अकसर हमारे देश में ग्रामीण, अशिक्षित और गरीब को टोना-टोटकों का उपाय करने पर अंधविश्वासी ठहरा दिया जाता है। अंधविश्वास के पाखंड से उबारने की दृश्टि से चलाए जाने वाले जागरूकता अभियान भी इन्हीं लोगों पर निशाना साधते हैं। वैसे भी आर्थिक रुप से कमजोर और निरक्षर व्यक्ति के टोनों-टोटकों को तो इस लिहाज से नजरअंदाज किया जा सकता है कि लाचार और गरीब के कष्ट से छुटकारे का आसान उपाय दैवीय शक्ति से प्रार्थना ही है। लेकिन यह हैरानी में डालने वाली विडंबना है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त है,वह भी चुनाव जीतने के लिए तांत्रिक की शरण में चले गए। यह जानकारी सोशल मीडिया पर नीतीश और तांत्रिक के वीडियो वायरल होने से सार्वजनिक हुई है। जबकि नीतीश ऐसे मजबूत आत्मबल के नेता रहे हैं कि उनकी अंधविश्वास विरोधी छवि सामने आती रही है। कुछ साल पहले जब पूर्ण सूर्यग्रहण पड़ा था तब उन्होंने तारेगना में बिस्किट खाकर लोगों को अंधविश्वास से दूर रहने का तार्किक संदेश दिया था। लेकिन अब वे तांत्रिक अघोर वीरनाथ की शरण में देखने में आ रहे है।
तंत्र-मंत्र में विश्वास के पीछे मनोवैज्ञानिक व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी मानते है। व्यक्ति का जब अपने आप से भरोसा उठ जाता है तो वह चमत्कार के फेर में बढ़ जाता है। देश के नेताओं में यह भ्रम उस समय सबसे ज्यादा देखने में आता है,जब चुनावी मौसम चल रहा हो। इसलिए नामांकन,शपथ और पदभार ग्रहण के समय नेता शुभ-मुहुर्त,तंत्र-मंत्र,अनुष्ठान और ज्योतिष के चक्र में कहीं ज्यादा पड़े दिखाई देते है। महाराष्ट्र विधानसभा में अंधविश्वास के खिलाफ कानून लाने वाले पूर्व श्रममंत्री हसन मुशरिफ ने तो अंधविश्वास की मिसाल सार्वजनिक रुप से पेश करने में भी कोई संकोच नहीं किया था। उनकी पार्टी के एक नाराज कार्यकर्ता ने उनके चेहरे पर काली स्याही फेंक दी थी। इस कालिख से पोत दिए जाने के कारण मंत्री महोदय कथित रुप से ‘अशुद्ध’ हो गए थे। इस अशुद्धि से शुद्धि का उपाय उनके प्रशंसकों और जानियों ने दूध से स्नान करना सुझाया। फिर क्या था, नागरिकों को दिशा देने वाले हजरत हसन मुशारिफ ने खबरिया चैनलों के कैमरों के सामने सैंकड़ों लीटर दूध से नहाकर देह का शुद्धिकरण किया था। जबकि अंधविश्वास के विरोध में मजबूत कानून लाने के लिए, लंबी लड़ाई लड़ने वाले ‘अंध-श्रद्धा निर्मूलन समिति’ के संस्थापक नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के बाद अगस्त 2013 में अंधविश्वास विरोधी कानून बनवाने में हसन की मुख्य भूमिका रही थी। किंतु जब सरकार में शामिल मंत्री ही टोने-टोटकों के भ्रम से न उबरने पाएं तो कानून अपना असर कैसे दिखाएगा ? इस परिप्रेक्ष्य में कायदे से तो कानूनी प्रक्रिया को अमल में लाते हुए सरकार को जरुरत थी कि हसन मुशरिफ को तत्काल मंत्री मंडल से बाहर किया जाता और मौजूदा कानून के तहत उन पर एफआईआर दर्ज होती ? लेकिन सरकार ने मंत्री के खिलाफ किसी भी तरह से दंडित किए जाने की कोई पहल नहीं की ? जाहिर है, सख्त कानून आ जाने के बावजूद अंधविश्वास की समाज में पसरी जड़ताएं टूट नहीं रही हैं ? क्योंकि देश के राजनेता और