मूर्ख चिंतन

संतोष कुमार

अरे भाई चौंकिए मत, मूर्ख भी चिंतन करते है इसके कुछ उदाहरण आपको आगे मिल जायेंगें। पहले मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मैं एक मूर्ख हूँ, इसका प्राथमिक प्रमाण यह है कि भाषा, शब्द, व्याकरण और विषय का समुचित ज्ञान ना होने के बावजूद मैंने लिखने की कोशिश की, और शत प्रतिशत आशान्वित भी हूँ कि संजीव जी मेरे मूर्खत्वपूर्ण लेख को प्रवक्ता में स्थान देंगे।

मैं हमेशा अपने काम, गृहस्थी, परिवार के भारी बोझ तले दबा रहने के बावजूद मौका मिलते ही थोडा चिंतन कर लेता हूँ। आप मेरी तुलना मेरे दूर के भाई गदर्भ-राज से कर सकते हैं, जिनको बोझ उठाते और चिंतन करते हुए सबने देखा होगा।

मेरे ताजा चिंतन की शुरुआत इस बात से होती है कि देश में कितने प्रधानमंत्री हैं। मुख्य प्रधानमंत्री, सुपर प्रधानमंत्री, कार्यकारी प्रधानमंत्री, और प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री आदि के होते हुए भी इस देश की जनता ऐसी पीड़ा में डूबी है कि उसे अब यह भी महसूस होना बंद हो गया है कि दर्द कहाँ ज्यादा है और कहाँ कम। कभी लगता है कि मंहगाई की पीड़ा असह्य है, कभी लगता है कि भ्रष्टाचार का नासूर कैंसर बन जायेगा, कभी आतंकवाद / अलगाववाद का नश्तर आत्मा को छलनी कर देता है तो कभी अपने ही भविष्य की गहरी चिंता से सरदर्द होने लगता है।

चिंतन करते-करते मैं मूरख इस नतीजे पर पहुंचा कि सत्ता शिखर पर बैठे लोगों की सबसे बड़ी चिंता शिखर पर बने रहने की ही होनी चाहिए, क्योंकि यदि एक बार जनता सचेत हो गयी तो बेचारों का बंटाधार हो जायेगा। इसीलिए इन्होंने दिग्गी राजा जैसों को जनता का ध्यान वास्तविक पीडाओं से हटाने के लिए नियुक्त कर रखा है। जब भी देश की सरकार पर कोई गंभीर प्रश्न उठता है तभी ये साहब मीडिया के सामने अपनी ढपली बजाना शुरू कर देते हैं। इनकी टाइमिंग इतनी गजब की होती है कि मुझ जैसे मूर्ख को भी इनका मतलब समझ में आ जाता है।

एक दिन सुबह-सुबह मैं भ्रष्टाचार पर चिंतन करने लगा तो ऐसा डूबा कि शाम को बीबी ने सिर पर दो बाल्टी पानी डाल कर मेरी चेतना लौटाई। मैं तो यह सोच कर पागल होने वाला था कि कांग्रेसी भाई लोग किस मुह से सोनिया – मनमोहन की ईमानदारी की कसमे खा रहे हैं, मेरे मूर्ख दिमाग की सोच तो यह कहती है कि इनकी छत्रछाया और आशीर्वाद से ही हर तरफ लूट का नंगा नाच हुआ है और अब सबको बचाने की पूरी तैयारी है। कुछ बिन्दुओं पर विचार करके यह बात और भी स्पष्ट हो जाएगी —–

* इन लोगों ने गड़बड़ी की बात तभी स्वीकार जब इनके पास स्वीकार करने के सिवा कोई और रास्ता नहीं बचा , तब तक भाई लोगों ने सारे सुबूतों को ठिकाने लगाने का काम पूरी कुशलता , कर्मठता और ईमानदारी से पूरा कर लिया होगा।

* सभी घोटालों की जाँच सीबीआई से ही कराना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि कांग्रेस के पास छुपाने के लिए बहुत कुछ है, क्योंकि सभी जानते हैं कि सरकार ने सीबीआई को पालतू, रीढविहीन संस्था बना दिया है ,और वह सरकार के इच्छानुसार ही काम करेगी। बेफोर्स , दिल्ली दंगा ,मायावती-मुलायम जैसे मामलों में सीबीआई अपनी स्वामिभक्ति सिद्ध कर चुकी है। मुझ जैसे मूर्ख को यह बात अभी तक याद है कि क्वात्रोची के बैंक खातों को खुलवाने में सीबीआई ने कितनी मेहनत की थी।

इसके अलावा न्यायपालिका भी कई बार सीबीआई की मंशा पर सवाल उठा चुकी है।

* एक आरोपी व्यक्ति को हठपूर्वक CVC की महत्त्वपूर्ण पद पर बिठाने से मुझ जैसे मूर्ख को भी सरकार की मंशा स्पष्ट रूप से दिख जाती है।

