कुछ कहता है सावन,
मेरे मन के आँगन मे,
साजन से तेरा मिलन करा दू
क्या दोगी मुझे निछावन मे.
मैं एक ऐसा सावन हूँ,
तेरे तन मे अग्नि लगाता हूँ
मैं ही तेरे साजन को बुलाकर
तेरे तन की प्यास बुझाता हूँ
सावन मे ही तुमको मैं
कोयल की कूक सुनाता हूँ
बागो मे झूले डलवा कर
तुझे झूले पर झूलाता हूँ
वर्षा ऋतु के मौसम मे ही मैं
दिन को मैं ही रात बनाता हूँ
कही भूल न जाये पथ तेरा साजन
बिजली से प्रकाश मैं कराता हूँ
रिम झिम बूँदे लाकर मैं ही
धरती की प्यास बुझता हूँ
अगर बदन पर पड़ जाये बूंदे
तेरे बदन मे आग लगाता हूँ
मेरे सावन के महीने मे ही
कल कल नदियाँ बहती है
झरने की झर झर आवाज
नदियाँ प्यार से सहती है
मेरे कारण ही सारे नभ मे
उमड़ घुमड़ कर बादल आते है
अपनी डरावनी आवाजो से
विरहणी को खूब डराते है
मेरे ही इस पवित्र महीने मे
शिव की भी पूजा होती है
जल चढ़ाकर शिवलिंग पर
सबकी इच्छा पूरी होती है