मनोज ज्वाला
केन्द्र की सत्तासीन भाजपा-सरकार के विरुद्ध ‘चुनाव-हराऊ वातावरण’
तैयार करने के लिए देश भर में बुद्धिजीवियों का वाम-परस्त महकमा अपनी
धूर्त्ततापूर्ण बातों से जनमत को बरगलाने में लगा हुआ है । यह भ्रम
फैलाया जा रहा है कि भाजपा-मोदी के शासन में सरकार से प्रश्न पुछना मना
है अथवा प्रश्न पुछने पर भाजपा-नेताओं-कार्यकर्ताओं-समर्थकों और उसकी
सरकार के प्रधानमंत्री या मंत्रियों द्वारा प्रश्न-कर्त्ता को देशद्रोही
या गद्दार घोषित-आरोपित कर दिया जाता रहा है । कांग्रेस के ‘पप्पू’ को
देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए ऐसा सफेद झूठ फैलाने का काला धंधा करने
की ठेकेदारी चलाने वाले बुद्धिबाजों का सूत्र-संचालन उन
सेक्युलरिष्ट-कम्युनिष्ट-कॉमरेडों के शातिर दिमाग से होता है, जिन्हें
‘तिल को ताड बनाने’ से ले कर ‘बाल की खाल नोचने’ एवं ‘किसी झूठ को
हजार-हजार मुखों से बोलवा कर उसे सच बना देने’ की बकवादी जुगाली करते
रहने तक की महारत हासिल है । ये वो दिमाग हैं, जो कहीं के शब्द, कहीं के
वाक्य, कहीं के विन्यास, कहीं के संदर्भ आदि को तोड-मरोड कर अपने लक्षित
कथ्य-कथानक, पात्र व तथ्य के साथ जोड-मोड कर न केवल एक से एक
कहानी-कविता-गीत-पहेली गढ-रच लेते हैं, बल्कि उन कहानियों की
धूर्त्त-रचनाओं का शास्त्र भी निर्मित कर लेते हैं । भाजपा-मोदी-सरकार से
प्रश्न पुछने पर प्रश्नकर्त्ता को देश-द्रोही घोषित कर दिए जाने का जो
थोथा राग अलापा जा रहा है इसकी सच्चाई भी यही है ।
मालूम हो कि यह थोथा राग तब से शुरु हुआ है , जब से
जम्मू-कश्मीर के पुलवामा आतंकी विस्फोट मामले में मोदी सरकार के
निर्देशानुसार भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान को सबक सिखाने के बावत उसकी
सीमा के भीतर जा कर आतंकी ठिकानों पर हमला किये जाने के बाद जनता स्वतः
मोदी के सीने को छप्पन इंच से भी ज्यादा मापने लगी और मोदी की बढती
लोकप्रियता से जल-भुन कर कांग्रेस-अध्यक्ष और उसके दरबारी कांग्रेसी
कारिन्दे सेना के उस पराक्रम का सबूत मांगने लगे तो पूरा देश उन्हें
स्वाभाविक ही देशद्रोही कहने लगा । अपने ही देश की सेना को जलील करना तथा
उसके पराक्रम को कठघरे में खडा करना और शत्रु-देश का पक्ष-पोषण करना
वास्तव में देश-द्रोह के समान ही है और इसी कारण देश के प्रति निष्ठावान
जनता के बीच से उन्हें देश-द्रोही करार दिया जाने लगा तो इसे अनुचित
नहीं कहा जा सकता । किन्तु भाजपा-मोदी-सरकार की हर नीति-कार्रवाई व
कार्य-पद्धति का निराधार ही विरोध करते रहने वाली
कांग्रेसी-कम्युनिष्ट-सेक्युलरिष्ट जमात अपनी इस विरोधवादी नीति के बहाव
