सुधार की सिफारिशों और विवाद में उलझा क्रिकेट

justice-lodha-panel-on-bcci-reformsवैसे तो कोई भी खेल अपनी मौलिकता के लिए जाना जाता है। खेल की विधा, उसके स्वरूप और खिलाड़ियों का कौशल मैलिकता का ही परिचायक होता है.. लेकिन बदलते वक्त के साथ खेल में सुधार की गुंजाइश और अच्छे खिलाड़ियों की नई पौध को आगे लाने के लिए माकूल परिवर्तन की भी जरूरत होती है। ऐसे ही एक दौर से क्रिकेट यानी जेंटलमेंस गेम भी गुजर रहा है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कहीं सुधार की सिफारिशें अपनी आवाज बुलंद किए हुए हैं, तो कहीं खेल के संरक्षण का काम करने वाला बोर्ड सिफारिशों को लेकर अदावती राग अलापे हुए हैं। क्रिकेट की दुनिया में बने इस विहंगम दृश्य को बीसीसीआई और लोढ़ा समिति के विवाद के रूप में देखा जा रहा है।
क्रिकेट में सुधार के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित जस्टिस लोढ़ा समिति और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के बीच जो तलवारें खिंची हैं उसके मूल में इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) मुख्य कारण है। आईपीएल के जरिए बोर्ड के खाते में आने वाला पैसा ही सभी की निगाहों में गढ़ रहा है। वर्ष 2018 में आईपीएल के मीडिया अधिकार 10 वर्ष के लिए बेचे जाने हैं, जिससे बोर्ड को भारी रकम मिलना तय है। इसी को ध्यान में रखते हुए उच्चतम ऩ्यायालय ने आदेश पारित किया कि एक तय रकम से ऊपर के सभी कांट्रेक्ट-टेंडर जस्टिस लोढ़ा समिति की मंजूरी से ही जारी हो सकेंगे। बीसीसीआई किस सीमा तक के कांट्रेक्ट खुद जारी कर सकती है, ये भी लोढ़ा समिति ही तय करेगी।
जहां तक बात आईपीएल की है तो वह बोर्ड के लिए एक अकूत संपत्ति की बानगी बनकर उभरा है। खेल की इस नई विधा से उपजे पैसों की लालच ने फिक्सिंग जैसे पाप को भी जेंटलमेंस गेम के भारतीय संस्करण में पांव पसारने का मौका दिया। इतना ही नहीं, लीग प्रतियोगिताओं में खेलकर पैसा बनाने की चाह ने क्रिकेट की नई पौध को भी दिग्भ्रमित किया है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए लोढ़ा समिति कुछ सिफारिशों के बल पर खेल में सुधार की गुंजाईश लगाए हुए हैं। अपनी सिफारिशों में समिति ने बीसीसीआई पर आरटीआई लागू करने, मंत्री-अफसरों के क्रिकेट से दूर रहने, एक संघ एक वोट का अधिकार तथा सट्टेबाजी को वैधता दिए जाने जैसी दस प्रमुख बातों को रखा है।
हालांकि लोढ़ा समिति की ये सिफारिशें बीसीसीआई के लिए बाध्यकारी नहीं हैं लेकिन अगर इन पर आगे बढ़ने की कोई संभावना बनती है तो बीसीसीआई का ढर्रा बदल सकता है। इन सिफारिशों पर टिप्पणी करते हुए जस्टिस लोढ़ा का कहना था, ‘हमें यह सुनिश्चत करना था कि बीसीसीआई की स्वायत्तता बनी रहे। बीमारियों को ठीक करने की जरूरत है, लेकिन ऐसा करते हुए शरीर में मौजूद वे जीवाणु खत्म नहीं होने चाहिए जो अच्छे होते हैं।‘ समिति की सिफारिशों को पूरी तरह नकारने का काम बीसीसीआई ने भी नहीं किया है, हां सिफारिशों को पूरी तरह लागू करने को लेकर बोर्ड की अदावत जरूर है।
