परिवार की साख पर उठा सवाल तो सोनिया गांधी ने चला बड़ा सियासी दांव

पाटी अध्यक्ष चुनाव टालने के साथ हार के कारणों का पता लगाने के लिए कमेटी का झुनझुना

 संजय सक्सेना

        गांधी परिवार काफी समय से इस ‘जुगाड़’ में लगा था कि किस तरह से पांच राज्यों के चुनाव में मिली हार के बाद पार्टी में नेतृत्व के खिलाफ जो चिंगार भड़की है उसे शोला बनने से रोका जाए। इसके साथ-साथ यह भी कोशिश हो रही थी कि कांगे्रस अध्यक्ष के लिए प्रस्तावित चुनाव किसी तरह से टाल दिया जाए। इसके लिए गांधी परिवार ने रास्ता निकाल लिया है ताकि ‘सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।’कोरोना के आड़ में  कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने चुनाव टाल दिए हैं और कमेटी बनाकर पांच राज्यों में कांगे्रस की हुई हार के कारणों का पता लगाने का फरमान अपने कुछ करीबियों को दे दिया है। वर्ना राजनीति की जरा भी समझ रखने वाला जानता है कि कांगे्रस क्यों चुनाव हारी। लेकिन सोनिया गांधी  की बढ़ती उम्र का तकाजा कहा जाए या ं ड्रामेबाजी जो उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि पांच राज्यों में हुए विधान सभा चुनाव में पार्टी की इतनी दुर्गति क्यों हुई ? चार राज्यों की बात छोड़ भी दी जाए तो केरल से कांगे्रस को काफी उम्मीद थी। वहां सत्ता में वापसी का सपना देख रही थी,क्योकि केरल अब राहुल गांधी की सियासी भूमि बन गई है। जहां की वाॅयनाड लोकसभा सीट से राहुल गांधी सांसद हैं। पिछले चुुनाव में यूपी की अमेठी लोकसभा सीट से राहुल गांधी, भाजपा नेत्री और केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से हार गए थे। इसके बाद राहुल ने उत्तर भारतीय के लिए बहुत बुरा-भला कहा था। फिर भी केरल में कांगे्रस 2016 की तरह 2021 में भी विपक्ष की भूमिका से आगे नहीं बढ़ पाई। पश्चिम बंगाल में तो कांगे्रस का खाता तक नहीं खुल पाया। जबकि वहां सत्ता हासिल करने के लिए कांगे्रस ने देश विरोधी ताकतों तक से हाथ मिलाने में गुरेज नहीं किया था। कागे्रस ने उन वामपंथी दलों से भी हाथ मिला लिया था, जिसकी विचारधारा के खिलाफ कांगे्रस दशकों तक सियासी लड़ाई लड़ती रही थी। इतना सब करने के  बाद भी जब गांधी परिवार को लगने लगा कि बंगाल में उसकी ‘दाल’ नहीं गलेगी तो उसने तृणमूल कांगे्रस को वाॅक ओवर दे दिया ताकि भारतीय जनता पार्टी को बंगाल की सत्ता में आने से रोका जा सके। गांधी परिवार तो बंगाल चुनाव में प्रचार करने के लिए ही नहीं गया। इसी वजह से त्रिकोणीय मुकाबला दो दलों के बची सिमट गया,जिसका ममता की पार्टी को फायदा हुआ और भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ा। इसी तरह से कांगे्रस अपनी धुर विरोधी भारतीय जनता पार्टी को रोकने में जरूर सफल रही। इसी लिए उसने अपनी हार का गम मनाने की बजाए भाजपा की हार की खुशियां मनाना ज्यादा बेहतर समझा। असम में राहुल गांधी के साथ-साथ प्रियंका वाड्रा ने भी प्रचार किया था। अपनी जनसभाओं में राहुल गांधी ने एनआरसीध्सीएए के मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाते हुए यहां तक कह दिया था कि कांगे्रस सत्ता में आई तो असम में एनआरसीध्सीएए लागू नहीं होगा, फिर भी गांधी परिवार को मुंह की खानी पड़ी,लेकिन दुख की बात यह है कि गांधी परिवार ने खामियां दूर करने की बजाए इस पर पर्दा डालने के लिए मोदी सरकार के खिलाफ हमला खोलना ज्यादा बेहतर समझा ताकि कांगे्रस के अंदुरूनी संकट से लोगों का ध्यान बटाया जा सके।
         खैर, पांच राज्यो में हार का कारण नहीं समझ में आने की वजह से सोनिया गाधंी  ने एक पांच सदस्यीय कमेटी का गठन किया है। सोनिया को लगता होगा कि यह कमेटी हार के कारणों का पता लगाने के क्रम में ‘दूध का दूध,पानी का पानी’ करने में सफल रहेगी। किन्तु सबकी ऐसी सोच नहीं है। खासकर कांगे्रस के बाहर के लोग इस कमेटी के गठन के बारे में दो टूक कहने से नहीं हिचकिचा रहे हैं कि कमेटी का गठन हार के कारणों का पता लगाने के लिए नहीं गांधी परिवार को बचाने के लिए किया गया है। यह कमेटी कितनी निष्पक्ष होकर अपनी रिपोर्ट तैयार करेगी,इस पर इसलिए सवाल उठना लाजिमी है क्योंकि कमेटी में जिन पांच लोगों को लिया गया है, उसमें से चार के बारे में तो यह जगजाहिर है कि वह पार्टी के नहीं सिर्फ और सिर्फ गांधी परिवार के प्रति वफादार हैं। इसमें सबसे बड़ा नाम पूर्व केन्द्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद का है। जिस तरह से गांधी परिवार के अधंभक्तों को कमेटी में शामिल किया गया है,उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि हार का ठीकरा गांधी परिवार पर नहीं फोड़ा जाएगा,इसकी जगह प्रत्येक राज्य में किसी न किसी ‘प्यादे’ को ‘बलि’ के लिए तलाश कर कमेटी अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेगी। पश्चिम बंगाल में इस ‘प्यादे’ को लोग वहां के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चैधरी के नाम से जानते हैं। अधीर रंजन चैधरी की खासियत की बात की जाए तो गांधी परिवार से वफादारी के चलते ही उन्हेें  लोकसभा मंे नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी हासिल हुई। वर्ना लोकसभा में चैधरी से काबिल कांगे्रस सांसदों की संख्या कम नहीं थी। कमेटी में बस एक नाम ही चैकाने वाला है,वह है मनीष तिवारी का, जो पिछले कुछ दिनों से पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे।
      हार के कारणों का पता लगाने के लिए बनी कमेटी महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और ठाकरे सरकार में मंत्री अशोक चव्हाण की अगुआई में गठित की गई है। सत्ता के गलियारों मेें चर्चा यह भी है कि हार की समीक्षा के लिए समिति बनाने में तत्परता दिखाते हुए कांग्रेस हाईकमान जिसे गांधी परिवार कहा जाता है, ने पार्टी में जारी उथल-पुथल को थामते हुए अपना घर दुरुस्त करने पर गंभीर होने का संदेश देने की कोशिश की है। हार के कारणों का पता लगाने के लिए गठित इस कमेटी  को 15 दिनो में अपनी समीक्षा रिपोर्ट कांग्रेस अध्यक्ष को सौंपने के लिए कहा गया है। इसको लेकर भी सवाल उठ रहे हैं,सब जानते हैं कि इस समय देश भीषण रूप से कोरोना महामारी से जूझ रहा है। कई राज्यों में लाॅक डाउन या तमाम तरह के प्रतिबंध लगे हुए हैं। कोई कहीं आ-जा नहीं रहा नहीं है। ऐसे में कमेटी कैसे 15 दिनों में जांच करके अपनी रिपेार्ट सोनिया गांधी को सौंप सकती है। इसीलिए गांधी परिवार की नियत पर लोग संदेह कर रहे हैं। लोग यह भी पूछ रहे हैं कि एक तरफ तो मैडम सोनिया गांधी कोरोना की आड़ लेकर कांगे्रस अध्यक्ष का चुनाव कराने से कतरा रही हैं,वहीं दूसरी तरफ पांच राज्यों में हार की समीक्षा कराने में उनको नहीं लगता है कि कोरोना आड़े आएगा। असल में येनकेन प्रकारेण गांधी परिवार पार्टी की बागडोर अपने पास से जाने ही नहीं देना चाहता है।  ताज्जुब तो इस बात का भी है जिस गांधी परिवार को यह समझने में जरा भी देर नहीं लगती है कि केन्द्र की मोदी और राज्यों की बीजेपी सरकारें कहां-कहां ‘चूक’ कर रही है या जनता को बेवकूफ बना रही हैं, उसी गांधी परिवार को पार्टी की हार ही नहीं चुनाव में हुई दुर्गति का अंदाजा तक नहीं है। सच्चाई यही है कि गांधी परिवार अपनी तरफ उठने वाली उंगलियों को दूसरी तरफ मोड़ने की साजिश में लगी है। वर्ना  कौन नहीं जानता है कि पांच राज्यों में हुई कांगे्रस की दुर्दशा के लिए सिर्फ और सिर्फ गांधी परिवार उसमें भी राहुलध्प्रियंका ही सबसे अधिक जिम्मेदार हैं।
     बहरहाल,कांग्रेस कार्यसमिति की दस मई को हुई बैठक के दूसरे ही दिन इस समिति का गठन कर हाईकमान ने यह भी जताने का प्रयास किया है कि पार्टी की लगातार बढ़ती चुनौतियों का रास्ता निकालने के लिए नेतृत्व त्वरित कदम उठाने को तैयार है। अशोक चव्हाण को हार की समीक्षा के लिए गठित समूह की कमान सौंपना वैसे इस लिहाज से दिलचस्प है कि वह दिल्ली की सियासत में कम ही सक्रिय रहे हैं और उनका फोकस महाराष्ट्र की राजनीति तक ही रहा है। इस समिति में चव्हाण और मनीष तिवारी के अलावा गांधी परिवार के प्रति निष्ठावान पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद को भी रखा गया है। पूर्वोत्तर राज्यों में पार्टी की स्थिति का आकलन करने के मकसद से समूह में लोकसभा सांसद विंसेंट एच पाला को शामिल किया गया है। वहीं, केरल में हुई हार को देखते हुए सूबे से लोकसभा की युवा सांसद ज्योति मणि को इसमें जगह दी गई है। इन दोनों सांसदों को भी पार्टी से अधिक गांधी परिवार  के भरोसेमंद नेताओं में गिना जाता है। मालूम हो कि दस मई को हार पर समीक्षा के लिए हुई कार्यसमिति की बैठक में सोनिया गांधी ने पांच राज्यों में पार्टी के खराब प्रदर्शन की बेबाकी से तथ्यपरक समीक्षा करने की घोषणा करते हुए समिति बनाने का एलान किया था। कहा यह भी जा रहा है कि दस जनपथ हार की समीक्षा के लिए कमेटी बना कर उन कांगे्रसी नेताओं का मुंह बंद कर देना चाहती है,जो आजकल पार्टी आलाकमान और खासकर राहुल गांधी के साथ-साथ अब प्रियंका की काबलियत पर भी प्रश्न चिन्ह लगाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैंे।इसे कांगे्रस की मजबूरी ही कहा जाएगा,क्योंकि पिछले कुछ वर्षो में पार्टी आलाकमान से नाराज होकर या उनकी बात नहीं सुने जाने का आरोप लगाते हुए एक-एक करके जिस से कई दिग्गज कांगे्रस नेताओं ने पार्टी से किनारा कर लिया है,कांग्रेस उस प्रवाह को किसी भी तरह से रोकना चाहती है।

