भारत गणराज्य की दशा एवँ दिशा

indiaपरशुराम कुमार

कहावत है कभी भारत में घरों पर सोने के कवेलू हुआ करते थे |यहाँ कि संपत्ति ,उपजाऊ जमीन और अनुकूल वातावरण सारी दुनियाभर के लिए ईर्ष्या का कारण थे ,फलस्वरूप विदेशी आक्रमणकारियों ने इसे बार -बार लूटा |मगर यह तो इतिहास है |

स्वतन्त्रता प्राप्ति होने के पश्चात् भौगोलिक स्थिति अनुकूल पर्याप्त संसाधन होते हुए के बावजूद विकास के क्षेत्र में अन्य विकसित देशों से हम बहुत पीछे हैं ऐसा क्यों ? स्वतंत्रता प्राप्ति के समय मान लिया जाय कि हम गणराज्य के रूप में एक नवजात शिशु के समान रहे ;इस राज्य की आयु आज ६८ वर्ष से अधिक है |उदार अर्थ व्यवस्था स्वीकार किये आज २० वर्षों से अधिक हो चुके हैं |मुझे याद है यही प्रधानमंत्री जब वित्तमंत्री थे तब बार -बार कहे थे कि इस उदारीकरण का प्रभाव २० वर्ष बाद भारत की जनता को लाभप्रद लगेगी |परन्तु आज २० साल बाद इन्हीं का बयान है कि आज हमारी अर्थव्यवस्था घोर संकट में है ||हमारे गणित क्यों गलत हो रहे हैं ?क्यों जनता को योग्य दिशा देने में हमारे राजनीतिज्ञ असफल हुए हैं ? क्या शाशकीय व्यवस्थाओं की त्रुटियाँ,कमियां,निष्क्रियता,जनता के दबाब का अभाव इसके लिए जिम्मेदार नहीँ हैं ?

इन सबके बारे में आत्मचिंतन करने पर एक बात तीव्रतापूर्वक महसूस होती है –वह यह कि हमें किस दिशा में आगे बढ़ना है ? स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् देश के विकास का स्वप्न प्रत्येक की आँखों में था ,उसके लिए दिशा निर्धारित करने का प्रयत्न भी हुआ |

पं नेहरु ने बांधों ,इस्पात संयत्रों ,उच्च अभियान्त्रिक शिक्षा संस्थानों के निर्माण पर जोर दिया |लाल बहादुर शाश्त्रीजी ने जय जवान जय किसान का मन्त्र देकर देश का मार्ग प्रशश्त किया |इन्दिरागांधी ने छोटे -२ गांवों तक बैंकों का जाल बिछाया |हरित क्रांति का मार्ग दिखाया |राजीव गाँधी ने कम्प्यूटर और यातायात के क्षेत्रों में क्रांति की |देश आधुनिकता की दिशा में तेजी से आगे बढा |नरसिम्हा राव के कार्यकाल में मुक्त अर्थव्यवस्था लागु की गई |जीवनावश्यक वस्तुओं का अभाव कम हुआ |अटल बिहारी वाजपेई ने ग्राम सड़क योजना के माध्यम से ग्रामो को आपस में जोड़ा |शहरों को मंडियों से जोड़ा ,नदियों को जोड़ने का प्रयास किया |डाक्टर मनमोहन सिंह ने भी रोजगार योजना ,किसानो की कर्ज माफ़ी ,ग्रामीण विकास की योजनाएँ बनाई |प्रत्येक प्रधानमंत्रीजी के कार्यकाल में प्रयत्न किए जाने पर भी आज ६ दशकों के बाद भी देश में गिनती के लोग संपन्न हैं |बाकी सारे लोग बिपन्न ऐसी परिस्थिति क्यों है ?इस सीधे और सरल प्रश्न का उत्तर खोजना हमारे लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है |हमें उसी का उत्तर खोजना होगा |

हम बहुत विकसित हो गए हैं ऐसा हम समझते हैं |यह केवल विशिष्ट ४ वर्ग के लोगों के जीवन शैली के कारण |मुट्ठीभर धनिकों का संपत्ति प्रदर्शन ,उनकी बड़ाई ,उपभोगवाद ,ऐशोआराम ,इसके कारण अपना देश बहुत विकसित हो रहा है ;ऐसा कृत्रिम चित्र खड़ा हो रहा है |

