सनसनी फैलाने में माहिर आप

सुरेश हिन्दुस्थानी
दिल्ली में सरकार बनाने को लेकर जिस प्रकार का खेल खेला जा रहा है, उससे हमें बचपन की एक घटना याद आती है। हम दस बारह दोस्त कोई खेल खेल रहे होते हैं, एक शरारती बच्चे को केवल इसलिए नहीं खिलाते, क्योंकि वह खेल बिगाड़ता था। जिसको नहीं खिलाते थे उसका यही प्रयास रहता था कि कैसे भी हो इनके खेल में विघ्न पैदा कर दूं, इस बाबत वह हर तरीके से परेशान करने की जुगत में लगा रहता है और अंत में थक हार कर वह हाथ मलते रह जाता है। लगता है ऐसा ही खेल अरविन्द केजरीवाल दिल्ली में खेल रहे हैं। जब उन्हें यह साफ तौर पर लगने लगा कि मैं अब सरकार बनाने की स्थिति में नहीं हूं तो दूसरे का खेल बिगाडऩे की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।
दिल्ली राज्य में सरकार बनाने की तैयारियों के चलते आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल ने एक पूर्व नियोजित और प्रायोजित कार्यक्रम की तरह भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगा दिया है कि भाजपा विधायकों को खरीदने का प्रयास कर रही है। यह सनसनी फैलाकर अरविन्द केजरीवाल एक बार फिर से दिल्ली और देश की जनता को भ्रमित करने की कोशिश करते दिखाई दे रहे हैं। इससे पूर्व कुमार विश्वास के माध्यम से यह सब करने का प्रयास किया गया लेकिन दुर्भाग्यवश वह घटनाक्रम आप की संभावनाओं के मुताबिक ज्यादा समय तक नहीं चल सका। सनसनी फैलाना आम आदमी पार्टी का काम है, भारतीय राजनीति में इस प्रकार का खेल खतरनाक ही कहा जाएगा।
आम आदमी पार्टी द्वारा किए गए इस नाटक में कितना दम है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन खेल बिगाडऩे का यह नाटक अरविन्द केजरीवाल को राजनीतिक ताकत प्रदान करेगा, इसकी गुंजाइश कम ही दिखती है। वैसे आज की राजनीति के बारे में कहा जा सकता है कि सच वह नहीं जो दिखाई दे, बहुत सारी घटनाएं नेपथ्य में रची जातीं हैं या रची जा रही हैं। आम आदमी पार्टी के इस नाटक के नेपथ्य में क्या गुल खिलाए गए हैं, इसकी तह में जाना बहुत ही आवश्यक हो गया है, नहीं तो लांकतंत्र में जिस राजनीतिक सुधार की हम कल्पना करते हैं, ऐसी दुर्घटनाएं उस पर तुषारापात की स्थिति ही पैदा करेंगीं। वास्तव में आज जो कुछ भी हो रहा है, वह स्वस्थ राजनीति के लिए कतई ठीक नहीं कही जा सकती। जिस प्रकार से अरविन्द केजरीवाल ने उपराज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाए हैं, वह प्रथम दृष्टया ठीक नहीं है, क्योंकि उपराज्यपाल अगर दिल्ली में सरकार बनने की संभावनाएं तलाश रहें तो यह उनका कर्तव्य भी है और अधिकार भी। इसके अलावा संभावनाएं तलाशने का यह कार्य वह अपनी मर्जी से नहीं कर रहे, वे तो सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के संबंध में अपनी गतिविधियों का संचालन कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि दिल्ली में सरकार बनाने की संभावनाओं को तलाश किया जाए। संवैधानिक प्रक्रियाओं के तहत यह कार्य केन्द्र सरकार और दिल्ली के उपराज्यपाल को ही करना है। लोकतांत्रिक व्यवस्था का पालन करते हुए उपराज्यपाल या तो उस दल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करेंगे जिसके पास पूर्ण बहुमत हो या फिर सदन में सबसे बड़े दल को। ऐसी स्थिति में सबसे बड़े दल के रूप में भाजपा ही है तो सरकार बनने की संभावनाएं भाजपा की ही सबसे ज्यादा है, यह बात और है कि भाजपा के पास बहुमत के लायक संख्या न हो, लेकिन सबसे बड़ा दल तो भाजपा ही है।
अरविन्द केजरीवाल के प्रायोजित से लगने वाले इस घटनाक्रम ने जहां भाजपा की ओर उंगली उठाईं हैं, वहीं आम आदमी पार्टी पर भी सवालों की झड़ी लग गई है। पहला सवाल तो यह है कि जब केजरीवाल ने साफ तौर पर यह कहा कि हमारे विधायक किसी भी रूप से कहीं जाने वाले नहीं हैं और नहीं किसी राजनीतिक दलों के नेताओं से मिलेंगे, तब सवाल यही है कि उनके विधायक मिलने क्यों गए? क्या उनका जाना पूर्व नियोजित था? अगर आप के विधायक बिकने को तैयार ही नहीं हैं तो फिर जाने से मना क्यों नहीं किया? इतना ही नहीं आप के विधायक एक बार ही नहीं बल्कि तीन बार भाजपा के पास पहुंचे। जबकि भाजपा के जिस नेता पर केजरीवाल ने आरोप लगाए हैं उनका साफ कहना है कि मैंने न तो उनको बुलाया और न ही मैंने भाजपा में आने की कोई बात की, उलटे आप के विधायक ही पार्टी छोडऩे की बात कह रहे थे। इस पूरे घटनाक्रम से यह तो लगने ही लगा है कि केजरीवाल द्वारा इस घटना की पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी। लगता है कि केजरीवाल का यह पूरा खेल ”बिल्ली खाएगी नहीं तो लुढ़का जरूर देगीÓÓ वाली कहावत को ही चरितार्थ कर रहा है।
आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल की आज सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि वर्तमान में उनकी पार्टी के बहुत बड़े वर्ग में एक भ्रम की स्थिति का निर्माण पैदा हो रहा है। कहीं खुले तो कहीं दबे स्वर में उनकी पार्टी के नेता केजरीवाल पर ही हमला करने लगे हैं। केजरीवाल की दादागिरी के चलते कई नेता पार्टी छोड़ रहे हैं। ऐसी स्थिति में उनका ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है। इसी ग्राफ को रोकने के लिए और पार्टी में उत्पन्न हो रहे संभावित विघटन को राकने के लिए केजरीवाल ने यह नाटक रचा है। इस नाटक का वास्तविक रूप कैसा दृश्य उत्पन्न करेगा, यह आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा। लेकिन इस प्रकार का खेल ठीक नहीं कहा जाएगा। वास्तव में अपने अच्छे कार्यों की दम पर अपना आधार खड़ा करना चाहिए, दूसरे पर आरोप लगाने की राजनीति का खेल अब बन्द होना चाहिए। केजरीवाल ने दूसरों पर आरोप लगाने वाली राजनीति से ही अपनी जमीन तैयार की है। कुछ करने का अवसर हाथ में आया तो वह मैदान छोड़कर भाग गए।

