व्यंग्य व्यंग्य/पार्टी दफ्तर के बाहर February 20, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/पार्टी दफ्तर के बाहर पार्टी दफ्तर के बाहर बैठ नीम की कड़वी छांह। एक नेता भीगे नयनों से देख रहा है दल प्रवाह। सामने पार्टी दफ्तर रहा पर अपना वहां कोई नहीं। सबकुछ गया, गया सब कुछ पर आंख फिर भी रोई नहीं। कह रही थी मन की व्यथा छूटी हुई कहानी सी। पार्टी दफ्तर की दीवारें सुनती बन […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ एक सफल कार्यक्रम February 12, 2010 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment पहली बार हिमालय के हिमपात के मौसम और अपनी गुफा को अकेला छोड़ गौतम और भारद्वाज मुनि दिल्ली सरकार के राज्य अतिथि होकर राजभवन में हफ्ते भर से जमे हुए थे। पर ठंड थी कि उन्हें हिमालय से भी अधिक लग रही थी। सुबह के दस बजे होंगे कि भारद्वाज मुनि अपने वीवीआईपी कमरे से […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ रिश्वतऽमृतमश्नुते February 5, 2010 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/ रिश्वतऽमृतमश्नुते हर क्लास के फादर को ईमानदारी के साथ यह मानकर चलना चाहिए कि जैसे कैसे उनका बच्चा डॉक्टर, इंजीनियर भले ही बन जाए लेकिन उसके बाद भी उसके हाथ में रिश्वत लेने का हुनर नहीं तो वह आगे परिवार की तो छोड़िए अपने खर्चे भी पूरे नहीं कर सकता। और नतीजा…. सपने बंदे को खुदकुशी […] Read more » vyangya रिश्वत व्यंग
व्यंग्य व्यंग्य/चल वसंत घर आपणे…!!! January 28, 2010 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/चल वसंत घर आपणे…!!! वसंत पेड़ों की फुनगियों, पौधों की टहनियों पर से उतरा और लोगों के बीच आ धमका। सोचा, चलो लोगों से थोड़ी गप शप हो जाए। वे चार छोकरे मुहल्ले के मुहाने पर बैठे हुए थे। वसंत के आने पर भी उदास से। वे चारों डिग्री धारक थे। दो इंजीनियरिंग में तो दो ने एमबीए की […] Read more » vyangya व्यंग
व्यंग्य व्यंग्य/ मोहे इंडिया न दीजौ January 19, 2010 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment वैसे तो यमलोक में अनगिनत ऐसी आत्माएं हत्या, आत्महत्या का शिकार हो प्रेतयोनि में बरसों से अपने फैसले के इंतजार में बैठी हैं कि कब जैसे उनका फैसला यमराज करें और वे प्रतयोनि से मुक्त हो जिस योनि में उनका हक बनता है उस योनि में जन्म ले यमपुरी के भयावह दृश्यों से मुक्त हों। […] Read more » vyangya व्यंग
व्यंग्य व्यंग्य/हे नेता, नेता, नेतायणम्!! December 28, 2009 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment लोमश जी कहते हैं- जो सुजान नागरिक नेता के आंगन में अपनी चारपाई केनीचे के गंद की अनदेखी कर झाड़ू लगाता है वह निश्चय ही एक दिन संसद में पहुंच संपूर्ण देश के लिए वंदनीय हो जाता है। जो नेता के जलसों के लिए भीड़ इकट्ठी करता है वह आगे चलकर संसद में सबसे आगे […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ अंधेर नगरी लोकतांत्रिक राजा December 21, 2009 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/ अंधेर नगरी लोकतांत्रिक राजा सुनो! सुनो !!सुनो!!! अंधेर नगरी के लोकतांत्रिक राजा का फरमान! जो भी आज से उनके राज्य में सच बोलेगा, उसका होगा चालान। झूठ बोलने वाला हर आम और खास को बराबर पुरस्कृत किया जाएगा। अंधेर नगरी में ईमानदारी बंद। सरकार के आदेश-कानून ईमानदारों के साथ कतई भी नरमी न बरते। जो भी कानून का हवलदार […] Read more » vyangya व्यंग
व्यंग्य व्यंग्य/ एक डिर्स्टब्ड जिन्न November 28, 2009 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment रात के दस बज चुके तो मैंने चैन की सांस ली कि चलो भगवान की दया से आज कोई पड़ोसी कुछ लेने नहीं आया। भगवान का धन्यवाद कंप्लीट करने ही वाला था कि दरवाजे पर दस्तक हुई, एक बार, दो बार, तीन बार। लो भाई साहब, अपने गांव की कहावत है कि पड़ोसी को याद […] Read more » vyangya व्यंग्य
राजनीति व्यंग्य उल्टा-पुल्टा व्यंग्य / नेताजी का जनम दिन November 28, 2009 / December 25, 2011 by पंकज व्यास | Leave a Comment छुट भैयेजी मनाए जनम दिन। बांटें कंबल, मिठाई, फल-फूल बिस्किट। जनता मारे ताने, सुन मेरे भैये, जनम दिन पर याद नहीं आया होगा सगा बाप। पर, नेताजी का जनम दिन मनाएं धूमधाम। भैये जी क्या समझाए मुई जनता को मेरे यार। खुद का जनम दिन मत मनाओ, पर बड़े नेताजी का जनम दिन तो मनाना […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य: खट्टे सपने के सच – अशोक गौतम November 2, 2009 / December 26, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment रात व्यवस्था की दीवारों से खुद को लहूलुहान करने के बाद थका हारा छाले पड़े पावों के तलवों में नकली सरसों के तेल की मालिश कर नकली दूध का गिलास पी फाइबर के गद्दों पर जैसे कैसे आधा सोया था कि अचानक जा पहुंचा गांव। देखा गांव वाले लावारिस छोड़ी अपनी गायों को ढूंढ ढूंढ […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य: अवतारी अब बाजारन के – अशोक गौतम October 18, 2009 / December 26, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment हे मेरे देश के दीवाली के दिन राम के चौदह बरस का बनवास काट कर आने की खुशी में रात भर जुआ खेलने वाले जुआरियो! हे मेरे देश के दीवाली के नाम पर मातहतों का गला काट कर गिफ्टों के नाम पर शूगर के पेशेंट होने के बाद भी अपना घर मिठाइयों से भरने के […] Read more » vyangya व्यंग्य
समाज व्यंग्य…..राष्ट्रगान का रिहर्सल? वाह, क्या आईडिया है…. October 9, 2009 / December 26, 2011 by गिरीश पंकज | 1 Comment on व्यंग्य…..राष्ट्रगान का रिहर्सल? वाह, क्या आईडिया है…. छत्तीसगढ़ की एक सच्ची मगर शर्मनाक घटना पर आधारित व्यंग्य. बड़े देशभक्त है ये लोग। इन्हे प्रणाम करना चाहिए। चलिए, पहले प्रणाम कर ही ले। प्रणाम…… प्रणाम…… प्रणाम…… ऐसे ही खाली-पीली किसी को प्रणाम नहीं किया जाता लेकिन मै जिन महान आत्माओं को प्रणाम कर रहा हूँ, दरअसल वे देशभक्त आत्माएं है। अब वैसे भी […] Read more » vyangya व्यंग्य