में बह कर देश की सुरक्षा-सम्प्रभुता व सेना की राष्ट्रीय निष्ठा का भी
विरोध करने में जुट जाने के बाद इसके औचित्य-अनौचित्य पर बहस-विमर्श करने
के बजाय इसे न केवल उचित ठहराने बल्कि इसे मोदी-विरोध के एक नये हथियार
में तब्दील करने की कोशिश करती रही और यह कहते हुए लोगों को भडकाती रही
कि सरकार से सवाल पुछना तो देश-द्रोह माना जा रहा है ।
यहां उल्लेखनीय है कि भाजपा-मोदी-सरकार की ओर से ऐसा न कभी माना
गया है , न कहा गया है ; बल्कि विरोधवादियों के देश-विरोधी रवैये के कारण
जनता के बीच से यह संवाद मुखरित हुआ कि सेना को कठघरे में खडा करने वाले
विपक्षी नेतागण देशद्रोही हैं । अब इस जन-संवाद के शब्दों को इधर से उधर
हेर-फेर कर जनमत बदल डालने या यों कहिए कि चुनावी हवा का रुख बदलने के
निमित्त कांग्रेस के रणनीतिकारों अर्थात
सेक्युलरिष्ट-कम्युनिष्ट-कॉमरेडों ने एक नई युक्ति से युक्त नायाब उक्ति
का ईजाद कर उछाल दिया कि “भाजपा-मोदी-सरकार से सवाल पुछना देश-द्रोह है”
। इस युक्तिपूर्ण उक्ति से भाजपा-मोदी विरोधी रणनीतिकार दरअसल जनता को यह
समझाना चाह रहे हैं कि भाजपा-मोदी-सरकार तानाशाह की तरह काम कर रही है,
किसी को कुछ पुछने से रोक रही है और सवाल पुछने पर देशद्रोही घोषित कर
पुछने वाले को प्रताडित कर रही है या कर सकती है । पुलवामा हमले के
प्रतिकारस्वरुप सेना द्वारा की गई कार्रवाई के सबूत की अपनी मांग को
कांग्रेसी रणनीतिकारों ने उलजुलूल सवालों के जवाब की मांग में तब्दील कर
स्वयं के देशद्रोही आचरण को देश-भक्ति का आवरण देने और जन-समर्थन बटोरने
का टोटका बना दिया ।
अब सवाल यह उठता है कि कथित रुप से देश-द्रोही या गद्दार कहे
जाने की जोखिम उठा कर भी देश की तथाकथित भलाई के लिए सवाल पुछने वाले इन
वीर-बहादुरों के सवाल आखिर क्या हैं ? सच तो यह है कि इनके पास
भाजपा-मोदी-सरकार से पुछने योग्य कोई सवाल ही नहीं है , क्योंकि आज हमारे
देश में जितने भी सवाल मुंह बाय खडे हैं , उन सबके जनक-पालक-पोषक ये ही
लोग हैं । गरीबी का सवाल हो या बेरोजगारी का, भ्रष्टाचार हो या काला धन,
राष्ट्रीय सीमा सुरक्षा का सवाल हो या बांग्लादेसियों-रोहिंग्याओं की
घुसपैठ का प्रश्न , कश्मीरी अलगाववादी आतंकवाद हो या झारखण्डी-छत्तीसगढी
नक्सली उत्पात , धारा ३७० का मसला हो या रामजन्मभूमि का मामला; ये सब के
सब तो कांग्रेस और उसके सहयोगियों की ही देन हैं । अतएव इन सारे सवालों
के जवाब तो इन्हें ही देने होंगे । किन्तु इस देनदारी से बचने के लिए ये
लोग अब उल्टे सवाल खडा करवा रहे हैं कि विदेशों से काला धन कब वापस आएगा,
राम-मन्दिर कब बनेगा, धारा ३७० कब हटेगा आदि-आदि । जबकि, इन सब समस्याओं
