धर्म-अध्यात्म कहो कौन्तेय-४० (महाभारत पर आधारित उपन्यास-अंश) October 15, 2011 / December 5, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment (कर्ण की दिग्विजय) विपिन किशोर सिन्हा दुर्योधन चला गया। रथों के पार्श्व से उड़ती हुई धूल अब भी दिखाई दे रही थी। हम चारो भ्राताओं ने युधिष्ठिर का आज्ञापालन अवश्य किया लेकिन हम प्रसन्न नहीं थे। जहां बड़े भ्राता पूर्णतः शान्त और संतुष्ट दीख रहे थे, वही हम सबके मुखमण्डल पर आश्चर्य और प्रश्नवाचक चिह्न […] Read more » Kaho Kauntey कहो कौन्तेय-४०
धर्म-अध्यात्म कहो कौन्तेय-३९ (महाभारत पर आधारित उपन्यास-अंश) October 12, 2011 / December 5, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment (दुर्योधन, कर्णादि की गंधर्वों के हाथ पराजय) विपिन किशोर सिन्हा द्वैतवन के विशाल और कई योजन तक फैले हुए मनोरम सरोवर के एक किनारे हमारी पर्णकुटी थी। उसी में हम निवास करते थे। महर्षि धौम्य के परामर्श पर हमने एक पवित्र यज्ञ – राजर्षि, संपन्न करने का निर्णय लिया। सरोवर के तट पर यज्ञवेदी बनाई […] Read more » Kaho Kauntey कहो कौन्तेय-३९
साहित्य कहो कौन्तेय-३८ October 3, 2011 / December 5, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment (कर्ण द्वारा ब्रह्मास्त्र की प्राप्ति एवं परशुराम का शाप) विपिन किशोर सिन्हा वनवास की अवधि में ऋषि-मुनियों ने हमें अतीत, वर्तमान और भविष्य के विषय में असीमित ज्ञान उपलब्ध कराए। हमारे ज्ञान का कोष निरन्तर समृद्ध होता गया। वनवास की यह सबसे बड़ी उपलब्धि रही। वन में निवास करते हुए कई वर्ष बीत गए। इन […] Read more » Kaho Kauntey कहो-कौन्तेय-३८
साहित्य कहो कौन्तेय-३७ October 2, 2011 / December 5, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment विपिन किशोर सिन्हा (मार्कण्डेय जी द्वारा कलियुग-वर्णन) समय भी कैसा पखेरू है! अपने श्याम-धवल पंखों को फैलाए निरन्तर उड़ता ही चला जाता है। कभी थकता भी तो नहीं। उसकी दिनचर्या में विश्राम का कोई स्थान नहीं। हमारे बारह वर्षों के वनवास का उत्तरार्ध आरंभ हो चुका था। हस्तिनापुर से वनवास के लिए प्रस्थान करते समय […] Read more » Kaho Kauntey कहो कौन्तेय
धर्म-अध्यात्म कहो कौन्तेय-३४ (महाभारत पर आधारित उपन्यास अंश) October 1, 2011 / December 6, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment (अर्जुन को दिव्यास्त्रों की प्राप्ति) विपिन किशोर सिन्हा हिमालय और गंधमादन पर्वत को लांघते हुए अति शीघ्र मैं इन्द्रकील पर्वत पर पहुंचा। मुझे देवराज इन्द्र का साक्षात्कार हुआ। उनके परामर्श पर मैंने तपस्या आरंभ की – देवाधिदेव महादेव को प्रसन्न करने हेतु। मैंने घोर तपस्या की। अन्ततः भगवान शंकर प्रसन्न हुए। उन्होंने आशीर्वाद के रूप […] Read more » Kaho Kauntey कहो कौन्तेय
धर्म-अध्यात्म कहो कौन्तेय-३३ (महाभारत पर आधारित उपन्यास-अंश) September 28, 2011 / December 6, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment (वन में पाण्डवों की श्रीकृष्ण से भेंट) विपिन किशोर सिन्हा तीन दिन की पदयात्रा के पश्चात हमलोग काम्यकवन पहुंचे। वन की हरीतिमा, मृदु जल के सरोवर, पक्षियों के संगीत और दूर तक विस्तृत शान्त वातावरण ने हम सभी के व्यथित मन को कुछ शान्ति प्रदान की। लेकिन मन पूरी तरह शान्त कहां हो पा रहा […] Read more » Kaho Kauntey कहो कौन्तेय-३३