   पांच राज्यो में हार के कारणों की समीक्षा करने वाली कमेटी में नाराज मनीष तिवारी को जगह देने से पहले भी सोनिया गांधी जी-23 के प्रमुख गुलाम नबी आजाद को कांग्रेस की कोविड-19 रिलीफ टास्क फोर्स की कमान सौंप चुकी थीं। आजाद की अगुआई में गठित पार्टी की इस 13 सदस्यीय टास्क फोर्स में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के अलावा अंबिका सोनी, रणदीप सुरजेवाला, जयराम रमेश, पवन बंसल, केसी वेणुगोपाल, मुकुल वासनिक सरीखे कई वरिष्ठ नेताओं को शामिल किया गया था। साथ ही कोविड महामारी में पीड़ित लोगों की मदद के चलते सुर्खियां बटोर रहे युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बीवी श्रीनिवास को भी इस टास्क फोर्स में शामिल गया गया था। कोरोना महामारी में राष्ट्रीय स्तर पर आम लोगों को राहत पहुंचाने के कांग्रेस के प्रयासों को संगठित स्वरूप देने के मकसद से इस टास्क फोर्स का गठन किया गया है।यहां यह बताना भी जरूरी है कि गुलाम नबी इस समय कांग्रेस के असंतुष्ट खेमे की अगुआई कर रहे हैं और पार्टी की खामियों को बयान करने में सबसे मुखर भी हैं। कार्यसमिति की बैठक के दौरान पांच राज्यों की हार पर भी आजाद ने ही सबसे ज्यादा सवाल उठाया था और बंगाल व असम में गठबंधन में हुई चूक को लेकर बेबाक बातें कही थीं। बीते चार दशक से कांग्रेस की राजनीति के प्रमुख चेहरों में शामिल रहे आजाद की नाराजगी को पार्टी के मौजूदा हालत के मद्देनजर नेतृत्व उन्हें दरकिनार करने का जोखिम नहीं उठाना चाहता। इसीलिए हार पर समीक्षा के लिए गठित समिति में जहां मनीष तिवारी को जगह दी गई है, वहीं पार्टी की कोविड टास्क फोर्स की अध्यक्षता गुलाम नबी आजाद को सौंपी गई है।

Previous articleलाशों के ढेर पर संविधान धर्म का राज्‍यपाल को पाठ पढ़ाती ममता
Next article‘लेडी विद द लाइट’ के लिये इम्पैक्ट गुरु की सार्थक पहल
संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here