7 COMMENTS

  1. तिवारीजी बिजेपी के आकाओं काटो अपने पता दे दिया कृपया आप पार्टी के आकाओं के भी नाम बता देते तो ज्ञान में वृद्धि हो जाती. कृपया ऐसी घिसीपिटी घटिया शब्दों का प्रयोग न करे .स्वस्थ विचार विमर्श की जगह को रहने दें

    बिपिन कुमार सिन्हा

  2. हैरत होती है ये देख कर कि कल तक जो बीजेपी 32 MLA होते हुए सरकार बनाने से साफ़ इनकार कर रही थी वही अब 29 विधायकों के बावजूद किसी तरह भी दिल्ली में सत्ता हासिल करने को बेताब है। इसके बाद भी बात बात पर नैतिकता और राजनितिक शुचिता की दुहाई देने वाले इस खरीद फरोख्त के आधार पर सरकार बनाने की बेशर्म हरकत को छिपाने के लिये उलटे AAP और केजरीवाल पर निशाना साध रहे हैं।
    आम आदमी पार्टी ही इस देश की एकमात्र आशा की किरन है जो बीजेपी सहित सभी दलों की आंख की किरकिरी बनी है। इतना तो बीजेपी ने भी मान ही लिया है कि अगर वो दिल्लूइ में चुनाव में उतरी तो आआप उसको धूल चटा देगी वरना सरकार बनाने को चोर दरवाज़े से नापाक कोशिश करने की बजाए जनादेश लेने की हिम्मत दिखाती।

  3. अरविंद और ‘आप’ को सनसनी फैलाना ही तो नहीं आता!