को पैदा करने वाले वे स्वयं ही हैं । इतना ही नहीं, जातीय आरक्षण व
साम्प्रदायिक तुष्टिकरण के राजनीतिक रंगों और इनकी वजह से उत्त्पन्न
बहुविध अवांछित प्रसंगों के लिए भी ये ही लोग जिम्मेवार हैं । कदाचित ,
ये लोग अपनी इस जिम्मेवारी को समझते भी हैं, इसी कारण इससे बचने के लिए
भी ये लोग इन सवालों को सुलझाने का आश्वासन दे कर सत्तासीन हुए
भाजपा-मोदी से अपने भाडे के टट्टुओं द्वारा इन सवालों के जवाब की मांग
करवा रहे हैं और यह प्रचारित कर रहे हैं कि सवाल पुछना देश-द्रोह माना जा
रहा है । ये राजनीतिबाज लोग ऐसे धूर्त्तमीजाज लालबुझक्कड हैं कि कायदे से
कोई सवाल पूछ भी नहीं रहे हैं, पुछेंगे ही नहीं, क्योंकि पुछेंगे तो
स्वयं फंसेंगे, यह वे जानते हैं ; इस कारण बिकाऊ बुद्धिबाजों की विविध
गतिविधियों से यह प्रचारित करवा रहे हैं कि सवाल पुछने पर
भाजपा-मोदी-सरकार द्वारा पुछने वाले को देशद्रोही माना जा रहा है । ये
लोग सवाल पुछें तो सही ! पुछेंगे तो इन्हें भाजपा-मोदी की
‘अतिसहिष्णु-सरकार’ भले ही न कुछ कहे, न कुछ करे ; किन्तु जनता इन्हें
उसी तरह करारा जवाब दे देगी , जिस तरह भारतीय सेना से उसके पराक्रम का
सबूत मांगने पर ‘देशद्रोही’ कह कर दे चुकी है । क्योंकि शोसल मीडिया की
कृपा से जनता अब सब जानने-समझने लगी है । यही कारण है कि कांग्रेसी
रणनीतिकारों के इस ‘सवालिया विलाप’ का धूर्त्त स्वर शोसल मीडिया में ही
सर्वाधिक मुखरित है । स्वयं समस्यायें पैदा कर उन समस्यायों के समाधान
हेतु स्वयं सवाल खडे कर हल्ला मचाना इस सवालिया विलाप के पीछे का असली
निहितार्थ है , ताकि उनका दोष उजागर न हो सके । ‘सवाल पुछना देशद्रोह
माना जा रहा है’ ऐसा विलाप करने वाले ये लोग असल में कोई सवाल पुछे ही
नहीं हैं भाजपा-मोदी-सरकार से , क्योंकि पुछ ही नहीं सकते, पुछने के
काबिल ही नहीं हैं । सवाल पुछने के नाम पर ये कोरा बकवास करते रहे हैं,
जिनका उत्तर शासन के बजाय समाज ही दे सकता है बेहतर । समाज यह मानने को
कतई तैयार नहीं है कि सवाल पुछना देशद्रोह मानती है भाजपा-मोदी-सरकार ।
ठीक वैसे ही, जैसे असहिष्णुता बढने के नाम पर सरकारी पुरस्कार-सम्मान
वापस करने का अभियान चलाने वाले कांग्रेसी साहित्यकारों के तमाम नखरों के
बावजूद समाज उन्हें इस कदर अनसुना कर दिया कि वे एकबारगी ठण्डा कर
अपने-अपने साहित्य के पन्नों में ही अपने मुंह छिपा लेने को विवश हो गए
तो असहिष्णुता का राग भी अपने आप शिथिल पड गया । इस सवालिया विलाप का भी
वही परिणाम होने वाला है । चालू संसदीय चुनाव का परिणाम सेक्युलरिष्ट
कांग्रेसियों और कम्युनिष्ट कॉमरेडों का पूरा हिसाब-किताब चुकता कर देगा
।
• मनोज ज्वाला ;