कविता जीवन July 5, 2021 / July 5, 2021 by प्रभात पाण्डेय | Leave a Comment रोने से क्या हासिल होगाजीवन ढलती शाम नहीं हैदर्द उसी तन को डसता हैमन जिसका निष्काम नहीं है ।।यह मेरा है ,वह तेरा हैयह इसका है ,वह उसका हैतोड़ फोड़ ,बाँटा -बाँटी का ,गलत इरादा किसका हैकर ले अपनी पहचान सहीतू मानव है ,यह जान सहीदानवता को मुंह न लगामानवता का कर मान सहीतुम उठो […] Read more » life जीवन
कविता जीवन April 19, 2020 / April 19, 2020 by आलोक कौशिक | Leave a Comment मिलता है विषाद इसमेंइसमें ही मिलता हर्ष हैकहते हैं इसको जीवनइसका ही नाम संघर्ष है दोनों रंगों में यह दिखताकभी श्याम कभी श्वेत मेंकुछ मिलता कुछ खो जातारस जीवन का है द्वैत में लक्ष्य होते हैं पूर्ण कईथोड़े शेष भी रह जाते हैंस्वप्न कई सच हो जातेकुछ नेत्रों से बह जाते हैं चाहे बिछे हों […] Read more » life poem on life जीवन
लेख जीवन के सही उद्देश्यों की तलाश करें August 19, 2019 / August 19, 2019 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग- जीवन का सार है प्रसन्नता और प्रगति। हममें से हर कोई प्रसन्न रहना एवं प्रगति करना चाहता है। हम जब आसपास देखते हैं तो अधिकांश व्यक्ति हमें इसी दौड़ में शामिल दिखाई देते हैं, लेकिन न वे खुश है और न अपनी प्रगति से संतुष्ट है। क्योंकि उनके जीवन के सही उद्देश्यों की […] Read more » Find the right objectives life objectives in life
कविता वो जिन्दगी ही क्या,जो छाँव छाँव चली August 1, 2019 / August 1, 2019 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment आर के रस्तोगी हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली |कुछ सुनेहरी यादे,मेरे संग पाँव पाँव चली || सफर धूप का किया,तो ये तजुर्बा हुआ |वो जिन्दगी ही क्या,जो छाँव छाँव चली || पता है सबको,जो पांड्वो का हश्र जुए में हुआ |द्रोपदी की इज्जत,भरे दरबार में दाँव दाँव चली || रोक न सकी महँगाई,जो […] Read more » life poem shadow
चिंतन जब जीने की उम्मीद न हो तो क्या करें? July 4, 2019 / July 4, 2019 by ललित गर्ग | Leave a Comment – ललित गर्ग –जीने की इच्छा जब साथ छोड़ने लग जाए तो क्या किया जाना चाहिए है? जिसके जीने की इच्छा खत्म हो रही हो वह क्या करे और उसके आसपास के लोग क्या करें? आज इच्छा मृत्यु को वैध बनाने का मुद्दा न केवल हमारे देश में बल्कि दुनिया में प्रमुखता से छाया हुआ […] Read more » Death life want
धर्म-अध्यात्म “वैदिक जीवन ही श्रेष्ठ एवं सर्वोत्तम है” July 1, 2019 / July 1, 2019 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment -मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। एक परमात्मा ने ही समस्त संसार के मनुष्यों एवं इतर प्राणियों को बनाया है। लोगों ने समय-समय पर अपनी बुद्धि के अनुसार अज्ञान दूर करने तथा मनुष्य समाज को सुखी करने के लिये मत, पन्थ व संस्थाओं की स्थापना की। यह सर्वमान्य तथ्य है कि मनुष्य अल्पज्ञ होता है। वेदज्ञान से […] Read more » life vedic vedic life
