घोटालों के देश में एक और घोटाले की सुगबुगाहट है…आखिर हिंदुस्तानी नेता खाने पीने के शौकीन जो ठहरे…तो जो हाथ लगा डकार गए…पंप, चारा, तोप, ताबूत, हेलिकॉप्टर ये सब तो पुरानी बातें हैं… स्पैक्ट्रम खाया, फिर कोयला भी खाया…लेकिन इतने में भी पेट नहीं भरा…भई अब तो हद ही हो गई…भ्रष्टाचार की भूख जब बेकाबू हो गई तो कंडोम भी खा गए… जी हां चौंक गए ना… आप सोच रहे होंगे कि कंडोम भी कोई खाने की चीज है भला…लेकिन क्या फर्क पड़ता है…जब इस बाजार में सब कुछ बिकाऊ है..तो फिर सब कुछ खाऊ क्यों न हो…
बड़े दिल वालों के देश में जनसंख्या नियंत्रण और सुरक्षित यौन संबंधों के प्रति जागरुकता के लिए कंडोम वेंडिंग मशीनें लगाई गई…विदेशी शहरों की नकल पर ये फंडा अपना तो लिया… लेकिन खाने वालों ये बात नहीं पची… इसलिए उन्होंने कंडोम को भी पचाने की सोच ली… और इसी पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने सवाल उठाए हैं… कैग ने सरकार से पूछा है कि आखिर 21 करोड़ रुपये खर्च कर लगाई गई 10 हजार कंडोम मशीनें कहां गायब हो गईं…कैग ने स्वास्थ्य मंत्रालय की लचर नीति और नाको के कमजोर प्लानिंग पर भी फटकार लगाई है
दरअसल सरकार ने देश भर में 22 हजार कंडोम वेंडिंग मशीनों (CVMs) लगाने के लिए 21 करोड़ रुपये खर्च किए, लेकिन इनमें से 10 हजार मशीनें गायब हैं और करीब 1,100 मशीनें काम नहीं कर रही हैं… नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्नाइजेशन यानि नाको ने 2005 में देश में एड्स की रोकथाम के लिए सार्वजनिक जगहों- मसलन, रेलवे स्टेशनों, रेड लाइट एरिया, बैंकों और डाकघरों आदि में ऐसी मशीनें लगाने का प्रस्ताव रखा था….केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की मंजूरी मिलने पर इस योजना को शुरू कर दिया गया… योजना के पहले चरण के तहत सितंबर 2005 में एचएलएल लाइफकेयर लिमिटेड कंपनी को 10 करोड़ रुपये जारी किए गए .. जिससे हाई रिस्क वाले इलाकों में 11025 कंडोम वेंडिंग मशीन लगाई गई थी…लेकिन ऑडिट में पाया गया कि इनमें से 9860 मशीनें या तो गायब हैं या फिर चोरी हो गई हैं…यही नहीं शेष 1130 मशीनें भी सही ढंग से काम नहीं कर रही हैं… इसी तरह अक्टूबर 2008 में दूसरे चरण में 10 करोड़ की लागत से 11 हजार मशीनें लगाई जानी थी… लेकिन इनमें से केवल 6499 मशीनें सही हालत में मिली..बाकी यी तो खराब हो गई थी…या उन्हें लगाया ही नहीं गया था…इस कार्यक्रम पर कुल 21.54 करोड़ रुपए खर्च हुए थे…लेकिन मशीनों की सही देखभाल न करने और कई मशीनों गायब होने के चलते योजना फेल होने लगी…तब जाकर नाको ने स्वास्थ्य मंत्रालय को मार्च 2013 में योजना बंद करने का प्रस्ताव दिया
मतलब साफ है कि लालफीताशाही और सफेदपोशों की मिलीभगत के चलते योजना के क्रियान्वयन मे घोर लापरवाही बरती गई… जिससे करीब 10 करोड़ का नुकसान हुआ है…कोलगेट और टू-जी के सामने भले ही ये रकम बहुत छोटी पर लगे… लेकिन मामले ने न सिर्फ घोटालेबाजों की बेशर्मी उजागर की है… बल्कि एड्स जैसी बीमारियों से निपटने मे हमारी लचर नीतियों की भी पोल खुल गई है… इस प्रकरण पर कुछ इस तरह से टिप्पणी करना चाहूंगा
कंडोम ही तो खाया रोता है क्या..
आगे आगे देखिए होता है क्या…