राफेल पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला – उल्टा चोर कोतवाल को डांटे

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डॉ मनीष कुमार

कुत्ते की दुम टेढ़ी की टेढ़ी – यह एक बहुत ही प्रचलित लोकोक्ति है. बताया जाता है कि कुत्ते की दुम को बारह साल तक पाइप में रखने पर भी सीधी नहीं होती है. पाइप से निकालते ही वो टेढ़ी हो जाती है. इस लोकोक्ति का इस्तेमाल उस व्यक्ति के लिए किया जाता है जो लाख कोशिशों के बावजूद सुधरने का नाम नहीं लेता. ऐसे व्यक्ति को ‘कुत्ते की दुम’ कहा जाता है. राफेल विवाद के मामले में राहुल गांधी और मोदी से घृणा करने वाले लॉबी की हालत कुत्ते की दुम की तरह हो गई है. ये हर बार बिना सबूत.. बिना तथ्य.. बिना किसी वजह के मोदी पर आरोप तो लगाते हैं लेकिन कुछ साबित नहीं कर पाते हैं. कोर्ट से लताड़ पड़ती है तो फिर कोई दूसरा मुद्दा उठा लेते हैं. राहुल गांधी को तो केजरीवाल की बीमारी लग गई है – बिना सबूत के आरोप लगाना फिर माफी मांगना. केजरीवाल तो एक शहर का नेता है लेकिन कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी का अध्यक्ष जब सड़कछाप राजनीति करने लग जाए तो इसके नतीजे काफी खतरनाक हो सकते हैं.राफेल पर राहुल गांधी ने सबसे पहले फ्रांस के राष्ट्रपति के नाम पर संसद में झूठ बोला. फिर, विमान की कीमत पर लोगो को भम्रित किया. अनिल अंबानी का नाम लेकर देश को गुमराह किया. राहुल गांधी की अकलमंदी की पराकाष्ठा ये है कि इन्हें सही से ये भी पता नहीं है कि घोटाला कितने का है फिर भी आरोप लगाने में ये सबसे आगे रहे. पता नहीं ये क्या पीते हैं.. किस नशे में रहते हैं या फिर जबान लड़खड़ा जाती है. अपने भाषणों में ये कभी एक लाख तीस हजार करोड़… तो कभी एक लाख करोड़ .. तो कभी साठ हजार करोड़.. तो कभी तीस हजार करोड़ का स्कैम बताते हैं तो कभी अनिल अंबानी को फायदा पहचाने की बात करते हैं. मतलब ये कि इन्हें पता नहीं रहता है कि ये क्या बोल रहे हैं बस जनता को गुमराह करने के लिए ऊलजलूल बयान देते रहते हैं. घटिया स्तर की राजनीति करते हैं.हैरानी की बात ये है कि दुनिया की शायद सबसे भ्रष्ट पार्टी के अध्यक्ष ने देश के कई लोगों को झांसा देने में सफल भी रहे. जिसका फायदा राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को हुआ. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसला से राहुल गांधी के सारे दावे फुस्स हो गए है. सारे आरोप झूठे साबित हो चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा राफ़ेल सौदे में कोई गड़बड़ी नहीं है. न ही इसे साबित करने के लिए कोई तथ्य मिले. मतलब साफ है कि ये राफेल सौदा को घोटाला बताना मोदी विरोधी लॉबी की महज कल्पना है. राहुल गांधी, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी जैसे लोगों में शर्म नाम की कोई चीज बची है तो उन्हें फौरन देश की जनता से माफी मांगनी चाहिए.दूसरी अहम बात जो कोर्ट के फैसले से सामने आई वो ये कि ये सौदा अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाने के लिए नहीं किया गया है. सरकार ने इस सौदे के लिए सही प्रक्रिया अपनाया है. इस पर संदेह नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने ये भी कहा कि ऑफ़सेट पार्टनर सरकार ने नहीं, बल्कि दसॉल्ट ने चुना है. इतना ही नहीं, कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को भी लताड़ा. कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में किसी इंटरव्यू के आधार पर फैसला नहीं हो सकता. सीधे शब्दों में इसका यही मतलब है कि राफेल डील में न तो विमान मंहगे दाम पर खऱीदे गए. न ही अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाया गया और न ही किसी प्रक्रिया का उलंघ्घन किया गया. यानि, मोदी सरकार पर राफेल को लेकर जितने भी आरोप लगे उस पर कोर्ट ने गहन पड़ताल के बाद खारिज कर दिया.