गजल मैंने हर रोज जमाने को रंग बदलते देखा है September 4, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment मैंने हर रोज जमाने को रंग बदलते देखा है उम्र के साथ जिन्दगी के ढंग बदलते देखा है वो जो चलते थे तो शेर के चलने का होता था गुमान उनको भी पाँव उठाने के लिये सहारे के लिये तरसते देखा है जिनकी नजरों की चमक देख सहम जाते थे लोग उन्ही नजरों को बरसात […] Read more » इंसान एक गजल -मैंने हर रोज जमाने को रंग बदलते देखा है पत्तो रोज जमाने
कविता दूसरे को समझाने में सफल,अपने आप में असफल April 30, 2018 by आर के रस्तोगी | 1 Comment on दूसरे को समझाने में सफल,अपने आप में असफल पत्थर में भगवान है,यह समझने में धर्म सफल रहा पर इंसान में इंसान हे,वह समझने में धर्म असफल रहा दूसरो को समझाने में इंसान सफल रहा अपने को समझाने मे इंसान असफल रहा इंसान ने भलाई की भला रहा , बुराई की बुरा रहा इस बात को समझ कर भी, इंसान असफल रहा बाबा […] Read more » Featured इंसान कड़ी मेहनत कलयुग पत्थर भक्तों भगवान सफल समझाने
व्यंग्य जिया जले, जाँ जले ! April 13, 2018 by देवेंद्रराज सुथार | Leave a Comment देवेंद्रराज सुथार अब तो न दिन को चैन आता है और न ही रात को नींद आती है। इस आलम में कुछ नहीं भाता है और न ही कोई ख्याल आता है। जिया जलता है। जाँ जलती है। नैनों तले धुआँ चलता है। रुक जाइए ! यदि आप मुझे प्रेमी समझने की भूल कर रहे […] Read more » Featured आमीर इंसान ऐसी गरीब गर्मी जानवर ठंड सर्दी
समाज अपने बच्चों को डॉक्टर इंजीनियर से पहले इंसान बनाएं August 28, 2017 by डॉ नीलम महेन्द्रा | Leave a Comment आज पूरी दुनिया ने बहुत तरक्की कर ली है सभी प्रकार के सुख सुविधाओं के साधन हैं लेकिन दुख के साथ यह कहना पड़ रहा है कि भले ही विज्ञान के सहारे आज सभ्यता अपनी चरम पर है लेकिन मानवता अपने सबसे बुरे समय से गुजर रही है। भौतिक सुविधाओं धन दौलत को हासिल करने […] Read more » be good human Featured इंसान
चिंतन वैष्णव जन तो तैने कहिये, जे पीर पराई जाने रे June 4, 2015 / June 4, 2015 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग- आप अपनी जिंदगी किस तरह जीना चाहते हैं? यह तय होना जरूरी है, आखिरकार जिंदगी है आपकी! यकीनन, आप जवाब देंगे-जिंदगी तो अच्छी तरह जीने का ही मन है। यह भाव, ऐसी इच्छा इस तरह का जवाब बताता है कि आपके मन में सकारात्मकता लबालब है, लेकिन यहीं एक अहम प्रश्न उठता है-जिंदगी […] Read more » Featured इंसान जिंदगी जीवन जे पीर पराई जाने रे मनुष्य वैष्णव जन तो तैने कहिये
विविधा इंसान हैं या द्वीप May 29, 2015 by डॉ. दीपक आचार्य | Leave a Comment – डॉ. दीपक आचार्य- इंसानों की आत्मकेंद्रित और स्वार्थपरक फितरत देख कर यह साफ-साफ कहा ही जा सकता है कि आजकल इंसान दो किस्मों में बँटे हुए नज़र आने लगे हैं। सामाजिकता को अपनाने वाले सामाजिक प्राणी समाज या समुदाय में कुटुम्बियों और क्षेत्रवासियों के साथ हिल-मिल कर रहने में विश्वास करते हैं। दूसरी किस्म के इंसान सामाजिक प्राणी […] Read more » Featured इंसान इंसान हैं या द्वीप मनुष्य जीवन स्वार्थी
कविता क्या नही कर सकता इंसान March 18, 2015 / March 18, 2015 by डॉ नन्द लाल भारती | Leave a Comment क्या नही कर सकता इंसान …… सच क्या नही कर सकता इंसान जिद पक्की करने की ठान ले इंसान जनहित लोकहित संग हो ईमान चाँद तक पहुँच गया इंसान सच क्या नही कर सकता इंसान ….. चट्टानों में हरित क्रांति पाषाणों को पिघला सकता इंसान असाध्य को साध्य बनता मंगल ग्रह पर टाक जहा इंसान […] Read more » determination will power इंसान क्या नही कर सकता इंसान
समाज इंसान और जानवर के बीच बढ़ता टकराव January 31, 2012 / January 31, 2012 by डॉ0 आशीष वशिष्ठ | 2 Comments on इंसान और जानवर के बीच बढ़ता टकराव डॉ. आशीष वशिष्ठ वन्य प्राणियों के गांवों एवं शहरों में प्रवेश, खेती-पालतू पशुओं को नुकसान पहुंचाने और मनुष्यों पर घातक हमला करने की घटनाएं देश भर में भी बढ़ रही हैं। वन क्षेत्रों के निकट के गांवों एवं कस्बों में ऐसी घटनाएं आए दिन हो रही हैं। वनों में रहने वाले बंदर जब-तब गांव और […] Read more » increasing conflict between human and animal increasing struggle between human and animals इंसान इंसान और जानवर के बीच बढ़ता टकराव जानवर के बीच बढ़ता टकराव