सत्यार्थ प्रकाश के अनुसार परमेश्वर के तीनों ही लिंगों में हैं नाम

-अशोक “प्रवृद्ध”-

incarnation

-जितने देवशब्द के अर्थ लिखे हों उतने ही देवीशब्द के भी हैं – 

परमात्मा के गुण -कर्म और स्वभाव अनन्त हैं, अतः उसके नाम भी अनन्त हैं | उन सब नामों में परमेश्वर का ओउम्नाम सर्वोतम है, क्योंकि यह उसका मुख्य और निज नाम है, इसके अतिरिक्त अन्य सभी नाम गौणिक है | परमात्मा का मुख्य और निज नाम तो ओउम् ही है | वेदादि शास्त्रों में भी ऐसा ही प्रतिपादन किया गया है | कठोपनिषद् में लिखा है –

 सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति तपांसि सर्वाणि च यद्वदन्ति |

यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण ब्रवीम्योमित्येतत् ||

कठोपनिषद २ | २५

 

 सब वे़द जिस प्राप्त करने योग्य प्रभु का कथन करते हैं, सभी तपस्वी जिसका उपदेश करते हैं, जिसे प्राप्त करने के लिए ब्रह्मचर्य का धारण करते हैं, उसका नाम ओउम् है |

 

यह ओम् शब्द तीन अक्षरों के मेल से बना है-अ, उ और म् | इन तीन अक्षरों से भी परमात्मा के अनेक नामों का ग्रहण होता है, जैसे

 

 अकार से -विराट, अग्नि और विश्वादि |

 

 उकार से -हिरण्यगर्भ, वायु और तैजस आदि |

 

 मकार से -ईश्वर, आदित्य और प्राज्ञ आदि |

 

 यहाँ इतना और जान लेना चाहिए कि अग्नि आदि ये नाम प्रकरणानुकूल अन्य पदार्थों के भी होते हैं, जहाँ जिसका प्रकरण हो वहाँ उसका ग्रहण करना चाहिए |

 

 ‘ओउम्के अतिरिक्त प्रभु के अनन्त नाम हैं, क्योंकि प्रभु के गुण-कर्म और स्वभाव अनन्त हैं | प्रत्येक गुण-कर्म-स्वभाव का एक-एक नाम है | जैसे- सब जगत का रचयिता होने के कारण परमात्मा ब्रह्माहै, इस जगत का निर्माण करके सबके अन्दर व्याप्त होकर वे ही ब्रह्माण्ड को धारण कर रहे हैं, अतः उनका नाम विष्णुहै | सारे संसार का संहार करने के कारण वे रूद्रहैं | सबका कल्याण करने के कारण वे शिवहैं | सबसे श्रेष्ठ होने के कारण उनका नाम वरुणहै | बड़ों से भी बड़ा होने के कारण वह बृहस्पतिहैं | देवों का देव होने के कारण वे महादेवहैं | समर्थों में समर्थ होने के कारण वह परमेश्वरहै | स्वयं आनन्दस्वरूप और सबको आनन्द देने के कारण वह चन्द्रहै सबका कल्याण कर्ता होने के कारण उसका नाम मंगलहै | बलवानों-से-बलवान होने के कारण उसका नाम वायुहै | इस प्रकार महर्षि ने इस समुल्लास में परमात्मा के सौ१ नामों की निरुक्ति की है, परन्तु इन सौ नामों के अतिरिक्त भी परमात्मा के अनेक नाम हैं | ये सौ नाम-सिन्धु में बिन्दुवत ही हैं –

