणुओं को अधिक कष्ट होता है। उन्होंने कहा कि मुंह पर पट्टी न बांधने वाला धर्मात्मा होता है। पंडित जी ने कहा कि हमारे उदर में जो दुर्गन्ध होता है वह श्वांस से बाहर आता है। पट्टी बांधने से मुंह के निकट के स्थान पर दुर्गन्ध की मात्रा सामान्य से अधिक होती है। उन्होंने कहा कि मुंह पर पट्टी बांधने से मनुष्य ठीक से बोल भी नहीं पाता और वह जो बोलता है वह शुद्ध व स्पष्ट सुनाई नहीं देता। इसके पश्चात श्री नवीन भट्ट जी, जो आर्यसमाज के युवा मंत्री हैं, उन्होंने प्रवचन के लिए पं. सत्यदेव निगमालंकार, हरिद्वार को आमंत्रित करते हुए कहा कि आर्यसमाज की नींव वेद व सत्य पर आधारित है। उन्होंने विद्वान वक्ता को अपना व्याख्यान देने के लिए निवेदन किया।

डा. सत्यदेव निगमालंकार ने कहा कि भारत के मत-मतान्तरों के अपने जो धर्म के ग्रन्थ हैं, उनमें देश भक्ति व राष्ट्र की चर्चा व उपदेश प्रायः नहीं है। उन्होंने कहा कि चारों वेदों में स्वराज्य की चर्चा है। हमारा देश लम्बी अवधि तक पराधीन रहा है। मुगलों के बाद हम अंग्रेजों के पराधीन रहे। पराधीनता दूर कर स्वराज्य स्थापित करने के लिए आर्यसमाज ने बहुत प्रयास व बलिदान किये हैं। देश को स्वतन्त्र कराने में अन्य किसी मत-मतान्तर का सामूहिक रूप से कोई प्रयास दृष्टिगोचर नहीं होता जैसा आर्यसमाज का रहा है। पं. सत्यदेव ने कहा कि आर्यसमाज का योगदान सबसे अधिक है। आचार्य सत्यदेव जी ने सत्यार्थप्रकाश के आठवें समुल्लास में ऋषि दयानन्द के शब्दों को स्मरण किया। ऋषि के शब्द हैं ‘कोई कितना ही करे परन्तु जो स्वदेशीय राज्य होता है वह सर्वोपरि उत्तम होता है। अथवा मत-मतान्तर के आग्रहरहित अपने और पराये का पक्षपातशून्य प्रजा पर पिता माता के समान कृपा, न्याय और दया के साथ विदेशियों का राज्य भी पूर्ण सुखदायक नहीं है।’ विद्वान वक्ता ने एक उदाहरण दिया कि यदि किसी व्यक्ति को बांध कर रखा जाये और उसे भोजन, आवास व अन्य सभी सुविधायें प्रचुरता से दी जाये, जिस प्रकार वह बन्धन में दुःख अनुभव करता है उसी प्रकार का व उससे भी अधिक दुःख पराधीन देश व उसके व्यक्तियों को होता है। यदि उस पराधीन व्यक्ति की पराधीनता दूर कर दी जाये तो वह सुखी होता है।

विद्वान आचार्य ने कहा कि महर्षि दयानन्द ने देश में स्वराज्य स्थापित करने की अपने अनुयायियों को सही अर्थों में प्रेरणा की। ऋषि दयानन्द की पुस्तक आर्याभिविनय का उल्लेख कर उन्होंने कहा कि इस प्रार्थना के ग्रन्थ में भी स्वराज्य प्राप्ति की प्रार्थना वा कामना की गई है। आचार्य जी ने कहा कि वेद मन्त्र ‘आ ब्रह्मन् ब्राह्मणों ब्रह्मवर्चसी जायताम्’ में भी स्वराज्य की प्रार्थना व कामना की गई है। आचार्य जी ने ऋग्वेद के एक मन्त्र के शब्दों ‘अर्चन ननु स्वराज्यं’ की भी चर्चा की और कहा कि इसमें प्रेरणा की गई है कि हम स्वराज्य की अर्चना करें। उन्होंने कहा कि हम स्वराज्य की उसी प्रकार से अर्चना करें जैसे कि स्वामी श्रद्धानन्द, पं. रामप्रसाद बिस्मिल, लाला लाजपतराय और भगत सिंह आदि ने की थी। पं. राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां का उल्लेख कर उन्होंने कहा कि इन दोनों की मित्रता स्वराज्य प्राप्ति के लिए हुई थी।