कविता बहती जा रही है ये जिन्दगी June 14, 2019 / June 14, 2019 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment बहती जा रही है ये जिन्दगी, बस किनारा ढूंढते रह जाओगे |जिन्दगी एक ऐसी गहरी दरिया है,जिसे पार नहीं कर पाओगे || जिन्दगी जिन्दा दिली का नाम है,मुर्दे उसे कैसे जी पायेंगे ?वो तो पहले ही मर चुके है,जिन्दगी का कैसे लुत्फ़ उठायेगे || जिन्दगी जीने का एक हूनर है,इसको सभी जी नहीं पाते है […] Read more » life poem on life poetry
विविधा जीवन के अलौकिक संकेत प्रतीक व बिम्ब April 10, 2017 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment पूरी तरह से खिले हुए फूल को प्रस्फुटित फूल कहा जाता है। देखने में बहुत प्यारा तथा मन को आनन्दित करता हैं परन्तु उसका दर्द दूसरा कोई नहीं समझता है। किसी को उसकी वेदना का आभास भी शायद ना होता हो। माली पुजारी नारी या युवा ? यहां तक कि उसे माध्यम बनाकर पे्रम का इजहार करने वाले अपने लक्ष्य को साध लेते हैं पर वे प्रस्फुटित फूल कीवेदना को शायद ही समझ पाते हों या समझना चाहते हों। Read more » Featured life Old young जीवन जीवन में मुस्कुराहट जीवन में मुस्कुराहट के फूल खिलाते रहिए ढलती दोपहर में यौवन प्रौढ़ता मुस्कुराहट के फूल
धर्म-अध्यात्म होशपूर्ण जीवन ही ध्यान है January 21, 2014 / January 21, 2014 by डा. अरविन्द कुमार सिंह | 2 Comments on होशपूर्ण जीवन ही ध्यान है -डॉ. अरविन्द कुमार सिंह- क्या आपने कभी ख्याल किया है कि आप कहते हैं – हम दिन में जागते हैं और रात में सोते हैं। क्या वास्तव में ऐसा ही होता है ? आपने कभी ख्याल किया, आप घर से ऑफिस के लिये निकलते हैं, ऑफिस पहुंच भी जाते हैं पर मन तो सारे रास्ते […] Read more » life होशपूर्ण जीवन ही ध्यान है
कहानी कहानी/ अपनी-अपनी जिंदगी June 28, 2011 / December 9, 2011 by आर. सिंह | Leave a Comment आर. सिंह अमर थोड़ी देर पहले ऑफिस से लौटा था और चाय पीकर निकल पड़ा था यों ही सड़क नापने. चलते-चलते वह सोच भी रहा था कि क्या अजीब मूडी इंसान है वह भी. यह भी पता नहीं क्या करना है? कहाँ जाना है? पर सड़क नापे जा रहे हैं. सीधी सादी जिंदगी थी अमर […] Read more » life जिंदगी
गजल जिंदगी पाँव में घुँघरू बंधा देती है June 7, 2011 / December 11, 2011 by सत्येन्द्र गुप्ता | Leave a Comment जिंदगी पाँव में घुँघरू बंधा देती है जब चाहे जैसे चाहे नचा देती है। सुबह और होती है शाम कुछ और गम कभी ख़ुशी के नगमें गवा देती है। कहती नहीं कुछ सुनती नहीं कुछ कभी कोई भी सजा दिला देती है। चादर ओढ़ लेती है आशनाई की हंसता हुआ चेहरा बुझा देती है। चलते […] Read more » life घुँघरू जिंदगी
विविधा सवाल : “अभी मृत्यु और जीवन की कामना से कम्पित है यह शरीर!” December 13, 2010 / December 18, 2011 by डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' | 5 Comments on सवाल : “अभी मृत्यु और जीवन की कामना से कम्पित है यह शरीर!” डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ जब कोई कहता है कि वह 25 वर्ष का हो गया तो इसका सही अर्थ होता है-उसने अपने जीवन को 25 वर्ष जी लिया है या वह 25 वर्ष मर चुका है। क्योंकि जीवन के साथ ही साथ मृत्यु का भी प्रारम्भ है। मृत्यु से कम्पन या भय उसी दशा में […] Read more » life जीवन मृत्यु