कविता कविता – हम कैसे बता दें January 6, 2013 by मोतीलाल | Leave a Comment मोतीलाल हम यह भी नहीं बता सकते कितने कंकड़-पत्थर हर अफरा-तफरी में महाद्वीप में तब्दील हो जाते हैं । कब से मंच के पीछे खड़े एक अदृश्य हाथ समय के धागे को पकड़कर हर उस रेत को पाटता रहा है नदी के दोनों छोरों में लगता है हमने इस विषय को विस्मृत होते संस्कार […] Read more » poem by motilal कविता - हम कैसे बता दें
कविता कविता – उम्र का हिसाब December 8, 2012 / December 8, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment कितने बदल चुके हैं सिकुड़े हुए अंतरिक्ष में मौन तिलक लगाकर मेहराब से टूटता कोई पत्थर कि युगों पुराना अदृश्य हाथ पसीने से सरोबार होकर इसी पत्थर में मेहराब की सर्जना की थी । पहली बार मुझे लगा अंतरिक्ष में दिशाहीन आवेश चेहरे पर आंखें गड़ाये टूकुर-टूकुर देख रहा है उन गोद में बसे […] Read more » poem by motilal कविता - उम्र का हिसाब
कविता कविता – उसे चुनना है November 24, 2012 / November 24, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment मैं अंतरिक्ष में भटक रहा हूँ पिंजरे में कैद मात्र शून्य की तरह लचीली रेखा भी मेरे साथ घुम रही है मैं आश्वस्त हूँ सभी बंद रास्तों के बावजूद महाशून्य मेरी आंखों में नहीं उतरा है । मेरे समझ से मैं उस काल में अस्त हो रहा हूँ जहाँ दिशाएं निर्वाण की तरह लटकने […] Read more » poem by motilal कविता - उसे चुनना है
कविता कविता – छलनी October 2, 2012 / October 2, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment मोतीलाल बहुत देख चुका शहरों का शोरगुल जीवन के प्रतिरोध । जब द्रष्य की ऊंचाई पर शहर के नक्शे गर्मी की मायूसी सा हमारे चेहरे पर डोलते फिरते हैं और परछाईं वाला जंगल कुछ रुहों को उसी ऊंचाई की चोटी से फेंक चुका होता है भुक-भुकी आकाश के परे और हम छलनी में तब्दील […] Read more » poem by motilal
कविता कविता – पीली रोशनी September 11, 2012 / September 11, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment मोतीलाल अच्छा हुआ कि इस पीली रोशनी में चांद नहा उठा लहरें तट को छोड़ चुकी और बालों की तरह करुणा की जमीन लहरा उठी । सौदों के उस लड़ाई में उठा हुआ अंगुठा बार-बार मिमियता रहा कागज के आगे पूरी दुनिया बवंडर के जाल में अपनी पहचान खोली थी और हमारे आंगन का […] Read more » poem by motilal कविता - पीली रोशनी
कविता कविता – संकट September 4, 2012 / September 4, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment मोतीलाल आसान तो बिल्कुल नहीं शब्दों का धुँआ बनना अकेला मन का किला आँखों को नम कर जाता है टूट चुकी होती है जब सुबह हमारे सपने एक-एककर नहीं लाते बाल उम्र में बिताया गया वक्त जो फुदक रही होती है डालियों पर उसे लिखना कितना कठिन हो जाता है बार-बार निरर्थक कोशिश […] Read more » poem by motilal कविता - संकट
कविता कविता – संभावनाएं August 22, 2012 / August 22, 2012 by मोतीलाल | 1 Comment on कविता – संभावनाएं मोतीलाल मेरे लिए उभरती है घाटी नीले फूलोँ वाली मेरे लिए सुलभ होता है छूना लाल पत्ते वाले पेड़ोँ को और पी जाती हूँ कड़वे धुँएं को मेरे लिए कुछ होना जंगली फूल सा है गंध के बहकावे मेँ रौँदा जाता है संवेदनाओँ के जहर को और नहीँ ठहरती है ओस मेरी आँखोँ मेँ […] Read more » poem by motilal कविता – संभावनाएं
कविता कविता – महानगर के मायने August 12, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment मोतीलाल यहाँ मुझे कोई नहीँ पहचानता आकाश की तरह शून्य यहाँ मुझे कोई नहीँ जानता हवाओँ की तरह मुक्त यहाँ मुझे कोई नहीँ दिखता फूलोँ की तरह सौम्य यहाँ मुझे कोई नहीँ सुनता नदी की तरह उनमुक्त यहाँ मुझे कोई नहीँ महसूसता आँच की तरह तपन कोई भी यहाँ नहीँ […] Read more » poem by motilal कविता - महानगर के मायने
कविता कविता – लड़ाई July 31, 2012 / July 30, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment मोतीलाल अधिक समय तक हम जिँदा रहने की जिजीविषा मेँ नहीँ देख पाते मुट्ठियोँ मेँ उगे पसीने को और यहीँ से फुटना शुरू होतेँ हैँ तमाम टकराहटोँ के काँटेँ यहीँ से शुरू होता है धरती और आकाश का अंतर चाहे आकाश कितना भी फैला हो और हो उसमेँ ताकत धरती को ढंक लेने की […] Read more » poem by motilal कविता - लड़ाई
कविता कविता: कविता या खबर-मोतीलाल July 21, 2012 / July 21, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment यह कविता कैसे हो सकती है उस खौफजदा पल का जब दस मजबूत हाथ दो कच्ची जांघोँ को चीर डाल रहे थे और छूटते खून की गंध तुम्हारे ड्राइंगरुम मेँ नहीँ पहुंच पा रही थी हाँ अखबार के पन्ने दूसरे दिन उस गंदे रक्त से जरुर सना दिखा आखरी पन्ने के आखरी काँलम मेँ […] Read more » poem by motilal कविता: कविता या खबर-मोतीलाल
कविता कविता:सपने का सच-मोतीलाल July 10, 2012 / July 10, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment एक दिन मैँने देखा एक सपना सपने मेँ औरत को मैँने छुआ एक ठंडी सी लहर काटती हुई निकल गयी आँखेँ कुछ कहना चाहती थी और देखना चाहती थी सपने मेँ अच्छी औरत कि कहीँ लिजलिजा सा काँटा आँखोँ मेँ धस गयी और छिन ली सारी रोशनी वह तिलमिलायी थी और हाथोँ की […] Read more » poem by motilal कविता:सपने का सच कविता:सपने का सच-मोतीलाल
कविता कविता:मैँ कहाँ जाऊँ-मोतीलाल June 17, 2012 / June 17, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment मैँ कहाँ जाऊँ किसी स्वर्ग जैसा अब नर्क कहाँ बचा है यहाँ जहाँ कशिश से भरी आँखोँ मेँ गालिब की गजले महकती हो जहाँ मेरी जर्जर कमीज की जेब से कोई सादा कागज निकल आता हो कहाँ जाऊँ मैँ ताकि किसी अदृश्य उद्धेश्य के लिए संसद की दीवारेँ न ढहे और दायित्व के पंखोँ […] Read more » poem by motilal कविता:मैँ कहाँ जाऊँ कविता:मैँ कहाँ जाऊँ-मोतीलाल