छलांग लगाकर कामयाब बनना सिखाती है सुपर 30

विवेक कुमार पाठक स्वतंत्र पत्रकार

ये अमीर लोग अपने लिए खूब चिकना सड़क बनाए । हमारी राह में ऐसा बड़ा बड़ा गड्डा खोद दिए। लेकिन ये ही वो सबसे बड़ी गलती कर दिए।  हमको साला छलांग लगाना सिखा दिए। जब समय आएगा सबसे बड़ा और सबसे लंबा छलांग हम ही मारेंगे।
बिहार के जुनूनी शिक्षक आनंद कुमार के जीवन पर केन्द्रित सुपर थर्टी फिल्म में जब ये डॉयलॉग ऋतिक रोशन बोलते हैं तो जीवन में संघर्षों से सफलता पाने वालों को एक पल के लिए ही सही मगर पुराना बहुत कुछ याद आ जाता होगा। मुश्किलों को हराती यह फिल्म संघर्ष को स्वीकारने की कहानी है। दूसरों के फेंके हुए पत्थर से अपने घर की दीवार बनाने की कहानी है। फिल्म बिहार के आईआईटी गुरु आनंद कुमार के जरिए देश के शिक्षकों को एक प्रेरणा देने वाली कहानी है। तीन साल इंतजार के बाद इस फिल्म के जरिए ऋतिक रोशन आंखों में बसने वाली सिने प्रतिभा लेकर पर्दे पर आ रहे हैं। डांस में महारथ रखने वाले ऋतिक ने सुपर थर्टी में अपने लुक और प्रेरक किरदार से खुद को पूरे देश के चर्चा में ला दिया है। 
ऋतिक रोशन ने इस फिल्म के लिए काफी मेहनत की है। आनंद कुमार और उनकी सुपर थर्टी  की कोचिंग बिना भोजपुरी जुबान के न तो सुनने में अच्छी लगती और न आनंद कुमार के असल संघर्ष से न्याय हो पाता। बिहार में इस जुनूनी शिक्षक हर कमजोर और गरीब परिवार के बच्चे में मुसीबत से जूझने का जज्बा पैदा किया है। शिक्षक आनंद कुमार ने उजाला पाने के लिए अंधेरे से जूझना सिखाया है। यह संघर्ष को हथियार बनाने की कहानी है जिसे ऋतिक रोशन ने पूरी ईमानदारी के साथ पर्दे पर जिया है। सुपर थर्टी को रचने ऋतिक रोशन ऐसे डूबे कि उन 30 बच्चों के साथ संवाद करते हुए उन्होंने उस असल संघर्ष को जानने समझने की करीबी कोशिश की है। 
देश की अफसरशाही में बिहार के युवाओं ने किस कदर अपनी मेहनत और लगन से पैठ बनाई है वो किसी से छिपी नहीं है। संघ लोक सेवा आयोग वाला दिल्ली का धौलपुर हाउस गवाह है कि बिहार के तमाम बच्चे निजी क्षेत्र के अभाव के कारण कैसे केवल बत्ती वाले अफसर का सपना बचपन से पाल लेते हैं। कैसे वे किताबों में खोना जानते हैं। कैसे देश की हर भर्ती परीक्षा में अव्वल और आगे रहने का उन्हें शौक चढ़ा हुआ है। सुपर थर्टी फिल्म शिक्षा के व्यवसायीकरण के दौर में सार्थक बहस का मंच लेकर आयी है। सालों से बारहवी के बाद हजारों होनहारों के लिए इंजीनियरिंग और मेडीकल टेस्ट की तैयारी के रास्ते सोने के दरवाजों से बंद कर दिए जाते हैं। अखबारों में फुल पेज के चकाचौंध विज्ञापन इकतरफा सार्वजनिक घोषणा कर देते हैं कि कामयाबी सिर्फ वे दे सकते हैं। उनके बिना आपकी मेहनत चलनी में पानी भरने जैसा है। देश में कोटा, दिल्ली आज ऐसे कोचिंग संस्थानों के मेले बन चुके हैं। इन मेलों में प्रवेश उन बच्चों के लिए अधूरा सपना है जिनके पिता की जेबों में करारे नोट नहीं होते। आनंद कुमार जैसे जूनुनी शिक्षक सुपर थर्टी के जरिए पैसे के इसी अहंकार पर अपनी मेधा से चोट करते हैं। सुपर थर्टी गरीबी में पलने वाली प्रतिभाओं की जीत है। यह उन अभावों और सजल आंखों की जीत है जो गरीब मां बाप अपने बच्चों के लिए देखते हैं। तमाम फिल्में पिछले काफी समय से समाज में सकारात्मक संदेशों के साथ बनायी जा रही हैं। इन संदेशों ने इस देश और समाज के बीच नया जज्बा भी भरा है। चक दे इंडिया क्या बनी हॉकी और उसमें लड़कियों की जीत का सिलसिला चल निकला है। सुल्तान और दंगल देखकर देश की बेटियां पहलवानी में नाम कमाने आगे आ रही हैं। आशुतोष गोवरीकर की लगान ने पहाड़ जैसे प्रतिद्धंदियों से लड़ने और जीतने का विचार दिया था। सुपर थर्टी में ऋतिक रोशन भी जुनूनी शिक्षक आनंद कुमार को पर्दे पर जीकर यहीं कर कर रहे हैं। वे मुसीबतों के गड्डों को ताकत बता रहे हैं। उन्हें छलांग लगाने की शिक्षा देने वाले असल कोच बता रहे हैं। सुपर थर्टी गड्डा देखकर छलांग लगाना देश के हर बच्चे को सिखाए यही ऋतिक और इस फिल्म की असल सफलता होगी।

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