धर्म-अध्यात्म कहो कौन्तेय-३२ (महाभारत पर आधारित उपन्यास-अंश) September 27, 2011 / December 6, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment (द्वितीय द्यूत-क्रीड़ा और पाण्डवों का वन गमन) विपिन किशोर सिन्हा द्रौपदी के चीरहरण के समय हुए चमत्कार से धृतराष्ट्र चकित थे – भयभीत भी थे। दुर्योधन और दुशासन के वध के लिए भीम की प्रतिज्ञा और कर्ण-वध के मेरे संकल्प ने उनके भय में और वृद्धि कर दी थी। अपने सातवें पुत्र विकर्ण और अपने […] Read more » Kaho Kauntey कहो कौतेन्य द्वितीय द्यूत-क्रीड़ा और पाण्डवों का वन गमन
धर्म-अध्यात्म कहो कौन्तेय-३१ (महाभारत पर आधारित उपन्यास-अंश) September 25, 2011 / December 6, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment (पाण्डवों की दासता से मुक्ति) विपिन किशोर सिन्हा अब धृतराष्ट्र ने भी मुंह खोला – “पुत्रवधू कृष्णा! तुम मेरी पुत्रवधुओं में सबसे श्रेष्ठ एवं धर्मपारायण हो। तुम्हारा सतीत्व और तुम्हारी भक्ति तुम्हें सम्मानित करते हैं। तुमने अपनी महिमा प्रकट कर दी है। तुम्हारा पातिव्रत्य असंदिग्ध है। तुम्हारी निष्ठा पर मैं अत्यन्त प्रसन्न हूं। तुम मुक्त […] Read more » Kaho Kauntey कहो कौतेन्य पाण्डवों की दासता से मुक्ति
धर्म-अध्यात्म कहो कौन्तेय-३० (महाभारत पर आधारित उपन्यास-अंश) September 25, 2011 / December 6, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment (हस्तिनापुर की द्यूत सभा) विपिन किशोर सिन्हा क्रोध अपनी सीमा पार कर क्षोभ का रूप धर लेता है। मैं क्या था उस क्षण, ठीक जान नहीं पाया। अनुगत भ्राता, वीरत्वहीन पुरुष, हतभाग्य नायक, द्रौपदी का प्राणप्रिय, इन्द्र की सन्तान, श्रीकृष्ण का परम प्रिय सखा या क्रीत दास – ज्ञात नहीं। लेकिन था तो बहुत कुछ […] Read more » Kaho Kauntey कहो कौतेन्य हस्तिनापुर की द्यूत-सभा
धर्म-अध्यात्म कहो कौन्तेय-२९ (महाभारत पर आधारित उपन्यास-अंश) September 17, 2011 / December 6, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment (हस्तिनापुर की द्यूत-सभा) विपिन किशोर सिन्हा भीम शत्रुओं के जाल में फंसते दीख रहे थे। हम पांचो भ्राताओं की चट्टानी एकता में एक छोटी सी दरार ही तो देखना चाहते थे कौरव। चार उंगलियां कभी मुष्टिका का निर्माण नहीं कर सकतीं। मुष्टिका के बिना शत्रु पर प्रहार असंभव होता है। सिर्फ उंगली उठाने से शत्रु […] Read more » Kaho Kauntey कहो कौन्तेय हस्तिनापुर की द्यूत-सभा
धर्म-अध्यात्म कहो कौन्तेय-२८ (महाभारत पर आधारित उपन्यास-अंश) September 17, 2011 / December 6, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment (हस्तिनापुर की द्यूत-सभा) विपिन किशोर सिन्हा “भीम, लौट आओ, मुझे लज्जित न करो। तुम्हें मेरी शपथ, लौट आओ।” युधिष्ठिर ने तेज स्वरों में बार-बार भीम को लौट आने का आदेश दिया। भैया भीम कठपुतली की भांति युधिष्ठिर के पांव के अंगूठे पर दृष्टिपात करते हुए अपने स्थान पर लौट आए। हम चारो भ्राताओं की जीवन-डोर […] Read more » Kaho Kauntey कहो कौन्तेय हस्तिनापुर की द्यूत-सभा
साहित्य कहो कौन्तेय-२७ September 16, 2011 / December 6, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment विपिन किशोर सिन्हा (हस्तिनापुर की द्यूत-सभा) स्मरण है मुझे महाभारत युद्ध का प्रथम दिवस – दोनों सेनाओं के मध्य में खड़ा हुआ जब मैं मोहग्रस्त हुआ था तो श्रीकृष्ण ने मुझे ’नपुंसक’ कहकर संबोधित किया था। उनके इस सम्बोधन का प्रतिकार मुझे करना चाहिए था – आर्यावर्त के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर को उसी का सारथि नपुंसक […] Read more » Kaho Kauntey कहो कौन्तेय