लेकिन, भष्टाचार के मामले में बेल पर बाहर घूम रहे राहुल गांधी ने बेशर्मी की सारी हदें पार कर दी है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति ) की जांच की मांग कर टिके हैं. राहुल गांधी को ये बताना चाहिए कि क्या जेपीसी में शामिल सांसद क्या सत्यवादी हरिश्चंद होंगे जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले ज्यादा विश्वसनीय फैसला की क्षमता रखते हैं. उन्हें ये भी बताना चाहिए कि कांग्रेस पार्टी के नुमाइंदे ने कोर्ट में अर्जी डाल कर आखरी मौके पर मैदान छोड़ कर क्यों भाग गया? अपनी अर्जी क्यों वापस ले ली? अगर राहुल गांधी के पास राफेल डील को लेकर कोई सबूत है तो उसे जनता के सामने क्यों नहीं रख रहे हैं? कांग्रेसी एजेंट्स बने याचिकाकर्ता ने तो सारी राफेल डील को स्कैम साबित करने के लिए सारी ताकत झोंक दी फिर कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा कि मोदी सरकार के खिलाफ एक भी सबूत नहीं मिला है? दरअसल, इन्हें राफेल के मामले पर राजनीति करना है. लोकसभा चुनाव तक इस मुद्दे को जिंदा रखना है. ठीक वैसे ही जैसे 2003 में सोनिया गांधी ने ताबूत घोटाले का झांसा देकर .. झूठे आरोप लगा कर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को घेरा था.लेकिन सुप्रीम कोर्ट की वजह से राफेल पर राहुल के झूठ का पर्दाफाश हो चुका है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से साबित हो गया है की बार-बार झूठ बोलने से कोई बात सच नहीं हो जाती है. लेकिन कुत्ते की दुम तो टेढ़ी की टेढी ही रहेगी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश के माफी मांगने के बजाए राहुल गांधी ने फिर से जेपीसी की बात उठा दी. कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस पार्टी और मोदी विरोधी लॉबी ये दलील दे रहे हैं कि जब कोई घोटाला नहीं हुआ है तो फिर सरकार जेपीसी से कोई भाग रही है. जांच हो जाने देना चाहिए. लेकिन सवाल ये है कि जांच किस बात की? कोई दस्तावेज, कोई संदेह, कोई सबूत तो हो जिसके आधार पर जांच हो सके. यहां तो कुछ है ही नहीं फिर किस बात की जेपीसी? अब तो कोर्ट ने भी ये मामला खारिज कर दिया है.अगर बिना सबूत बिना संदेह और बिना दस्तावेजों को हर बात पर जांच बिठाई जाने लगे तो कल कोई ये भी कह सकता है कि राहुल गांधी ने देश की सुरक्षा-व्यवस्था को कमजोर करने के लिए दुश्मन देशों से सपारी ली है.. पाकिस्तान और चीन से पैसे लेकर राफेल डील के निरस्त करने सौदा कर चुके हैं? तो इसकी भी जांच होनी चाहिए. कोई ये भी कह सकता है कि प्रशांत भूषण अमेरिका या रूस से पैसे खा कर फ्रांस के साथ हुई डील को रद्द करने की मुहिम चला रहे हैं. इसकी भी जांच हो. इतना ही नहीं, आरोप तो ये भी लग सकते हैं कि मोदी विरोधी लॉबी राफेल से जुड़ी खुफिया जानकारी दुश्मन देशों को सौपना चाहते हैं इसलिए विमान की कीमत की डिटेल हासिल करने के लिए कोर्ट में अर्जी डाला है. तो क्या हर बात पर सीबीआई या ज्यूडिशियल या जेपीसी बैठाई जाएगी? ये बौने नेता और तथाकथित एक्टिविस्ट्स इन विवादों के जरिए देश को हानि पहुचाने वाला तमाशा क्यों कर रहे हैं.हकीकत ये है कि जस्टिस लोया के मामले में मोदी विरोधी लॉबी को सुप्रीम कोर्ट से लात पड़ी. अर्बन नक्सल के मामले में हार का सामना करने पड़ा. ये लोग याकूब मेनन को बचाने में नाकाम रहे. एनजीओ के मामले कोर्ट से राहत नहीं मिली. और अब राफेल के मामले में पासा उल्टा पड़ गया है. दरअसल, ये लोग घृणा की हद तक मोदी का विरोध करते करते देश का विरोध करने लगे हैं. इन लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्वसनीयता औऱ नियत पर सवाल खड़े करने की कोशिश की. उन पर भ्रष्ट होने का आरोप लगाया. इतना ही नहीं, फ्रस्टेशन का आलम ये है कि राहुल गांधी और लुटियन लॉबी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर व्यक्तिगत आरोप लगाना शुरु कर दिया है.इस विवाद राजनीतिक पहलु ये है कि राहुल गांधी 2019 में प्रधानमंत्री बनने के लिए मैदान में उतरने वाले हैं. वो और सोनिया गांधी दोनों ही नेशनल हेराल्ड मामले में अरोपी बनाए गए हैं. जनामत पर चल रहे हैं. कांग्रेस पार्टी की स्ट्रैटजी ये है कि मोदी पर भी भ्रष्टाचार को कोई आरोप लगाना जरूरी है ताकि चुनाव के दौरान करप्शन के मुद्दे पर हमला को रोका जा सके ताकि 2014 वाली स्थिति न बन सके.

