नदी उठाकर घर ले आते|
अपने घर के ठीक सामने,
उसको हम हर रोज बहाते|
कूद कूद कर उछल उछलकर,
हम मित्रों के साथ नहाते|
कभी तैरते कभी डूबते,
इतराते गाते मस्ताते|
“नदी आई है”आओ नहाने,
आमंत्रित सबको करवाते|
सभी उपस्थित भद्र जनों का,
नदिया से परिचय करवाते|
यदि हमारे मन में आता,
झटपट नदी पार कर जाते|
खड़े खड़े उस पार नदी के,
मम्मी मम्मी हम चिल्लाते|
शाम ढले फिर नदी उठाकर,
अपने कंधे पर रखवाते|
लाये जहां से थे हम उसको,
जाकर उसे वहीं रख आते|
आप ने सार्थक कर दिया —
कि
जहां न पहुंचे रवि,
वहां पहुंचे कवि|
सुन्दर कविता.
अच्छी सीधे साधे शब्दों मे लिखी कविता