सरकारें ही अवैज्ञानिक सोच और रुढ़िवादिता से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। हालांकि महाराष्ट्र में लाया गया अंध-श्रद्धा निर्मूलन कानून इतना मजबूत है कि इसके तहत किसी भी सक्षम व्यक्ति के विरूद्ध कार्यवाही की जा सकती है। क्योंकि इस कानून के दायरे में टोनों-टोटकों के जानिया-तांत्रिक,जादुई चमत्कार, दैवीय शक्ति की सवारी, व्यक्ति में आत्मा का अवतरण और संतों के इश्वरीय अवतार का दावा करने वाले सभी पाखंडी आते हैं। साथ ही मानसिक रोगियों पर भूत-प्रेत चढ़ने और प्रेतात्मा से मुक्ति दिलाने के जानिया भी इसके दायरे में हैं।
राजनीतिकों के अंधविश्वास से जुड़े नीतीश और हसन के उदाहरण कोई अपवाद नहीं हैं। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री रहे वीएस येदियुरप्पा अकसर इस भय से भयभीत रहते थे कि उनके विरोधी काला जादू करके उन्हें सत्ता से बेदखल न कर दें ? लेकिन वे सत्ता से बेदखल हुए खनिज घोटालों में भागीदारी के चलते ? इस दौरान उन्होंने दुष्टात्माओं से मुक्ति के लिए कई मर्तबा ऐसे कर्मकांडों को आजमाया, जो उनकी जगहंसाई के कारण बने। वास्तुदोष के भ्रम के चलते येदियुरप्पा ने विधानसभा भवन के कक्ष में तोड़फोड़ कराई। वसुंधरा राजे सिंधिया, रमन सिंह और शिवराज सिंह चौहान ने अपने मुख्यमंत्रित्व के पहले कार्यकालों में बारिश के लिए सोमयज्ञ कराए। मध्यप्रदेश के पूर्व सपा विधायक किशोर समरीते ने मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने के लिए कामाख्या देवी के मंदिर पर 101 भैसों की बलि दी थी,लेकिन मुलायम प्रधानमंत्री नहीं बन पाए थे ? संत आशाराम बापू और उनका पुत्र सत्य साईं तो अपने को साक्षात इश्वरीय अवतार मानते थे, आज वे दुर्गति के किस हाल में जी रहे हैं, किसी से छिपा नहीं है। यह चिंतनीय है कि देश को दिशा देने वाले राजनेता, वैज्ञानिक चेतना को समाज में स्थापित करने की बजाय, अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए तंत्र-मंत्र और टोनों-टोटकों का सहारा लेते हैं। जाहिर है, ऐसे भयभीत नेताओं से समाज को दिशा नहीं मिल सकती ?
हरेक देश में राजनेताओं को सांस्कुतिक चेतना और रुढ़िवादी जड़ताओं को तोड़ने वाले प्रतिनिधि के रुप में देखा जाता है। इसीलिए उनसे सांस्कृतिक परंपराओं से अंधविश्वासों को दूर करने की अपेक्षा की जाती है। जिससे मानव समुदायों में तार्किकता का विस्तार हो, फलस्वरुप वैज्ञानिक चेतना संपन्न समाज का निर्माण हो। लेकिन हमारे यहां यह विडंबना ही है कि नेता और प्रगतिशील सोच के बुद्धिजीवी माने जाने वाले लेखक-पत्रकार भी खबरिया चैनलों पर ज्योतिशीय-चमत्कार, तांत्रिक-क्रियाओं, टोनों-टोटकों और पुनर्जन्म की अलौकिक काल्पनिक गाथाएं गढ़कर समाज में अंधविश्वास फैलाने में लगे हैं। पाखंड को बढ़ावा देने वाले इन प्रसारणों पर कानूनी रोक लगाए बिना अंधविश्वास मिटना संभव नहीं है ?
jab manobal kamjor ho jata hae tab kitne bhi vaiganik hon ya rajneta, kaise bhi nastik hon ya samajsudharak san is prakar ke vishwason men uljh jate haen , Nitish bhi ab apna manobal kho chuke haen isliye koi rasta bhi nazar nahi aata