आचार्य चाणक्य ने कहा है कि यदि व्यक्ति राष्ट्रवाद से शून्य है, राष्ट्रभक्ति से हीन है, राष्ट्र के प्रति सजग नहीं है, तो यह शिक्षक की असफ लता है। व्यक्ति तो क्या देश की धरती का कण-कण राष्ट्र भक्ति की भावना से मचल उठे, रोम-रोम में राष्ट्र रम जाये, राष्ट्र भक्ति की भावना से मचल उठे, उसका चिन्तन बस जाये, यह शिक्षक की सफ लता है।
सचमुच राष्ट्र का निर्माता शिक्षक ही होता है। शिक्षक की शिक्षा ही आदर्श नागरिकों का निर्माण करती है। यदि शिक्षक अपने विद्यार्थी से मांगकर बीड़ी या सिगरेट पियेगा, या उनके साथ बैठकर अनर्गल वात्र्तालाप करेगा या सिनेमा देखेगा तो उसके इस प्रकार के आचरण से अनाचारी और संस्कारहीन नागरिकों का निर्माण होगा। इसलिए शिक्षक का तपस्वी और आचरणशील होना नितान्त आवश्यक माना गया है।
अथर्ववेद में एक मन्त्र आया है:-
भद्रमिच्छन्त: ऋषय: स्वर्विदस्तपो दीक्षामुपनिषेदुरग्रे। भद्रमिच्छन्त: ऋ षय: स्वर्विदस्तपो दीक्षामुपनिषेदुरग्रे।
ततो राष्टंऊ बलमोजश्च जातं तदस्मैं देवा उपसंनमन्तु।। ततो राष्टंऊ बलमोजश्च जातं तदस्मैं देवा उपसंनमन्तु।।
(अथर्व0 19-41-1) (अथर्व0 19-41-1)
‘‘सुख शान्ति को जानने और प्राप्त करने वाले ऋ षियों ने सर्वप्रथम सुख दु:ख आदि द्वन्द्व सहन करने की क्षमता तथा किसी लक्ष्य विशेष के लिए आत्मसमर्पण ग्रहण किया। उस तप और दीक्षा के आचरण से राष्ट्रीय भावना बल और ओज से राष्ट्रीय प्रभाव उत्पन्न हुआ। इसलिए इस राष्ट्र के सम्मुख देव भी अर्थात शक्ति सम्पन्न लोग भी झुकें, अर्थात उचित रीति से इसका सत्कार करें।’’
मन्त्र हमें बता रहा है कि राष्ट्र की भावना को बलवती करने के लिए हमारे ऋ षियों ने अपने जीवन को तप और दीक्षा में ढ़ाला और तब राष्ट्र में बल और ओज की उत्पति हुई। यहाँ तप का अर्थ एकनिष्ठ होकर कत्र्तव्य का पालन करने से है, तथा दीक्षा का अर्थ आत्मनिग्रहपूर्वक धर्म सिखाने से है। दोनों बातें ही बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं। शिक्षक के जीवन में तप और दीक्षा ही होती है। उन्ही से वह अपने विद्यार्थियों का निर्माण करता है, और उस शिक्षक के इन्हीं गुणों से प्रभावित होकर विद्यार्थी राष्ट्रभक्त बनते हैं। उनमें बल और ओज का संचार होता है।
राष्ट्रवाद की भावना नागरिकों के मध्य पायी जाने वाली विभिन्नताओं को समाप्त करती है और विभिन्नताओं को समेटकर एक चादर के नीचे ले आती है। इस भावना से एकनिष्ठ होकर एक व्यक्ति की आज्ञा को मानकर उसके अनुसार चलने की भावना बनती है। जैसे विद्यालय में बच्चे एक प्राचार्य के आदेश को मानना अपना सर्वोच्च कत्र्तव्य मानते हैं, घर में माता या पिता की आज्ञा का पालन करना अपना पुनीत कत्र्तव्य मानते हैं। घर पिता के आदेश से चलता हैं उसी प्रकार राष्ट्र भी एक (राष्ट्रपति) राजा के आदेश से चलता है।
आचार्य यदि अयोग्य है, तो विद्यालय का चलना कठिन हो जाता है, माता-पिता यदि अयोग्य हैं झगड़ा करने वाले हैं, पिता मद्यपान करता है या व्यसनी है तो घर का चलना कठिन हो जाता है। ऐसी स्थिति में विद्यालय में शिक्षा का परिवेश विकृत होता है, घर में कलह बढता है, और राष्ट्र में अराजकता फैलती है। अयोग्यों की आज्ञाओं का पालन तब योग्य करने से बचते हैं। इसलिए ऐसी स्थितियों में नेतृत्व के लिए संघर्ष की परिस्थितियां भी बना करती हैं राजा यदि शोषक हो जाये अपने कत्र्तव्यपालन को भूल जाये, अपनी प्रजा के प्रति एकनिष्ठ न होकर अपने कत्र्तव्यपालन के धर्म को भुला दे तो उसके विरूद्ध विद्रोह फ ूट पड़ता है।
भारत में अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह क्यों हुआ? क्योंकि अंग्रेजों ने भारत के प्रति एकनिष्ठ होकर इस देश की भलाई के लिए कभी कोई कार्य नहीं किया। अंग्रेजों के विषय में कुछ लोगों ने कहा है कि उन्होंने भारत में रेल, डाक-तार आदि का प्रसार किया, तो यह उनका भारत पर उपकार था। पर हम कहते हैं कि उन्होंने भारत में रेल डाक-तार आदि की भी व्यवस्था अपने शासन के चिरस्थायित्व के दृष्टिकोण से ही की थी। उनसे अंग्रेजों को भारतीयों की अपेक्षा कहीं अधिक लाभ हुआ था।
अंग्रेजों ने भारतीयों को भारतीयों की भाषा में भारतीय संस्कृति, धर्म और इतिहास पढ़ाकर भारत पर भारतीयों का हक बताने की गलती कभी नहीं की। भारतीयों का हक बताने की गलती कभी नहीं की। नहीं की। जब उनका सच भारत के ‘‘रामप्रसाद बिस्मिलों’’ को समझ में आया तो अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए हजारों लाखों ‘‘बिस्मिल’’ घर छोडक़र बाहर आ गये। राष्ट्र के शासकों में तप और दीक्षा का भाव समाप्त हो गया तो राष्ट्रवासियों ने तप और दीक्षा को अंगीकार कर लिया। वो एकनिष्ठ होकर भारत की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करने लगे। सारा राष्ट्र देशभक्ति की भावना से मचल उठा। देश का कण-कण वन्देमातरम् की ज्योति से ज्योतित हो उठा। ऐसा केवल इसलिए हुआ कि तप और दीक्षा राष्ट्र के आवश्यक तत्व हैं।
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