श्रीनर्मदा कल्पवल्ली के रचयिता तपोमूति स्वामी ओंकारानन्द जी गिरी

           पुण्यसलिला मॉ नर्मदा जी के पावनतट होशंगाबाद में नर्मदा दर्शन कर पुण्य अर्जित करने आने वाले महात्माओं एवं संतों श्री श्रृंखला में तपोमूर्ति ब्रम्हलीन पूज्य स्वामी ओंकारानन्दजी गिरी का नाम नर्मदापरिक्रमा कर रहे सभी भक्तों को स्मरण रहता है जो इनके द्वारा रचित वृहद नर्मदा महात्म्य एवं श्रीनर्मदा कल्पवल्ली  के नियमित पाठ से अपने दिन की शुरूआत और रात्रि का विश्राम करते है। आपके द्वारा श्रीनर्मदा कल्पवल्ली में पूज्यदेवों की आरति, वन्दना, देव-पूजा पद्धति,शिव आराधना, शिव महात्म्य-स्तेत्र पद्यानुवाद तथा नित्यकर्म पद्धति आदि का सविस्तार अपनी कल्याणी वाणी से मुखरित किया है वही सेठानीघाट पर निर्मित सत्संग भवन परिक्रमावासिं के ठहरने के लिये दो खण्डों में स्थापना कराने से इन्हें स्मरण किया जाता है।
              सेठ डालचन्द की पत्नी सेठानी जानकीबाई बाई द्वारा निर्मित इस सेठानीघाट एवं उसके तट पर धर्मशाला का का निर्माण कराया था जो कालान्तर में टूट-फूट के बाद खण्डहरनुमा हो गया था। इस भवन के तल पर साधु-संतों एवं परिक्रमावासियों के ठहरने की व्यवस्था थी तथा प्रथमतल पर बारातों के ठहरने की व्यवस्था थी। उस समय बारातें एक-एक सप्ताह ठहरा करती थी। उक्त भवन के जीर्ण शीर्ण हो जाने पर वह भवन बेकार पड़ा था जिसमें रूकने वाले साधु-सन्यासी और परिक्रमावासियों को  दिक्कतें होती थी किन्तु तब इसका निर्माण कराने वाले सेठ डालचन्द और उनकी धर्मपत्नी सेठ जानकीबाई के दो पुत्र नन्हेलाल सन् 1935 में तथा घासीराम 1942 में निःसंतान ही चल बसे थे तब इन सेठों की पत्नियों द्वारा पण्डित रामलाल शर्मा के बेटे भवानीशंकर शर्मा और गिरिजाशंकर शर्मा को 1955 में गोद लिये जाने के बाद पण्डित रामलाल शर्मा से स्वामी ओंकारानन्दजी गिरि द्वारा टूटे-फूटे खण्डहर पर सत्संग भवन बनाने की मॉग पर चैत्रपूर्णिमा 2058 को सत्संग भवन ज्ञानसत्र दो खण्डों में बनकर तैयार हुआ जिसमें नर्मदासत्संग भवन ज्ञान सत्रायन नाम लिखवाकर तपोमूर्ति स्वामी ओंकारानन्द गिरी संचालक पण्डित रामलाल शर्मा का नाम अंकित किया गया जो अभी भी अंकित है।

स्वामी ओंकारानन्द जी के समय सत्संग भवन में आध्यात्मिक धार्मिक प्रवचन कथा तथा स्वाध्याय पाठ वर्षो तक चलता रहा और समयसमय पर भगवत अवतारों की तथा आचार्य संतों की जयन्तियॉ यहॉ धूमधाम से मनायी जाती रही। इस नर्मदा सत्संग भवन ज्ञान सत्रायन में प्रतिदिन सुबह 8 से 9 तक भजनकीर्तन, अपरान्ह 3 से 5 बजे तक स्वाध्याय हेतु धार्मिक पुस्तकों का वाचन कर नगरवासी ज्ञान अर्जित करते थे एवं शाम को 8 से 9 बजे तक किसी न किसी संत-महात्मा के प्रवचन हुआ करते थे। जब तक श्री राधेश्याम जी दीक्षित इस भवन का प्रबन्धन देखते थे तब तक सब ठीक था लेकिन उनके जाने के बाद कुछ स्वार्थी तत्वों ने अपना घर भरने के लिये इस संस्था को नष्ट करने की कुचेष्टा की और न्यास का हिसाब न देने से वे पदों से हटाये और नये पदाधिकारी बनाये जाकर इस व्यवस्था को बनाये रखा गया।

स्वामी ओंकारानन्द जी के जन्म कहॉ,किस परिवार में कब हुआ तथा उनका महाप्रयाण कब कहॉ हुआ इसकी जानकारी तो प्राप्त नहीं हो सकी किन्तु इतना अवश्य है कि उनके द्वारा जो सत्संगभवन की भव्यरूपरेखा एवं ज्ञान सत्रायन की कल्पना की गयी थी वह भवन आज की स्थिति में साधु-सन्यासियों तथा आध्यात्मिक व धार्मिक संस्थान का रूप नही ले सका। इसमें शर्मा परिवार का दखल होने से साल में मात्र स्वामी ओंकारानन्द जी की पुण्यतिथि पर भण्डारा एवं भजनों का आयोजन ही किया जाता है तथा श्रावण मास में प्रतिवर्ष श्रीरामचरित्र मानस का पाठ का आयोजन शर्मा परिवार द्वारा आमंत्रित प्रबुद्धवर्ग एवं गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति में प्रारम्भ एवं संपन्न होता है जबकि तपोमूर्ति स्वामी ओंकारानन्दजी गिरी की देशना कि यह संस्थान आश्रम का रूप ले। आ़ श्ऱ म अर्थात आत्मा का श्रवण,मनन जहॉ होता रहे, वही आश्रम है, की पालना होती नही दिखती है।

आत्‍माराम यादव पीव

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