आचार्य सत्यदेव निगमालंकार जी ने भक्त अमीचन्द जी की चर्चा की और कहा कि उनका एक प्रसिद्ध भजन है ‘आज सब मिल गीत गाओ उस प्रभु के धन्यवाद’। उन्होंने कहा कि अमीचन्द जी के एक शिष्य थे श्री अवध बिहारी। वह आठवीं कक्षा में पढ़ते थे। उनका भी देश की आजादी के लिये बलिदान हुआ था। वह बम बनाना सीखे थे और देश की आजादी के लिए बम बनाते थे। उन्होंने बंगाल आदि अनेक स्थानों पर एक के बाद दूसरा, इस प्रकार से कुल चार बम विस्फोट किये थे। वह पकड़ लिये गये थे। उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया। फांसी के समय उनकी आयु 20 वर्ष थी। पं. सत्यदेव जी ने कहा कि महर्षि दयानन्द जी की प्रेरणा से ही इन लोगों ने यह कार्य किया।

आचार्य सत्यदेव जी ने कहा कि महर्षि दयानन्द जी ने भारत को जगाने का प्रयास किया। पं. बुद्ध देव विद्यालंकार की चर्चा कर उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा है कि महर्षि दयानन्द वह महापुरुष थे जिन्होंने पावन को भी पावन किया। आचार्य जी ने महाभारत काल के बाद बकरी आदि पशुओं की आहुतियां यज्ञ में दिये जाने की चर्चा की। यह कार्य उन दिनों के नामधारी ब्राह्मण किया करते थे। उन दिनों बड़े-बड़े यज्ञ किये जाते थे जिनमें बकरी के बच्चों की आहुतियां दी जाती थीं। आचार्य जी ने महात्मा बुद्ध का वह प्रकरण भी प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने काशी के ब्राह्मणों को जो यज्ञ में पशु हिंसा कर रहे थे, उन्हें कहा था कि वह उस वेद को नहीं मानते जिसमें पशुओं की हत्या कर उनकी आहुतियां देने का विधान है। उन्होंने यह भी कहा था कि यदि वेद ईश्वर ने बनाये हैं तो वह उस ईश्वर को भी नहीं मानते। आचार्य जी ने कहा कि शायद् इसी लिये महात्मा बुद्ध को अनीश्वरवादी कहा जाता है। विद्वान वक्ता ने कहा कि ऋषि दयानन्द के सामने भी ऐसी ही जटिल परिस्थितियां थीं। आचार्य जी ने उन मन्त्रों की भी चर्चा की जिनका प्रयोग वह पशु हिंसा के लिए करते थे। विद्वान वक्ता ने उन मन्त्रों के ऋषि दयानन्द कृत सत्य अर्थों पर भी प्रकाश डाला। आचार्य जी ने कहा कि यज्ञ में पशु हिंसा वाले तथाकथित मन्त्रों में गुरुकुल के बच्चों की आचार्य द्वारा इन्द्रियों को पवित्र करने की शिक्षा है।

आचार्य सत्यदेव निगमालंकार जी ने कहा कि आर्यसमाज ने देश को उत्तम शिक्षा व राष्ट्र नीति प्रदान की है। पंजाब में वृद्धि को प्राप्त नशे की प्रवृत्ति की चर्चा कर आचार्य जी ने कहा कि आर्यसमाज ही समाज से ऐसी विकृतियों को दूर कर सकता है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति निराशा के कारण आत्म हत्यायें करते हैं। आचार्य जी ने कहा कि वेद और आर्यसमाज का साहित्य पढ़ने से मनुष्य निराश नहीं होता। वह विपरीत परिस्थितियों में भी अपने पुरुषार्थ से स्थिति को परिवर्तित करने की आशा रखता है। इसी कारण आर्यसमाज स्वयं तो आत्महत्यायों से मुक्त है ही, वह समाज के लोगों को भी इस विकृति से मुक्त करा सकता है।