लेकिन केवल धन प्राप्ति से जीवन का ध्येय प्राप्त हो गया ,ऐसा मानना जीवन के बारे में अतिशय संकुचित विचार करने जैसा है ,अपनी दिशा भूल जाने जैसा है |वास्तव में हमारे यहाँ ३ वर्ग हैं –गाड़ी वाले ;बाइकबाले ;और बैलगाड़ी बाले |इनमे से ५ करोड़ गाड़ी बाले ,३० करोड़ बाइक बाले और ८० करोड बैलगाड़ी बाले |हकीकत तो यह है कि इनमे से अधिकांश के नसीब में बैलगाड़ी भी नहीं है |सामान्य किसान आज भी गरीब ही बना हुआ है |भारत के २० करोड़ किसानों और कृषि मजदूरों में से मुश्किल से २० लाख के पास ट्रैक्टर हैं |कुल ८-१० करोड़ दुग्ध उत्पादकों में से मुश्किल से ८ हजार के पास दूध निकलने के आधुनिक यन्त्र हैं |गावों में रहने वाले लोगों के कष्ट देखकर भारत को आर्थिक महाशक्ति कहने बाले लोगों को शर्म आनी चाहिए |गावों से किसान मजदुर शहर की ओर और शहरों से उच्च वर्ग वीजा प्राप्त कर विदेशों की ओर पलायन करते देखे जा रहे हैं |जो ग्रामीण शहर नहीं जा पाते अथवा शहर के जिस अशिक्षित वर्ग को विदेशी दूतावास घांस नहीं डालते ,वे शामिल हो जाते हैं गुंडों की टोली में या फिर उग्रवादी संगठनों में |प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अलग -अलग दिशा है ,ऐसी दशा में भारत गणराज्य की दिशा क्या हो ?क्या इस दिशा की खोज करना तत्काल आवश्यक नहीं है ?

लोगों को सत्ता भयमुक्त समाज नही दे पायी,भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन नही दे पायी। भय, भूख और भ्रष्टाचार व्यापकतर से व्यापकतम होता गया और देश के संसदीय लोकतंत्र में दीमक की भांति प्रविष्ट हो गया है। चिंताएं बढ़ी हैं, घटी नही है। कारण खोजने होंगे, कि अंतत: क्या कारण रहे जो लोकतंत्र का रथ संकल्पित राजपथ पर आगे न बढ़कर कीचड़ में जा फंसा?

हमसे भूल हुई और पहली भूल रही कि हमने स्वयं को अपनी प्राचीनता से काटा, अपने सांस्कृतिक मूल्यों से और गौरवपूर्ण अतीत से और अपने मूल से काटा। प्रत्येक मनुष्य आदिपुरूष का नवीन संस्करण होता है। प्रकृतिचक्र को देखिए पुरातन ही नूतन बन रहा है। पुरातन और नूतन के इस सत्य को जो समझ लेता है वही सनातन के रहस्य को जान लेता है। वही भारत के सनातनपन को समझ लेता है। मनुष्य आदि पुरू ष का ही नही परमपुरूष ईश्वर का भी नवीन संस्करण है। ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ का यही अर्थ है। जब हम ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ को समझ लेते हैं तो ज्ञात होता है कि मैं ही मनु हूं, मैं ही ययाति हूं, मैं ही अग्नि, वायु , आदित्य, अंगीरा हूं, मैं ही कपिल हूं, गौतम हूं, कणाद हूं, जैर्मिन हूं, पतंजलि हूं, राम हूं, कृष्ण हूं। तुलसी हूं, सूर हूं, कबीर हूं, मैं ही दयानंद हूं मैं ही विवेकानंद हूँ, मैं ही गांधी हूं और मैं ही सावरकर हूं।

ऐसी स्थिति उत्पन्न होते ही गांधी-सावरकर का भेद समाप्त हो जाता है |रथ हांकने वाले अधिरथ का पुत्र कर्ण अपने पुरूषार्थ और उद्यमशील स्वभाव के कारण स्वयं महारथी बन गया। इस्राइल जैसा देश अपने जातीय अभिमान के कारण विश्व में अपना गौरवपूर्ण स्थान बनाने में सफल रहा, चीन जैसा दब्बू राष्ट्र हमारे पड़ोस से उठा और ऊंचाई पर पहुंच गया। कई लोग अधिरथ से महारथी बने। कई देश ऊंचाईयों का इतिहास लिखने में सफल रहे, पर हम महारथी से अधिरथ बन गये। अपनी विदेश नीति तक को अमेरिका के यहां गिरवी रख दिया। दूसरों से पूछ पूछकर रथ हांकने की स्थिति में आ गये। आज कई जयचंद देश की संसद में बैठे हैं |दोषी हम सब हैं, कोई एक व्यक्ति या कोई एक राजनीतिक दल इसके लिए अकेला दोषी नही है।हमने 15 अगस्त 1947 को जब देश को आजाद कराया था तो एक संकल्प लिया था, जिसे पंडित नेहरू ने राष्ट्रीय संकल्प के रूप में रखा था कि ये देश कभी विश्वगुरू रहा है और हम इसे पुन: विश्वगुरू के सम्मानित स्थान पर विराजमान कराएंगे। आज इस देश के पास ढाई अरब हाथ हैं, सवा अरब मस्तिष्क है और विश्व की सबसे अधिक युवा शक्ति भी इसके पास है-परंतु उनमें से कितने लोग इस राष्ट्रीय संकल्प के प्रति प्रतिबद्घ हैं कि हम देश को पुन: विश्वगुरू के सम्मानित स्थान पर विराजमान कराएंगे?

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