क्रिकेट के सुधार के लिए जस्टिस आर.एम. लोढ़ा समिति के निर्देशों को लागू करने में बागी तेवर दिखाने और राज्य संगठनों को जल्दबाजी में करीब चार सौ करोड़ रुपए बांटने को लेकर बीसीसीआई को उच्चतम न्यायालय की नाराजगी का सामना करना पड़ा। उच्चतम न्यायालय की बेंच ने जोर दिया कि बीसीसीआई की ओर से धन देने सहित सभी फैसलों में पारदर्शिता, निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता सबसे अहम पहलू हैं। बीसीसीआई के अड़यिल रवैये से नाराज लोढ़ा समिति ने बीसीसीआई के हर तरह के भुगतान पर रोक लगा दी है। समिति ने बैंकों को पत्र भेजकर निर्देश दिए हैं कि बोर्ड की 30 सितंबर को विशेष आम बैठक में लिए गए वित्तीय निर्णयों पर एक पैसे का भुगतान भी न किया जाए, क्योंकि ये निर्णय अवैध हैं। समिति ने यह भी कहा है कि सदस्य क्रिकेट संघों को भी किसी तरह का भुगतान न किया जाए। यह निर्देश उन सब बैंकों को दिया गया है जिनमें बीसीसीआई के खाते हैं।
लोढा समिति ने बोर्ड को कहा था कि विशेष आम बैठक (एसजीएम) में दैनिक कार्यों के अलावा अन्य कोई निर्णय न लिया जाए। इसके बावजूद बीसीसीआई ने कई अहम निर्णय लिए, जिनमें वित्तीय लेनदेन भी शामिल था। समिति ने कहा कि बोर्ड के इस बैठक में सदस्य क्रिकेट संघों को भुगतान करने के निर्णय अवैध हैं। लोढा समिति के सचिव गोपाल शंकरनारायणन ने स्पष्ट किया कि बीसीसीआई ने उच्चतम न्यायालय के निर्णय की अवमानना का प्रयास किया है और साथ ही समिति की पहली समयसीमा का भी उल्लंघन किया है।
दूसरी तरफ, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर का मानना है कि लोढ़ा समिति की सिफारिशों को पूरी तरह से लागू करना संभव ही नहीं है। उन्होंने कहा, ‘बीसीसीआई को सुधारों से कोई परहेज नहीं है। पिछले 18 महीने में बोर्ड ने क्रिकेट सलाहकार समिति नियुक्त की.. जिसमें सचिन, लक्ष्मण जैसे बड़े खिलाड़ियों को चुना। हमने राहुल द्रविड़ और अनिल कुंबले जैसे कोच और फिर सीईओ और सीएफओ को भी चुना। हमने पिछले कुछ समय में बहुत काम किए हैं।‘
अनुराग ठाकुर ने उच्चतम न्यायालय के कड़े रुख को लेकर कहा कि हमने बहुत सारी सिफारिशों को लागू कर दिया है, लेकिन कुछ सिफारिशों को लागू नहीं किया जा सकता है। हमने इसके कारण भी दिए हैं। बीसीसीआई की सुधार में लिए जाने वाले फैसले के लिए प्रशंसा की जानी चाहिए। हमें उच्चतम न्यायालय का सम्मान है। मगर जस्टिस समिति के ‘एक संघ एक वोट’ और लगातार नौ साल किसी पद को संभालने के बाद तीन साल के अंतर के ‘कूलिंग ऑफ पीरियड’ को लागू करना संभव नहीं। बीसीसीआई प्रमुख ने कहा, यदि यह नियम लागू होता है तो इससे निरंतरता प्रभावित होगी। ठाकुर ने जगमोहन डालमिया का उदाहरण देते हुए कहा कि यदि ‘कूलिंग ऑफ पीरियड’ होगा तो हमें एक और डालमिया नहीं मिलेगा। यह केवल राज्य और बीसीसीआई में अनुभव से होता है और कूलिंग ऑफ की वजह से निरंतरता प्रभावित होगी।
बोर्ड और समिति के बीच चल रहे तर्कसंगत युद्ध के बीच उच्चतम न्यायालय की दखलंदाजी ने बीसीसीआई के रोआब को थोड़ा कम जरूर कर दिया है। लेकिन कुछ सिफारिशों पर बोर्ड जिस तरह से रंज कर रहा है उसे देखकर लगता नहीं कि वह कभी लागू हो सकेगा। ऐसे में अगर न्यायालय बोर्ड को दबाव में लेकर लागू करा भी देता है तो यह सारी सिफारिशें यूं ही लगातार रहेंगी इस पर भी संदेह रहेगा। खैर खींचतान के बीच बीसीसीआई ने न्यायालय को लोढ़ा समिति की सिफारिशों पर पूर्ण अमल का आश्वासन देने से इनकार कर दिया है। ऐसे में अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जो जल्द सबसे सामने आयेगा। मगर बोर्ड के इस रवैये के बाद अब न्यायालय के पास विकल्प सीमित हैं.. या तो बीसीसीआई के पदाधिकारी लोढ़ा समिति के समस्त सुझाव मंजूर कर लें, वरना उच्चतम न्यायालय के पास बोर्ड का कारोबार किसी स्वंत्रत व्यक्ति या व्यक्तियों को सौंपकर उनकी मार्फ्त लोढ़ा समिति की सिफारिशों पर अमल करवाये।

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