दो दिन तक लगातार साक्षी जी महाराज के इस बयान को कि हिन्दुओं को चार चार बच्चे पैदा करने चाहिए, मीडिया द्वारा लगातार दिखा दिखा कर उनके बयान को खूब दूर तक फैलाया गया.जिन्हे नहीं भी पता था उन तक भी ये आह्वान पहुँच गया.मीडिया का धन्यवाद.
प्रश्न यह नहीं है कि साक्षी का बयान सही है या गलत.प्रश्न यह है कि साक्षी जी द्वारा जो बयान दिया गया उसकी पृष्ठभूमि क्या है?इसी प्रकार की बातें उन सभी लोगों द्वारा समय समय पर कही जाती रही हैं जो इस देश की मौलिक हिन्दू पहचान को बनाये और बचाये रखना चाहते हैं.ऐसा नहीं है कि बढ़ती जनसँख्या की समस्या से वो अवगत नहीं हैं.लेकिन हिन्दुस्थान प्रायद्वीप या भारतीय उपमहाद्वीप में हिन्दुओं कि आबादी पिछले १२० बर्षों में लगातार गिर रही है.जिन क्षेत्रों में हिन्दुओं कि संख्या काफी गिर गयी वो हिंदुस्थान से अलग होकर मुस्लिम पाकिस्तान या मुस्लिम बांग्ला देश बन गए. आबादी के इस परिवर्तन के सम्बन्ध में निम्न आंकड़ों से स्थिति को समझा जा सकता है:( ये आंकड़े पूरे उप महाद्वीप के हैं जिसमे पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं)
१८९१:-हिन्दू ८२%, मुस्लिम १५% अन्य ३%
१९५१:-हिन्दू ७२%,मुस्लिम २३% अन्य ५%
२०११:-हिन्दू ६२%, मुस्लिम ३२% अन्य ६%
अब भारत में गिरती हिन्दू आबादी को देख लें:-
१८९१:-हिन्दू ९२%,मुस्लिम ५% अन्य ३%
१९५१:-हिन्दू ८५%,मुस्लिम ९% अन्य ६%
२०११:- हिन्दू ७७%,मुस्लिम १७% अन्य ६%
आज स्थिति ये हो गयी है कि भारत कहने के लिए हिन्दू देश है लेकिन भारत के अंदर ही एक पाकिस्तान+बांग्लादेश मौजूद है.
स्वर्गीय संजय गांधी ने जनसँख्या के बढ़ते दबाव को समय से पहचान कर उसपर अंकुश लगाने के लिए सेकुलर तरीके से सबके साथ एक जैसा अभियान चलाया गया था.लेकिन एक समुदाय ने इसे उनके धार्मिक जीवन में दखल माना.उस समुदाय की संगठित वोट शक्ति के कारण कोई भी सरकार पिछले ३७-३८ वर्षों से परिवार नियोजन के बारे में कुछ भी कहने से बचती रही है.अब ये कौन समझाए कि जिन मुल्कों में उनके मजहब का जन्म हुआ है वहां भी परिवार नियोजन या जनसंख् नियंत्रण के कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं और वहां इसके कारण उनका मजहब खतरे में नहीं पड़ता है.लेकिन जब भारत में अनियंत्रित ढंग से एक समुदाय अपनी संख्या बढाने के लिए हर संभव तरीके अपनाता है, जिसमे बहु विवाह, लव जिहाद द्वारा लड़कियों का अपने मजहब में मतांतरण, और परिवार नियोजन का हर ढंग से विरोध शामिल है, तो उसकी प्रतिक्रिया में अगर हिन्दू नेता भी अपनी जनसँख्या बढाने के लिए आह्वान करते हैं तो उन्हें दोष कैसे दे सकते हैं? अब ये तो वो कह नहीं सकते हैं कि मुस्लिमों कि जनसँख्या पर काबू लगाओ, क्योंकि ऐसा कहते ही इस्लाम खतरे में पड़ जायेगा और सारा सेकुलर मीडिया और सेकुलर नेताओं की फ़ौज उस पर जमीन आसमान एक कर देंगे.अतः यही कह सकते हैं की हिन्दू भी अपनी आबादी बढ़ाये.