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  1. यदि हमारी स्मरण शक्ति स्वस्थ न भी हो, राजस्थान, मध्य प्रदेश, और छत्तीसगढ़ विधान सभा निर्वाचनों के परिणाम बताते हैं कि नंगी नहाए क्या, निचोड़े क्या की स्थिति में राजनीति से अनभिज्ञ, खाते पीते और हगते अधिकांश भारतीय केवल आकाश में हवाई-युद्ध देखते (मोदी-विरोधी अफवाहें सुनते और प्रलोभन में फंसते) अपने पैरों कुल्हाड़ी मार कोई पीड़ा अथवा दुःख का अनुभव तक नहीं करते हैं! उन्हें कौन समझाए कि लोकतंत्र उनके कंधों पर है और उन्हें क्योंकर राष्ट्र-हित राजनीतिक दल को ही अपना समर्थन देना चाहिए| हम भले ही लिखते रहें, वे पढ़ ही नहीं पाते!

    कुत्ते की दुम सचमुच आज भी टेढ़ी ही है, मेरा अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसके अंतर्गत बिना लोगों के प्रत्यक्ष समर्थन के अंग्रेजों ने राजे-रजवाड़ों के माध्यम से भारतीय उप महाद्वीप के एक बड़े भूभाग पर अधिपत्य जमा रखा था| आज उसी के समानांतर स्थिति यह है कि १८८५ में जन्मी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (जिसे मैं केवल अंग्रेजों का कार्यवाहक प्रतिनिधि मानता रहा हूँ) और उनके अल्पसंख्यक राजनीतिक समर्थकों व तथाकथित बुद्धिजीवियों की सांठ-गाँठ के बीच स्वयं सामान्य भारतीयों द्वारा देश को क्षति पहुंचाते देखता हूँ| और, विडंबना यह है कि दोनों परिस्थितियों में आटा तेल जुटाते सामान्य व्यक्ति को उसके अच्छा बुरा किये की भनक तक नहीं हुई है!

    केंद्र में राष्ट्रीय शासन की स्थापना के पश्चात युगपुरुष मोदी द्वारा अधिकारी-तंत्र को देश हित कार्य करने के आवाहन में एक आशा की किरण जागी है और मैं आशा करता हूँ कि इक्कीसवीं सदी के भारतीय युवा अधिकारी किसी भी राजनीतिक वर्ग को अनावश्यक व देश-विरोधी कार्यवाही करने से रोकेंगे| भारत के स्वतंत्र विकास व देशवासियों की सामाजिक व आर्थिक प्रगति को सर्वोपरि राष्ट्रीय उद्देश्य मानते हुए वे देश की सेवा में लगे रहेंगे|

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