अभी भी नहीं टूटा कांग्रेस के नेताओं का मुगालता!

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नार्थ ईस्ट के परिणामों के बाद भी अगर नहीं चेते तो चार राज्यों में सरकार बनाना हो सकता है टेड़ी खीर!

लिमटी खरे

लगभग एक दशक से सत्ता से बाहर चल रही कांग्रेस के आला नेताओं का मुगालता शायद टूट नहीं पा रहा है। कांग्रेस के आला नेताओं का बर्ताव यही प्रदर्शित कर रहा है कि वे इस मुगालते में हैं कि आज भी उनकी सत्ता केंद्र और अनेक राज्यों में है। आजादी के बाद लगभग आधी सदी तक देश पर कांग्रेस का राज रहा है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है, किन्तु इक्कीसवीं सदी में कांग्रेस के रणनीतिकार सत्ता को थामने में पूरी तरह असफल ही साबित दिखाई दिए।

हाल ही में उत्तर पूर्व (नार्थ ईस्ट) के चुनावी नतीजों ने कांग्रेस के नेताओं को आईना ही दिखाया होगा। भारत जोड़ो यात्रा से उत्साहित कांग्रेस के आला नेताओं को इस बारे में गौर करना चाहिए कि नार्थ ईस्ट में कांग्रेस का प्रदर्शन इतना गया गुजरा रहने के क्या कारण हो सकते हैं। मेघालय, त्रिपुरा, नागालेण्ड में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद ही चुनाव हुए हैं, इसलिए इस पर विचार करने की जरूरत है कि आखिर चूक कहां हुई है!

देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि उत्तर पूर्व में चुनावों को कांग्रेस आलाकमान ने बहुत ही हल्के में लिया। नेहरू गांधी परिवार के वारिसान ने इन चुनावों में एक बार भी चुनावी राज्यों में जाना मुनासिब नहीं समझा। चुनावी नतीजों से देश भर में जो संदेश गया है वह कांग्रेस के पक्ष में तो कतई नहीं माना जा सकता है।

चुनावी नतीजों पर अगर गौर करें तो 2018 में कांग्रेस ने 60 सीटों वाली मेघालय विधानसभा में 21 सीट जीती थीं, पर इस बार 16 सीटें और कम हो गईं, इस तरह कांग्रेस ने कुल 5 सीटों पर ही विजय हासिल की है। उधर, भाजपा पिछली बार दो सीटों पर विजयी हुई थी तो इस बार फिर भाजपा को दो ही सीटें मिली हैं।

इसी तरह त्रिपुरा की 60 सीटों वाली विधान सभा में 2018 में भाजपा को 36 सीट मिलीथीं, तो कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी। हाल ही में हुए विधान सभा चुनावों में भाजपा को 36 के बजाए 32 सीट मिली हैं तो कांग्रेस को यहां 03 सीटें मिली हैं। त्रिपुरा में भाजपा को चार सीटों का नुकसान हुआ है तो कांग्रेस को तीन सीटों का फायदा हुआ है।

नागालेण्ड में 2018 के विधान सभा चुनावों में भाजपा को 12 सीटें मिललीं थीं, जो 2013 के मुकाबले 11 ज्यादा थीं। वहीं कांग्रेस की 2013 में 08 सीटें थीं, जो आठों की आठ 2018 में कांग्रेस के हाथ से फिसल गईं थीं। 2023 में भाजपा को 12 सीटें मिलीं तो कांग्रेस की झोली 2018 की तरह एक बार फिर पूरी तरह रीति ही रह गई।

यह नजारा उत्तर पूर्व के राज्यों का है वह भी राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के उपरांत। कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि नार्थ ईस्ट में करारी पराजय और निराशाजनक प्रदर्शन के बाद अपनी गलतियों को ढांकने के लिए कांग्रेस के आला नेता अब यह कहते नजर आ रहे हैं कि कांग्रेस अब अपनी पूरी ताकत कर्नाटक और मध्य प्रदेश में सरकार बनाने में झोंकने वाली है।

सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के आला नेताओं को यह आश्वस्त किया गया है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की वापसी से कोई ताकत नहीं रोक सकती है और उधर, राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए आलाकमान ने अशोक गहलोत को मानो फ्री हेण्ड छोड़ दिया है। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस के आला नेताओं को जमीनी हकीकत से दो चार होना चाहिए ताकि इस साल दिसंबर में होने वाले चुनावों के नतीजे अगर कांग्रेस के लिए निराशाजनक रहते हैं तो उन्हें असहज स्थिति का सामना न करना पड़े। समय रहते ही एहतियाती कदम उठाने की जरूरत चुनावी राज्यों में महसूस होने लगी है ….!

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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