आबादी का अपना राजनीतिक महत्त्व है.लोकतंत्र में सबके वोट गिने जाते हैं तोले नहीं जाते हैं.अतः हर वर्ग समाज में अपनी संख्या अधिक से अधिक रखना चाहता है ताकि चुनावों में किसी समुदाय विशेष के हाथों मात न खा सकें.ऐसे में चाहे संघ के नेता हों या साक्षीजी महाराज. अगर उनको इस प्रकार के बयानों से रोकना है तो पहले परिवार नियोजन और जनसँख्या नियंत्रण को बिना भेदभाव के और बिना किसी समुदाय को छूट के सख्ती से लागू करना होगा.क्या शासन में जनसँख्या नियंत्रण की नीति को सख्ती से सभी समुदायों पर लागू करने का साहस है? यदि हाँ, तो फिर हिन्दू नेताओं के बयानों पर अंकुश लगाने की बात करें अन्यथा हिन्दू नेताओं को जनसँख्या बढाने के बयान देने से रोकना न्याय संगत नहीं होगा.समाज में सबके साथ एक जैसा व्यवहार किया जाये यह लोकतंत्र और सेकुलरिज्म का तकाजा है.यदि एक समुदाय को अपनी आबादी बढाने की खुली छूट दी जाएगी तो दुसरे वर्ग में भी इसकी प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक ही है.
आवश्यकता इस बात की है कि सभी समुदायों के धर्मगुरु एक साथ बैठकर जनसँख्या वृद्धि के बारे में विचार करें और सख्ती से अपने अपने समुदायों में जनसँख्या सीमित करने का अभियान चलायें.इस सम्बन्ध में बहु विवाह पर भी सख्ती से रोक लगनी चाहिए.जिन्हे बहु विवाह की खुली छूट चाहिए वो वहां चले जाएँ जहाँ उन्हें ये छूट मिल सकती हो. अन्यथा देश की बढ़ती आबादी के मद्देनज़र और सामान नागरिकसंहिता के संविधानिक निर्देश और कुछ वर्ष पूर्व माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देश के परिप्रेक्ष्य में इस बारे में मोदीजी की सरकार द्वारा स्पष्ट और दो टूक नीति अपनाया जाना आवश्यक है.मुद्दों को दरी नीचे खिसकाने की पिछली सरकारों की प्रवृत्ति को त्यागना होगा.और उनसे सीधे सीधे निबटना होगा
प्रश्न यह नहीं है कि साक्षी का बयान सही है या गलत.प्रश्न यह है कि साक्षी जी द्वारा जो बयान दिया गया उसकी पृष्ठभूमि क्या है?इसी प्रकार की बातें उन सभी लोगों द्वारा समय समय पर कही जाती रही हैं जो इस देश की मौलिक हिन्दू पहचान को बनाये और बचाये रखना चाहते हैं.ऐसा नहीं है कि बढ़ती जनसँख्या की समस्या से वो अवगत नहीं हैं.लेकिन हिन्दुस्थान प्रायद्वीप या भारतीय उपमहाद्वीप में हिन्दुओं कि आबादी पिछले १२० बर्षों में लगातार गिर रही है.जिन क्षेत्रों में हिन्दुओं कि संख्या काफी गिर गयी वो हिंदुस्थान से अलग होकर मुस्लिम पाकिस्तान या मुस्लिम बांग्ला देश बन गए. आबादी के इस परिवर्तन के सम्बन्ध में निम्न आंकड़ों से स्थिति को समझा जा सकता है:( ये आंकड़े पूरे उप महाद्वीप के हैं जिसमे पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं)
१८९१:-हिन्दू ८२%, मुस्लिम १५% अन्य ३%
१९५१:-हिन्दू ७२%,मुस्लिम २३% अन्य ५%
२०११:-हिन्दू ६२%, मुस्लिम ३२% अन्य ६%
अब भारत में गिरती हिन्दू आबादी को देख लें:-
१८९१:-हिन्दू ९२%,मुस्लिम ५% अन्य ३%
१९५१:-हिन्दू ८५%,मुस्लिम ९% अन्य ६%
२०११:- हिन्दू ७७%,मुस्लिम १७% अन्य ६%
आज स्थिति ये हो गयी है कि भारत कहने के लिए हिन्दू देश है लेकिन भारत के अंदर ही एक पाकिस्तान+बांग्लादेश मौजूद है.
