डा. राधेश्याम द्विवेदी
मानव जीवन कितना अमोल, ब्रह्माण्ड हेतु कुछ कर जाओ।
प्रत्यक्ष स्वर्ग व नरक यहां , दिल से जीयो ना बिसराओ ।
भारत रहा जगत का गुरु, सोने का चिड़िया कहा जाता।
झूठी शान-शौकत में पड़कर , कोई ना इसे समझ पाता।।
प्रत्यक्ष खड़े विरासतों को , पीढ़ी दर पीढ़ी सौंपते चलो ।
जीवन सत्कर्म प्रत्यक्ष करो, आगे को मत छोड़ चलो ।
भौतिक शरीर सब नष्वर है, पंचभूतों में मिल जाता है।
निष्काम कर्म से मुक्ति मिले, मोक्षधाम न मुक्ति दिलाता है ।।
हम विकास के पक्ष में हैं, चिम्पाजी से मानव बन आये।
कितना छोड़े कितना जोड़े, नित नित रुप बदलते आये।
कर्मों से परम्परा बनती है, परम्परा से कर्म नहीं बनते।
कल से आज आज से कल,कल से कल कभी नहीं होते।।
इतनी निष्ठां व एकता यदि, सत्कर्मों को मिल जाये ।
देश का भविष्ट बदल जाये,तुममें जो एकता रह जाये।
परम्परा भावना मत जोड़ो, राजनीति से इसे दूर रखो।
ताज विश्व की दौलत है, मत आगरे तक सीमित रखो।।
आपकी है यह आगे भी रहेगी, कोई न इसे ले जाएगा।
ठीक रहेगी यह यहां तो, जन समुन्द्र पार से आएगा।
इसलिए जिन्दाकी करो चिन्ता, इतिहास भूल न पाएगा।
ताज मोक्ष दोनों हैं जरूरी, सब तालमेल हो जाएगा।।