पंडित सत्यदेव जी ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी आर्य परिवार से थे। उन्होंने वर्षों तक आर्य कुमार सभा में काम किया था। उनकी शिक्षा दीक्षा भी दयानन्द आर्य वैदिक कालेज में हुई थी। वह सत्यार्थप्रकाश के भी प्रशंसक थे। आचार्य जी ने श्रोताओं को कहा कि वह आर्य अनाथालय के बच्चों की शिक्षा बिना किसी भेदभाव अपने बच्चों की तरह से करायें। बंगाल और केरल आदि अनेक राज्यों में ईसाई व मुसलमानों द्वारा जो धर्मान्तरण किया गया है, उसका कारण भी हम लोगों का अपने ही धर्म बन्धुओं की उचित सेवा व उनका सहयोग न करना था। आचार्य जी ने यह भी कहा कि हम लोगों की अपने ही समुदाय के निर्धन लोगों व उनके बच्चों से सहानुभूति नहीं है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के कार्यों की आचार्य जी ने प्रशंसा की। आचार्य जी ने पं. लेखराम एवं पं. गुरुदत्त विद्यार्थी जी के कार्यों का भी उल्लेख किया। उन्होंने आर्यसमाज द्वारा स्थापित पुत्री पाठशालाओं की स्थापना व संचालन का भी अपने प्रवचन में उल्लेख किया। आचार्य जी ने कहा कि हमें अपने गुरुकुलों की ओर भी ध्यान देना होगा। आचार्य जी के अनुसार यदि हम किसी बड़े वृक्ष को उखाड़ कर लगाये तो उसके नई भूमि में लगने पर पूर्ववत् पल्लवित रहने की संभावना कम होती है जबकि एक नये पौधे को किसी भी मौसम में उखाड़ कर दूसरी जगह रोपित करने पर उसके पल्लवित होने की सम्भावना अधिक होती है। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार बच्चों को शिक्षित करने से हमें अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। उनसे दूर रहकर व उन्हें दूर रख कर आर्यसमाज को लाभ नहीं होगा। आचार्य जी ने कहा कि हमें देश के लिए भी काम करना होगा। उन्होंने कहा कि हमें जन्म हमारी माता ने दिया है परन्तु हम पुत्र पृथिवी माता के होते हैं जिसके अन्न, जल, वायु एवं भूमि पर हमारा जीवन पलता व बीतता है। आचार्य जी ने यह भी कहा कि जो मनुष्य स्वराज्य की अर्चना करेगा वह कभी बुरा काम नहीं करेगा।

आर्यसमाज के प्रधान डा. महेशचन्द्र शर्मा ने आचार्य सत्यदेव निगमालंकार का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि अन्तःकरण की निर्मलता ही मनुष्य को ऊंचा उठाती है। जिन सदस्यों के आगामी सप्ताह जन्म दिवस हैं उन्हें शुभकामनायें दी गईं। प्रधान जी ने जर्मनी व संस्कृत के विद्वान डा. मारी विण्टर के ऋषि दयानन्द के प्रति कहे गये विचार बताते हुए कहा कि उन्होंने लिखा है कि ‘स्वामी दयानन्द एक महान तथा पुण्यशाली व्यक्ति थे। वह भारत के कीर्ति स्तम्भ थे। उन्होंने वेदों का गहन अध्ययन किया था।’ प्रधान जी ने कहा कि डा. मारी विण्टर ने ऋग्वेद का भाष्य भी किया है और वह मैक्समूलर के मित्र भी रहे हैं। इसके बाद आर्यसमाज के नियमों का पाठ व शान्ति पाठ के साथ आज का सत्संग समाप्त हुआ।

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