स्वर्गीय संजय गांधी ने जनसँख्या के बढ़ते दबाव को समय से पहचान कर उसपर अंकुश लगाने के लिए सेकुलर तरीके से सबके साथ एक जैसा अभियान चलाया गया था.लेकिन एक समुदाय ने इसे उनके धार्मिक जीवन में दखल माना.उस समुदाय की संगठित वोट शक्ति के कारण कोई भी सरकार पिछले ३७-३८ वर्षों से परिवार नियोजन के बारे में कुछ भी कहने से बचती रही है.अब ये कौन समझाए कि जिन मुल्कों में उनके मजहब का जन्म हुआ है वहां भी परिवार नियोजन या जनसंख् नियंत्रण के कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं और वहां इसके कारण उनका मजहब खतरे में नहीं पड़ता है.लेकिन जब भारत में अनियंत्रित ढंग से एक समुदाय अपनी संख्या बढाने के लिए हर संभव तरीके अपनाता है, जिसमे बहु विवाह, लव जिहाद द्वारा लड़कियों का अपने मजहब में मतांतरण, और परिवार नियोजन का हर ढंग से विरोध शामिल है, तो उसकी प्रतिक्रिया में अगर हिन्दू नेता भी अपनी जनसँख्या बढाने के लिए आह्वान करते हैं तो उन्हें दोष कैसे दे सकते हैं? अब ये तो वो कह नहीं सकते हैं कि मुस्लिमों कि जनसँख्या पर काबू लगाओ, क्योंकि ऐसा कहते ही इस्लाम खतरे में पड़ जायेगा और सारा सेकुलर मीडिया और सेकुलर नेताओं की फ़ौज उस पर जमीन आसमान एक कर देंगे.अतः यही कह सकते हैं की हिन्दू भी अपनी आबादी बढ़ाये.
आबादी का अपना राजनीतिक महत्त्व है.लोकतंत्र में सबके वोट गिने जाते हैं तोले नहीं जाते हैं.अतः हर वर्ग समाज में अपनी संख्या अधिक से अधिक रखना चाहता है ताकि चुनावों में किसी समुदाय विशेष के हाथों मात न खा सकें.ऐसे में चाहे संघ के नेता हों या साक्षीजी महाराज. अगर उनको इस प्रकार के बयानों से रोकना है तो पहले परिवार नियोजन और जनसँख्या नियंत्रण को बिना भेदभाव के और बिना किसी समुदाय को छूट के सख्ती से लागू करना होगा.क्या शासन में जनसँख्या नियंत्रण की नीति को सख्ती से सभी समुदायों पर लागू करने का साहस है? यदि हाँ, तो फिर हिन्दू नेताओं के बयानों पर अंकुश लगाने की बात करें अन्यथा हिन्दू नेताओं को जनसँख्या बढाने के बयान देने से रोकना न्याय संगत नहीं होगा.समाज में सबके साथ एक जैसा व्यवहार किया जाये यह लोकतंत्र और सेकुलरिज्म का तकाजा है.यदि एक समुदाय को अपनी आबादी बढाने की खुली छूट दी जाएगी तो दुसरे वर्ग में भी इसकी प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक ही है.
आवश्यकता इस बात की है कि सभी समुदायों के धर्मगुरु एक साथ बैठकर जनसँख्या वृद्धि के बारे में विचार करें और सख्ती से अपने अपने समुदायों में जनसँख्या सीमित करने का अभियान चलायें.इस सम्बन्ध में बहु विवाह पर भी सख्ती से रोक लगनी चाहिए.जिन्हे बहु विवाह की खुली छूट चाहिए वो वहां चले जाएँ जहाँ उन्हें ये छूट मिल सकती हो. अन्यथा देश की बढ़ती आबादी के मद्देनज़र और सामान नागरिकसंहिता के संविधानिक निर्देश और कुछ वर्ष पूर्व माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देश के परिप्रेक्ष्य में इस बारे में मोदीजी की सरकार द्वारा स्पष्ट और दो टूक नीति अपनाया जाना आवश्यक है.मुद्दों को दरी नीचे खिसकाने की पिछली सरकारों की प्रवृत्ति को त्यागना होगा.और उनसे सीधे सीधे निबटना होगा
अगर आपके तर्कों को सही भी मान लिया जाए तो भी कोई परिवार अपने औकात के बाहर अपनी औलाद संख्या क्यों बढ़ाना चाहेगा?
बिलकुल सही संदेश। और अनिल जी का सही निष्कर्श।
लेखक को धन्यवाद।
आँख खोलनेवाली सांख्यिकी देकर आप ने सारे ==> “चेक्युललों”<= की पोल खोल दी है।