एक और विशालकाय मंत्रालय के भारी-भरकम मंत्री का नाम आते ही मेरा चिंतन भाग जाता है और चिंता घेर लेती है। पता नहीं ये कब और क्यों अपना मुंह खोल दें और तुरंत हमारी जेब में सेंध लग जाती है। इनके ताजा कथनानुसार प्याज का उत्पादन कम हुआ है, लेकिन साहब से कोई पूछे की आपको कब पता चला? निश्चित ही बेचारे को पहले नहीं पता चला होगा नहीं तो कुछ कदम जरूर उठाते, कम से कम निर्यात तो रोक ही लेते। अब अगर मुझ मूर्ख को इसमें भी घोटाला नजर आता है तो इससे मेरा मूर्खत्व प्रमाणित होता है। चीनी, दाल, आटा, सब्जी, प्याज, लहसुन ,के बाद पता नहीं किसकी बारी है, लेकिन मैं इस बात से खुश हूँ कि नमक इनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है, कम से कम हम नमक-रोटी खाकर जिन्दा तो रह ही सकते हैं।

कभी- कभी मैं कुछ और नेताओं की विद्वता पर भी चिंतन कर लेता हूँ, इनकी विद्वता का अकाट्य प्रमाण यह है कि ये कभी भी गलत नहीं हो सकते, चाहे वो सरेआम देश को लूटें / लुटवाएं, जनता को लड़वायें,जमाखोरों मुनाफाखोरों रिश्वतखोरों की मदद करें, विदेशियों को देश की आन्तरिक सूचनाएं दें आदि आदि। आखिर नेतागिरी का सवाल जो है यदि एक बार गलती मान ली तो पता नहीं अपने साथ साथ कितने सगे-सम्बन्धियों, आकाओं,चमचों का कितना नुकसान हो जायेगा। कुर्सी प्राप्त करने के लिए बेचारों को पता नहीं कितने पूंजी पतिओं, पत्रकारों ,लाबिस्टों के दर पर माथा टेकना पड़ता होगा, इसका अंदाजा लगाना मुझ मूर्ख के बस की बात नहीं है।

मेरे मूर्ख दिमाग को लगता है कि गाँधी परिवार को सरदार मनमोहन सिंह के रूप में एक और बलि का बकरा मिल गया है जिन्हें जरूरत पड़ने पर संजय गाँधी और नरसिंघाराव के क्लब में शामिल कर उन्हें सभी गलतिओं का जिम्मेदार बता दिया जायेगा, और युवराज की विदेशी शिक्षा प्राप्त सेना देश को नए सपने दिखाने लगेगी।

कई मंत्रालयों पर चिंतन करना तो मुझ मूर्ख को भी मूर्खता लगती है। पर्यावरण मंत्री हर मामले पर कम से कम दो – तीन राय जरूर रखते हैं, पता नहीं कब किसका इस्तेमाल करना पड़ जाय। रेल कौन, कहाँ से और कैसे चला रहा है? कुछ पता नहीं।एक मंत्री जी को मिस्टर १५ परसेंट के रूप में ख्याति मिलनी शुरू हो गयी है, आशा है और तरक्की करेंगे। एक बडबोले वकील मंत्री जिनको अभी-अभी काजल की कोठरी का जिम्मा भी दिया गया है , वो तो सारे हिंदुस्तान को ही मूर्ख समझने की गलत फहमी पाले हुए है, और ये समझाने में लगे हैं कि घोटाला तो हुआ ही नहीं है। पहली बार मुझे अपने मूर्खत्व से ज्यादा उनकी विद्वता पर शर्म आयी।

कभी-कभी विपक्षी दलों पर भी चिंतन कर लेता हूँ लेकिन उनका उल्लेख करने से लेख ज्यादा लम्बा हो जायेगा, संक्षेप में कहें तो उजाला कहीं भी नहीं दिखता, लेकिन मैं अपने संस्कारों, मूल्यों, दर्शन, विश्वास, आस्था और निजी मूर्खत्व के आधार पर यह जरूर कहूँगा कि इस काली रात के बाद भी सुबह जरूर होगी।

1 COMMENT

  1. अब तो मुझे भी महसूस होने लगा है की सबसे बड़े मूर्ख तो हम जैसे लोग हैं जो ऐसे घिस्से पीटे विषय पर भी जो लिखा होता है उसे केवल पढ़ ही नहीं लेते उसपर टिपण्णी भी करने लगते हैं.हम उस देश में जहां सब नंगे हैं,नंगापन का दुखड़ा सुनाते रहेंगे और और लोग सुनते रहेंगे.यहाँ सुनाने वाले और सुनने वाले सभी एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं.फर्क इतना ही है की जिनको अवसर मिला ,वे तो मलाई खा लिए और जिनको अवसर नहीं मिला,वे हल्ला मचाने वालों की भीड़ में शामिल हो गए.ऐसे एक आध मूर्ख ऐसे भी रहे जो अवसर मिलने पर भी उसका लाभ नहीं उठाये,पर उनकी संख्या नगण्य है और वे आज भी कही मुंह छुपाये बैठे हैं. अतः,भाइयों आपलोगों से यही इल्तजा है की बंद कीजिये इस विषय पर परिचर्चा और जब भी अवसर मिले लूट लीजिये. नहीं अवसर मिले तो उसका इंतज़ार कीजिये.हो सकता है की किसी किसी को जिंदगी भर अवसर नहीं मिले,पर यह तो अपनी अपनी किस्मत का खेल है सबकी किस्मत तो एक नहीं होती.

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