लेख समाज संसार में माँ के समान कोई छाया नहीं May 10, 2020 / May 11, 2020 by ब्रह्मानंद राजपूत | Leave a Comment (मातृ दिवस 10 मई 2020 पर विशेष आलेख) आज मातृ दिवस है, एक ऐसा दिन जिस दिन हमें संसार की समस्त माताओं का सम्मान और सलाम करना चाहिये। वैसे माँ किसी के सम्मान की मोहताज नहीं होती, माँ शब्द ही सम्मान के बराबर होता है, मातृ दिवस मनाने का उद्देश्य पुत्र के उत्थान में उनकी महान भूमिका को सलाम करना है। श्रीमद भागवत गीता में कहा गया है कि माँ की सेवा से मिला आशीर्वाद सात जन्म के पापों को नष्ट करता है। यही माँ शब्द की महिमा है। असल में कहा जाए तो माँ ही बच्चे की पहली गुरु होती है एक माँ आधे संस्कार तो बच्चे को अपने गर्भ में ही दे देती है यही माँ शब्द की शक्ति को दशार्ता है, वह माँ ही होती है पीडा सहकर अपने शिशु को जन्म देती है। और जन्म देने के बाद भी मॉं के चेहरे पर एक सन्तोषजनक मुस्कान होती है इसलिए माँ को सनातन धर्म में भगवान से भी ऊँचा दर्जा दिया गया है। ‘माँ’ शब्द एक ऐसा शब्द है जिसमे समस्त संसार का बोध होता है। जिसके उच्चारण मात्र से ही हर दुख दर्द का अंत हो जाता है। ‘माँ’ की ममता और उसके आँचल की महिमा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। रामायण में भगवान श्रीराम जी ने कहा है कि ‘‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।’’ अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। कहा जाए तो जननी और जन्मभूमि के बिना स्वर्ग भी बेकार है क्योंकि माँ कि ममता कि छाया ही स्वर्ग का एहसास कराती है। जिस घर में माँ का सम्मान नहीं किया जाता है वो घर नरक से भी बदतर होता है, भगवान श्रीराम माँ शब्द को स्वर्ग से बढकर मानते थे क्योंकि संसार में माँ नहीं होगी तो संतान भी नहीं होगी और संसार भी आगे नहीं बढ पाएगा। संसार में माँ के समान कोई छाया नहीं है। संसार में माँ के समान कोई सहारा नहीं है। संसार में माँ के समान कोई रक्षक नहीं है और माँ के समान कोई प्रिय चीज नहीं है। एक माँ अपने पुत्र के लिए छाया, सहारा, रक्षक का काम करती है। माँ के रहते कोई भी बुरी शक्ति उसके जीवित रहते उसकी संतान को छू नहीं सकती। इसलिए एक माँ ही अपनी संतान की सबसे बडी रक्षक है। दुनिया में अगर कहीं स्वर्ग मिलता है तो वो माँ के चरणों में मिलता है। जिस घर में माँ का अनादर किया जाता है, वहाँ कभी देवता वास नहीं करते। एक माँ ही होती है जो बच्चे कि हर गलती को माफ कर गले से लगा लेती है। यदि नारी नहीं होती तो सृष्टि की रचना नहीं हो सकती थी। स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक सृष्टि की रचना करने में असमर्थ बैठे थे। जब ब्रह्मा जी ने नारी की रचना की तभी से सृष्टि की शुरूआत हुई। बच्चे की रक्षा के लिए बड़ी से बड़ी चुनौती का डटकर सामना करना और बड़े होने पर भी वही मासूमियत और कोमलता भरा व्यवहार ये सब ही तो हर ‘माँ’ की मूल पहचान है। दुनिया की हर नारी में मातृत्व वास करता है। बेशक उसने संतान को जन्म दिया हो या न दिया हो। नारी इस संसार और प्रकृति की ‘जननी’ है। नारी के बिना तो संसार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस सृष्टि के हर जीव और जन्तु की मूल पहचान माँ होती है। अगर माँ न हो तो संतान भी नहीं होगी और न ही सृष्टि आगे बढ पाएगी। इस संसार में जितने भी पुत्रों की मां हैं, वह अत्यंत सरल रूप में हैं। कहने का मतलब कि मां एकदम से सहज रूप में होती हैं। वे अपनी संतानों पर शीघ्रता से प्रसन्न हो जाती हैं। वह अपनी समस्त खुशियां अपनी संतान के लिए त्याग देती हैं, क्योंकि पुत्र कुपुत्र हो सकता है, पुत्री कुपुत्री हो सकती है, लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती। एक संतान माँ को घर से निकाल सकती है लेकिन माँ हमेशा अपनी संतान को आश्रय देती है। एक माँ ही है जो अपनी संतान का पेट भरने के लिए खुद भूखी सो जाती है और उसका हर दुख दर्द खुद सहन करती है। लेकिन आज के समय में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो