कविता आज बूंदों से कर लें दो बातें… July 21, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- आज नहीं करेंगे, रोज़ की बाते… काम वाली अब तलक, क्यों नहीं आई! आज खाने में क्या बनाऊं? या बाज़ार से सब्ज़ी ले लाऊं? आज बूंदों से, करले दो बातें, कुछ उनकी सुनें, कुछ अपनी कह डालें। तुम बादलों से गिरती हो… चोट नहीं लगती? तुम्हारे आने की, प्रतीक्षा में, हम आंखें बिछाते […] Read more » आज बूंदों से कर लें दो बातें कविता हिन्दी कविता
कविता दरिंदगी July 21, 2014 by रवि श्रीवास्तव | Leave a Comment -रवि श्रीवास्तव- समाज में फैल गई गंदगी, हर तरफ दिख रही दरिंदगी, नारी के शोषण में तो, देश रहा है अब तक झेंप, कड़ी सज़ा मिले उन सबको, जो करते हैं महिलाओं का रेप। नहीं नज़र आती है उनको, उस नारी में बहन बेटी, अपनी इज्ज़त को को इज्ज़त समझे, दूसरों की करते हैं बेइज्ज़ती। […] Read more » कविता दरिंदगी हिन्दी कविता
कविता महकता मेरा गुलिस्तां सदा रहता July 15, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on महकता मेरा गुलिस्तां सदा रहता -गोपाल बघेल ‘मधु’- हम रहे आनन्द की आशा बने (मधुगीति सं. २२९२) हम रहे आनन्द की आशा बने, हम रहे ब्रह्मांड की भाषा बने; अण्डजों की आत्म की सुषमा बने, पिण्डजों की गति की ख़ुशबू बने । समय में चलना कभी चाहे हमीं, पूर्व के कुछ दृश्य लख चाहे कभी; भविष्यत की झांकियां चाहे कभी, […] Read more » कविता महकता मेरा गुलिस्तां सदा रहता हिन्दी कविता
कविता भीड़ में क्या मांगूं ख़ुदा से July 14, 2014 / July 14, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on भीड़ में क्या मांगूं ख़ुदा से -क़ैस जौनपुरी- रमज़ान का महीना है भीड़ में क्या मांगूं ख़ुदा से दुनियाभर के मुसलमान एक साथ रोज़ा रखते हैं सुना है रोज़े में हर दुआ क़ुबूल भी होती है अल्लाह मियां के पास काम बहुत बढ़ गया होगा आख़िर इतने लोगों की दुआएं जो सुननी हैं और फिर सिर्फ़ मुसलमान ही क्यूं उन्हें तो […] Read more » कविता भीड़ में क्या मांगूं ख़ुदा से हिन्दी कविता
कविता गरम हलुवा July 2, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment -प्रभुदयाल श्रीवास्तव- लगा रहे अविरल परिकम्मा, हलुवा मुझे खिला दे अम्मा| राम शरण बोले ज्वर उन पर, पता नहीं क्यों चढ़ा निकम्मा| बोले रात एक सौ दो था, सुबह सुबह तक सौ आ पाया| इससे नीचे नहीं गया है, क्योंकि हलुवा नहीं खिलाया| हलुवा ज्वर नाशक होता है, कहते हैं सब जेठे स्याने| समय काल […] Read more » कविता गरम हलुवा
कविता हर हाथ तिरंगा हो July 1, 2014 by श्यामल सुमन | Leave a Comment -श्यामल सुमन- ना कोई नंगा हो, ना तो भिखमंगा हो। चाहत कि रिश्ता आपसी घर में चंगा हो।। धरती पर आई, लेकर खुशियाली। सूखी मिट्टी में, भर दी हरियाली। चाहत कि पहले की तरह निर्मल सी गंगा हो। ना कोई नंगा हो— ये जात-धरम की बात, सम्बन्धों पे आघात। भाई से भाई क्यों, नित करता […] Read more » कविता देश कविता हर हाथ तिरंगा हो हिन्दी कविता
कविता मैं, शायर नहीं July 1, 2014 by रवि कुमार छवि | Leave a Comment -रवि कुमार छवि- मैं, शायर नहीं, क्योंकि शायर तो लोगों के साथ रहकर भी, तन्हा रहता है, मैं, उसकी क़लम की स्याही की एक बूंद हूं, जिसके निशां के धब्बे, जिंदगी के पन्नों पर है, ख़ूब सिखाया तेरे धोखे ने, फिर भी क़लम ख़ामोश रही मेरी, सड़क किनारे चलता रहा, किसी हादसे से बचकर, बेख़बर […] Read more » कविता मैं शायर नहीं हिन्दी कविता
कविता आ कर लें हम तुम प्यार July 1, 2014 by श्यामल सुमन | Leave a Comment -श्यामल सुमन- है प्रेम सृजन संसार, आ कर लें हम तुम प्यार। ना इन्सानी बाजार, आ कर लें हम तुम प्यार।। रिश्ते जीवन की मजबूरी, फिर आपस में कैसी दूरी। कुछ नोंक-झोंक और खटपट संग, मिलती रिश्तों को मंजूरी। ये रिश्ते हैं आधार, आकर लें हम तुम प्यार।। हंसकर जीने की आदत हो, चाहे जैसी […] Read more » आ कर लें हम तुम प्यार कविता स्नेह कविता
कविता ये गली June 30, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -रवि श्रीवास्तव- ये गली आख़िर कहां जाती है, हर दो कदम पर मुड़ जाती है। मुझे तलाश है उसकी, जिसे देखा था इस गली में, चल रहा हूं कब ये अरमान लिए दिल में। शायद इत्तेफ़ाक ले मुलाकात हो जाए, हर मोड़ पर सोचता हू मंजिल मिल जाए। सकरे रास्ते और ये दलदल, चीखकर कहते […] Read more » कविता ये गली हिन्दी कविता
कविता ग्यारह हाइकू June 27, 2014 / October 8, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- 1. पंछी अकेला प्रतीक्षा करे साथी आई न पाती। 2. आकाश सूना बादल आये जाये धरा न भीगे। 3 मन उदास तन की है थकान नींद न आये। 4. भीगी चुनरी घनी रे बदरिया ओ संवरिया। 5. घर का चूल्हा ठन्डा पड़ा हुआ है अतिथि आये! 6. ना मैं जानू हूं तुम क्यों […] Read more » कविता हिन्दी कविता
कविता इंसान हूं नादान हूं… June 27, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -नेहा राजोरा- इंसान हूं नादान हूं… बेसब्र हूं क्योंकि फिक्रमंद हूं… अपनी दुआओं पर है मुझको ऐतबार, तेरे रहमों करम पर भी है मुझको इख्तियार, तू सोचता होगा है, तुझ पर यकीन, फिर भी क्यों अंजान हूं… कहा न इंसान हूँ नादान हूं… बेसब्र हूं क्योंकि फिक्रमंद हूं… Read more » इंसान कविता इंसान हूं नादान हूं कविता हिन्दी कविता
कविता दंगा बना देश का नासूर June 25, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -रवि श्रीवास्तव- क्यों होता है दंगा फसाद, कौन है इसका ज़िम्मेदार ? छोटी-छोटी हर बातों पर, निकल आते हैं क्यों हथियार। आक्रोश की आंधी में, लोग बहक जाते हैं क्यों ? एक दूसरे के आखिर हम, दुश्मन बन जाते हैं क्यों ? लड़कर एक दूसरे से देखो, करते हैं हम खुद का नुकसान। दंगा भड़काने […] Read more » एकता कविता दंगा दंगा बना देश का नासूर