एक वृक्ष भी बचा रहे संसार में…!

ओम माली अपनी एक कविता में प्रकृति पर कुछ यूं लिखते हैं -‘जब स्वार्थों से भर जाएंगे घर-घर, मन-धरा भी जब हो जाएगी बंजर। तब-तब आसमां भी बरसाएगा अग्नि, मृत्यु-तांडव सा चहुँओर होगा मंजर ।।तुम प्रकृति का करते रहोगे अति दोहन, शमशीरें बन मेघों से बरसेगी बिजलियाँ।।तो कैसे सुरक्षित रह पाएगी यह दुनिया ?’ आज जंगल के जंगल काटे जा रहे हैं, ग्लोबल वार्मिंग की समस्या जन्म ले चुकी है। धरती के पारिस्थितिकी तंत्र में आमूलचूल परिवर्तन आ गये हैं, वन्य जीवों, वनस्पतियां आदि का हम संरक्षण नहीं कर पा रहे हैं। सच तो यह है कि आज प्राकृतिक असंतुलन के कारण हम ग्लोबल वार्मिंग, विभिन्न बीमारियों, महामारियों , विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं, तापमान में वृद्धि(ग्लोबल वार्मिंग) आदि जैसी विभिन्न समस्याओं का लगातार सामना कर रहे हैं। हमारीअगली पीढ़ी के लिए प्रकृति का संरक्षण आज बहुत ही आवश्यक व जरूरी हो गया है। इसलिए, संसाधनों को बचाने के महत्व को समझने, इसे रीसायकल करने, इसे संरक्षित करने और उन्हें नुकसान पहुंचाने के कारण होने वाले दुष्परिणामों को समझने के लिए दुनिया भर के लोगों में जागरूकता बढ़ाना महत्वपूर्ण है।हमें उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का जिम्मेदारी से उपयोग करना चाहिए और इसे बर्बाद नहीं करना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी भी इनका उपयोग, उपभोग कर सके। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज मानवजाति पर प्रकृति का खतरा लगातार मंडरा रहा है, क्यों कि मानव ने अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए जंगल के जंगल काट लिए हैं, हर तरफ जहां देखो कंक्रीट ही कंक्रीट की दीवारें आज खड़ी नजर आती हैं। प्रकृति और विकास के बीच आज सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है। याद रखिए कि प्रकृति ने हमें पानी, हवा, मिट्टी, खनिज, पेड़, जानवर, भोजन आदि जैसी जीने के लिए बुनियादी आवश्यकताएं प्रदान की हैं। इसलिए हमें प्रकृति को स्वच्छ और स्वस्थ तो रखना ही चाहिए। प्रकृति का संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसकी बिगड़ती स्थिति के लिए औद्योगिक विकास सहित कई अन्य मानवजनित कारक जिम्मेदार हैं। हम जो कुछ भी करते हैं, वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रकृति को प्रभावित करता है। इसीलिए हमें किसी प्रकार का क़दम उठाने से पहले सोचना चाहिए कि इससे प्रकृति पर कोई नकारात्मक प्रभाव तो नहीं पड़ेगा। आज बढ़ती आबादी के बीच प्रकृति के विभिन्न संसाधनों का मानव ने इस कदर दोहन किया है कि अब प्रकृति का तांडव रूप मानव को देखने को मिल रहा है। कहीं पर बाढ़ है तो कहीं पर सूखा, कहीं पर भू-स्खलन हो रहे हैं तो कहीं पर भूकंप आ रहे हैं। कहीं पर ज्वालामुखी फट रहे हैं तो कहीं सुनामी देखने को मिल रही है। धरती के तापमान में लगातार परिवर्तन तो हो ही रहा है, बढ़ते तापमान के कारण आज अनेक ग्लेशियर पिघल रहे हैं और ग्लोबल वार्मिंग से मानवजाति का अस्तित्व लगातार खतरे की ओर बढ़ता चला जा रहा है। यदि मानव जल्द ही नहीं संभला तो आने वाले समय में प्रकृति का घोर रौद्र रूप मानव को देखने को मिलेगा, इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता है। विकास के नाम पर मनुष्य ने प्रकृति को कहीं का भी नहीं छोड़ा है। मनुष्य सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी तरक्की चाहता है, सहूलियतें चाहता है, उसे सिर्फ और सिर्फ विकास चाहिए लेकिन क्या विकास और तरक्की के साथ ही मनुष्य को यह नहीं चाहिए कि वह प्रकृति से तालमेल बिठाकर, सामंजस्य स्थापित कर आगे बढ़ें ? मनुष्य चाहे कितनी भी तरक्की, विकास, उन्नति क्यों न कर लें, विज्ञान और तकनीक चाहे कितनी ही आगे क्यों न चली जाए, लेकिन प्रकृति के आगे तो मनुष्य सदैव बौना ही रहेगा। सच तो यह है कि प्रकृति की शक्ति का मनुष्य के पास बस एक ही तोड़ है और वह यह है कि मनुष्य प्रकृति का, इसके समस्त संसाधनों का विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग करें, प्रकृति का हर हाल और परिस्थितियों में संरक्षण करें,इसकी रक्षा