अपने मात-पिता को बोझ समझते हैं। और उन्हें वृध्दाआश्रम में रहने को मजबूर करते हैं। ऐसे लोगों को आज के दिन अपनी गलतियों का पश्चाताप कर अपने माता-पिताओं को जो वृध्द आश्रम में रह रहे हैं उनको घर लाने के लिए अपना कदम बढाना चाहिए। क्योंकि माता-पिता से बढकर दुनिया में कोई नहीं होता। माता के बारे में कहा जाए तो जिस घर में माँ नहीं होती या माँ का सम्मान नहीं किया जाता वहाँ दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का वास नहीं होता। हम नदियों और अपनी भाषा को माता का दर्जा दे सकते हैं तो अपनी माँ से वो हक क्यों छीन रहे हैं। और उन्हें वृध्दाआश्रम भेजने को मजबूर कर रहे है। यह सोचने वाली बात है। माता के सम्मान का एक दिन नहीं होता। माता का सम्मान हमें 365 दिन करना चाहिए। लेकिन क्यों न हम इस मातृ दिवस से अपनी गलतियों का पश्चाताप कर उनसे माफी मांगें। और माता की आज्ञा का पालन करने और अपने दुराचरण से माता को कष्ट न देने का संकल्प लेकर मातृ दिवस को सार्थक बनाएं. Read more » (मातृ दिवस 10 मई 2020 mothers day माँ मातृ दिवस
कविता माँ का स्थान कोई नहीं ले सकता — September 25, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment आर के रस्तोगी माँ का स्थान कोई नहीं ले सकता माँ का ऋण कोई चुका नहीं सकता कितने भी लाख करो दान व तीर्थ माँ के बिना उद्धार नहीं हो सकता माँ के बैगेर कोई तुम्हे जन्म नहीं दे सकता माँ के बैगेर कोई कोख में रख नहीं सकता लेती है माँ,कितनी प्रसव पीड़ा जन्म […] Read more » माँ माँ बाँप शिक्षक स्वर्ग
कविता शिक्षक दिवस September 6, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment माँ ही मेरी पहली शिक्षक है क्यों न उसे मै शीश निवाऊ पढ़ा लिखा कर बड़ा किया है क्यों न शिक्षक दिवस मनाऊ पहले जैसे गुरु नही अब रहे पहले जैसी नहीं अब दीक्षा पहले जैसे शिष्य नहीं रहे पहले जैसे नहीं अब शिक्षा गुरु शिष्य में पहले जैसा अब रहा नहीं अब नाता समय […] Read more » गुरु माँ शिक्षक दिवस शिक्षा दिवस
कविता माँ November 17, 2014 by राम सिंह यादव | 1 Comment on माँ मैं तो उसी दिन से मृत हो गया था ,,, जिस दिन तूने मुझे अपने दूध से विरक्त किया था ।।। आज तक नींद भर सो नहीं पाया ,,, जब से तेरी गोद से मेरा सिर हटा था ।।।।।।।। पुरुष सत्तात्मक समाज को ,,, तूने मुझे लव-कुश की भांति क्यों सौंप दिया …. […] Read more » माँ
प्रवक्ता न्यूज़ मनोरंजन अज माँ नू मना लो October 27, 2010 / December 20, 2011 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment संगीत — वीकोन म्यूजिक मूल्य — ७५ रूपए वीकोन म्यूजिक ने ”अज माँ नू मना लो” शीर्षक से देवी माँ की भेटों का एक एलबम रिलीज़ किया. जिसमें माँ की भेटों को गाया है गायिका रिचा शर्मा ने, संगीत दिया है चरणजीत आहूजा ने व लिखा है राम कुमार, अमरजीत चीमा, सत्त कोहली वाला, मंगल […] Read more » Ma माँ
महिला-जगत क्या औरत को माँ बनने के लिए प्रोत्साहन की ज़रूरत है? October 21, 2010 / December 20, 2011 by सुधा सिंह | 5 Comments on क्या औरत को माँ बनने के लिए प्रोत्साहन की ज़रूरत है? -सुधा सिंह यूरोपीय समुदाय स्त्रियों के लिए मातृत्व के अवकाश को बढ़ाने पर विचार कर रहा है। यूरोप में अभी चौदह हफ्ते का मातृत्व अवकाश स्त्रियों को मिला हुआ है। इसे बढ़ाकर इक्कीस हफ्ते करने पर यूरोपीय संसद विचार कर रही है। क्या इसे स्त्री आंदोलनों की सफलता माना जाए? या फिर स्त्री आंदोलनों के […] Read more » Ma माँ
कविता कविता: माँ May 19, 2010 / December 23, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 8 Comments on कविता: माँ -ललित गिरी प्यारी जीवन दायिनी माँ!, जब मैनें इस जीवन में किया प्रवेश पाया तेरे ऑंचल का प्यारा-सा परिवेश मेरे मृदुल कंठ से निकला पहला स्वर माँ! पूस की कॅंपी-कॅपी रात में, तूने मुझे बचाया। भीगे कम्बल में स्वयं सोकर, सूखे में मुझे सुलाया॥ तब भी नहीं निकली तेरी कंठ से, एक भी आह। क्योंकि […] Read more » Maa माँ