  4. केजरीवाल खुद ही अपनी पार्टी के पतन की राह बना रहें हैं,दरअसल केजरीवाल एक अच्छे आंदोलनकारी, धरनेबाज जरूर हैं पर राजनेता नहीं, यही उनकी सब से बड़ी कमी और विफलता है, उन्हें राजनीति नहीं आती, वे उसके शातिराना पहलू को पूरा समझ नहीं पाये हैं,इस लिए वे अब यह ही कर सकते हैं ,दुबारा चुनाव क्या रंग लाएगा किसे पता है,फिर यदि यही हाल रहा तो कोई बड़ी बात नहीं, जनता का पैसा जरूर व्यर्थ जायेगा

    • पहली बात तो यहहै कि यह जनता का पैसा बेकार जानेवाली बात भाजपा को दिसम्बर में क्यों नहीं समझ में आई थी?दूसरी बात यह है कि इस जोड़ तोड़ वाली सरकार बनाने में जितने पैसे का लेन देन होगा,उससे काम पैसे में चुनाव और नई सरकार का गठन भी हो जाएगा.एक तीसरा लाभ भी हो जाएगा.अरविन्द केजरीवाल को भी पानी का थाह मिल जाएगा. मुझे तो नहीं लगता कि इस हालात में भाजपा को चुनाव से डरने की आवश्यकता है .फिर भी वह डर रही है.

  5. इस आलेख में केजरीवाल को खेल बिगाड़ने वाला कहा गया है.यह कौन खेल है जिसे केजरीवाल बिगाड़ कराहे हैं?क्या यहसत्य नहीं है की जब दिसंबर में चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दल को मिला कर ३२सदस्य थे,उस समय श्री हर्षवर्द्धनने सरकार बनाने से इंकार कर दियाथा.आज ऐसा कौन सा मन्त्र हाथ लग गया है,जिसके चलते भाजपा २९ सदस्यों के बल पर सरकार बनाने के लिए आमंत्रित की जा रही है?यह लोगों को साफ साफ़ क्यों नहीं दिखाई दे रहा कि तोड़ फोड़ के सिवा अन्य किसी तरीके से यह सरकार नहीं बनाई जा सकती,क्योंकि कांग्रेस और आप दोनों ने भाजपा का साथ देने से इंकार कर दिया है.अगर केजरीवाल इस तरह के अनैतिकता के मार्ग में रोड़े अटका रहे हैं,तो इसमें गलत क्या है?दिसंबर से केवल इतना ही बदला है कि उस समय भाजपा को नैतिकता वाले लबादे की आवश्यकता थी,क्योंकि नमो को देश का शासक बनाना था.अब जबकि वह उद्देश्य पूरा हो गया है,तो भाड़ में जाए वह नैतिकता और उसका लबादा.अब तो एक ही उद्देश्य सामने है और वह है आआप को किसी भी तरह शासन से बाहर रखना.

  6. सच कहना और रिलायंस जैसी लुटेरी कम्पनी का विरोध करना देशभक्ति होती है – सनसनी नहीं —————————————– मैं लेखक के विचारों से सहमत नहीं हूँ आदर्श लक्ष्य और साधनसुचिता के आधार पर विचार करें तो ” आम आदमी ” अन्य पार्टियों से ज्यादा संगठित है – विशेषकर बी.जे.पी. से जहाँ के लोग निर्णय नहीं कर पा रहे हैं कि उनके आका मोदी-राजनाथ या अम्बानी-अदानी हैं ! बी.जे.पी. खरीद फरोख्त में माहिर है यह मुजफ्फरनगर के दंगे से मेरठ के दो बहनों के हालिया बयानों से साफ हो चुका है !!
    खुद लेखक भी मानते हैं और यही है असली खतरा केवल आप के लिए ही नहीं भारत की सभी पार्टियों के लिए भी : —– ( ताजा स्टिंग आपरेशन में केवल 4 करोड़ की पेशकश की गई है। हो सकता है यह पेशगी हो। जाहिर है, बोली वहीं लगती है जहां बिकाऊ माल होता है। आप के जो नेता आज भाजपा के सरकार गठन के विरोध में बयान दे रहे हैं, हो सकताहै कल बड़ा ओहदा लेकर सरकार में बैठे नजर आएं!)

    ( डॉ. अशोक कुमार तिवारी )

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