करें। हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि धरती पर जीवन जीने के लिये ईश्वर से हमें बहुमूल्य और कीमती उपहार के रुप में प्रकृति मिली है। दैनिक जीवन के लिये उपलब्ध सभी संसाधनों द्वारा प्रकृति हमारे जीवन को बहुत ही आसान व सरल बना देती है। एक माँ की तरह हमारा लालन-पालन, हमारी मदद(हमें विभिन्न संसाधनों को उपलब्ध कराती है) करती है। वास्तव में  हमें प्रकृति का धन्यवाद करना चाहिए कि इसी प्रकृति के कारण से हम मानवों का इस मानवजाति का अस्तित्व संभव हो सका है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश और पंजाब में बारिश और बाढ़ का तबाही अलर्ट जारी किया गया है। इस बार मानसून खूब बरसा। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में या यूं कहें कि समस्त भारत में ही बहुत जोरदार बारिश हुई। इससे जनजीवन अस्तव्यस्त हो गया। हिमाचल प्रदेश में तो बहुत अधिक तबाही देखने को मिली, वर्तमान में भी यह जारी है। पंजाब, उत्तराखंड ने भी बहुत नुक्सान व परेशानियों को झेला। हाल ही में हिमाचल के कुल्लू में भूस्खलन के कारण  नये अड्डे के पास सात बहुमंजिला इमारतें अचानक ध्वस्त हो गई और नये अड्डे पर जमा अनेक सवारियों को अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ा। लेकिन अच्छी बात यह रही कि इसमें कोई भी जनहानि नहीं हुई। बहरहाल, मनुष्य को यह चाहिए कि वह धरती पर उपलब्ध विभिन्न संसाधनों का विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग करें, क्यों कि बढ़ती आबादी के साथ मनुष्य की जरूरतों में भी लगातार इजाफा हो रहा है। जानकारी देना चाहूंगा कि प्राकृतिक संसाधन वास्तव में वे संसाधन हैं जो पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से घटित होती है। वास्तव में यह हमारे जीवन का एक अनिवार्य व अभूतपूर्व हिस्सा है। इसमें हवा, पानी, सूरज की रोशनी, कोयला , पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, जीवाश्म ईंधन, तेल आदि शामिल हैं। हालांकि, अपने आर्थिक लाभ के लिए मनुष्यों द्वारा इनका शोषण किया जाता है। आज अत्यधिक उपयोग के कारण विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों का लगातार ह्रास हो रहा है। इनमें से कुछ संसाधन नवीनीकरण की क्षमता के साथ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि प्राकृतिक संसाधन सृष्टि के लिए उपहार हैं। ये विभिन्न मानवीय आवश्यकताओं को पूर्णतः संतुष्ट करने में सहायता करते हैं। इसके अलावा, प्राकृतिक संसाधनों का तर्कसंगत उपयोग पृथ्वी के वायुमंडल को भी सही बनाए रखता है। साथ ही, विवेकपूर्ण उपयोग से जैव-विविधता का संरक्षण होता है। प्राकृतिक संसाधनों के बिना मनुष्य अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकता है। अत: इसका संरक्षण बहुत ही आवश्यक है। बहरहाल,आधुनिक भारत में नवीनीकरण व औद्यौगिककरण से विकास ने देश के पर्यावरण को इस तरह दूषित कर दिया है, कि मानव जाति का संपूर्ण जीवन ही संकट में आ चुका है।याद रखिए कि पर्यावरण का मानव जीवन से सीधा संबंध है। इसलिए पर्यावरण को हानि पहुंचेगी तो मानव जीवन भी कलुषित हो जाएगा। हम आज पहाड़ों को काट रहे हैं, विकास के नाम पर सड़कें,बांध, बिजली, पुल, सुरंगों को बना रहे हैं लेकिन पर्यावरण के साथ सामंजस्य नहीं बिठा रहे हैं। हमें अपने स्वार्थों और लालच से मतलब रह गया है, प्रकृति के संसाधनों के संरक्षण के बारे में हम विरले ही सोचते हैं। सच तो यह है कि प्रकृति, धरती पर उपलब्ध विभिन्न संसाधन और हमारा पर्यावरण ही हमारे जीवन और अस्तित्व का असली आधार हैं। अंत में नरेश सक्सेना जी के शब्दों में बस यही कहूंगा कि -‘अंतिम समय जब कोई नहीं जाएगा साथ, एक वृक्ष जाएगा, अपनी गौरैयों-गिलहरियों से बिछुड़कर,साथ जाएगा एक वृक्ष,अग्नि में प्रवेश करेगा वही मुझ से पहले,’ कितनी लकड़ी लगेगी’, शमशान की टालवाला पूछेगा, ग़रीब से ग़रीब भी सात मन तो लेता ही है, लिखता हूँ अंतिम इच्छाओं में, कि बिजली के दाहघर में हो मेरा संस्कार, ताकि मेरे बाद, एक बेटे और एक बेटी के साथ, एक वृक्ष भी बचा रहे संसार में।’

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

सुनील कुमार महला,

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