१. स्वामी वेदानन्दजी ने सत्यार्थ-प्रकाश के सौ नामों की गणना इस प्रकार दी है- १.ओउम् २.ख़म् ३.ब्रह्म ४.अग्नि ५.मनु ६.प्रजापति ७.इन्द्र ८.प्राण ९.ब्रह्मा १०.विष्णु ११.रूद्र १२.शिव १३.अक्षर १४.स्वराट १५.कालाग्नि १६.दिव्य १७.सुपर्ण १८.गुरुत्मान् १९.मातरिश्वा २०.भू २१.भूमि २२.अदिति २३.विश्वधाया २४.विराट २५.विश्व २६.हिरण्यगर्भ २७.वायु २८.तैजस् २९.ईश्वर ३०.आदित्य ३१.प्राज्ञ ३२.मित्र ३३.वरुण ३४.अर्यमा ३५.बृहस्पति ३६.उरुक्रम ३७.सूर्य ३८.आत्मा,परमात्मा ३९.परमेश्वर ४०.सविता ४१.देव, देवी ४२.कुबेर ४३.पृथिवी ४४.जल ४५.आकाश ४६.अन्न ४७.अन्नाद,अत्ता ४८.वसु ४९.नारायण ५०.चन्द्र ५१.मंगल ५२.बुध ५३.शुक्र ५४.शनैश्चर ५५.राहु ५६.केतू ५७.यज्ञ ५८. होता ५९.बन्धु ६०.पिता,पितामह,प्रपितामह ६१.माता ६२.आचार्य ६३.गुरु ६४.अज ६५.सत्य ६६.ज्ञान ६७.अनन्त ६८.अनादि ६९.सच्चिदानंद ७०.नित्यशुद्धबुद्धमुक्तस्वभाव ७१.निराकार ७२.निरञ्जन ७३.गणेश ७४.गणपति ७५.विश्वेश्वर ७६.कूटस्थ ७७.शक्ति ७८.श्री ७९.लक्ष्मी ८०.सरस्वती ८१.सर्वशक्तिमान् ८२.न्यायकारी ८३.दयालु ८४.अद्वैत ८५.निर्गुण ८६.सगुण ८७.अन्तर्यामी ८८.धर्मराज ८९.यम ९०.भगवान् ९१.पुरुष ९२.विश्वम्भर ९३.काल ९४.शेष ९५.आप्त ९६.शंकर ९७.महादेव ९८.प्रिय ९९.स्वयम्भूऔर १००.कवि

 

महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम सम्मुल्लास में कहा है कि परमेश्वर के तीनों ही लिंगों में नाम हैं ! महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम सम्मुल्लास में कहा है कि –

जितने देवशब्द के अर्थ  लिखे हाँ उतने ही देवीशब्द के भी हैं l परमेश्वर के तीनों लिंगों में नाम हैं , जैसे – “ब्रह्म चितिश्वरेश्चेति” l जब ईश्वर का विशेषण होगा तब देव” , जब चिति का होगा तब देवीइससे ईश्वर का नाम देवीहै l

सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम सम्मुल्लास में ही आगे शक्ति शब्द का शब्दार्थ करते हुए लिखा है कि – “शक्लृ शक्तौइस धातु से शक्तिशब्द बनता है l “यः सर्वं जगत कर्तुं शक्नोति स शक्तिःजो सब जगत के बनाने में समर्थ है इसलिए उस परमेश्वर का नाम शक्तिहै l

 

श्री शब्द का व्याख्या करते हुए कहा गया है कि –

 

श्रिञ् सेवायाम्”  इस धातु से श्रीशब्द सिद्ध होता है l “यः श्रीयते सेव्यते सर्वेण जगता विद्वद्भिर्योगिभिश्च  स श्रीरीश्वरः’ . जिसका सेवन सब जगत , विद्वान और योगीजन करते हैं , उस परमेश्वर का नाम श्रीहै l

 

लक्ष्मी शब्द का शब्दार्थ निम्नवत किया गया है –

लक्ष दर्शानाङ्कनयोइस धातु से लक्ष्मीशब्द सिद्ध होता है l “यो लक्ष्यति पश्यत्यङ्कते चिह्नयति चराचरं जगदथवा वेदैराप्तैर्योगिभिश्च यो लक्ष्यते स लक्ष्मीः सर्वप्रियेश्वरःजो सब चराचर जगत को देखता , चिह्नित अर्थात दृश्य बनाता , जैसे शरीर के नेत्र ,नासिका और बृक्ष के पत्र , पुष्प , फल , मूल , पृथ्वी , जल के कृष्ण ,रक्त , श्वेत , मृतिका , पाषाण , चन्द्र , सुर्य्यादि चिह्न बनाता तथा सबको देखता , सब शोभाओं की शोभा और जो वेदादि शास्त्र वा धार्मिक विद्वान योगियों का लक्ष्य अर्थात देखने योग्य है इससे उस परमेश्वर का नाम लक्ष्मीहै l

 

इसी प्रकार सरस्वती शब्द का शब्दार्थ करते हुए स्वामी दयानन्द ने कहा है कि –

सृ गतौइस धातु से सरस्उससे मतुप् और ङीप प्रत्यय होने से सरस्वतीशब्द सिद्ध होता है l “सरो विविधं ज्ञानं विद्यते यस्यां चितौ स सरस्वतीजिसको विविध विज्ञान अर्थात शब्द अर्थ सम्बन्ध प्रयोग का ज्ञान यथावत होवे इससे उस परमेश्वर का नाम सरस्वतीहै l

सत्यार्थ प्रकाश के अनुसार परमेश्वर के तीनों ही लिंगों में हैं नाम

सन्दर्भ ग्रन्थ – महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती विरचित सत्यार्थ प्रकाश

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