महिलाओं को मातृत्व सुख से वंचित करती टीबी

समाज में हमेशा टीबी को फेफड़ों का रोग माना गया। लेकिन 21वीं सदी में टीबी महज़ सांस की बीमारी नहीं बल्कि इंफर्टिलिटी का बड़ा कारण बन चुकी है। महिलाओं में बढ़ती जननांगों की टीबी उन्हें मातृत्व सुख से वंचित कर रही है। IVF सेंटर में बढ़ती भीड़ इसकी पुष्टि करती है।
ICMR के हालिया अध्ययन में कहा गया कि IVF का सहारा लेकर मां बनी 50 % महिलाएं जननांगों की टीबी से ग्रसित पाई गई हैं। ये वो महिलाएं हैं जो प्राकृतिक तरीके से गर्भधारण नहीं कर पा रही थी। ICMR की इस शोध ने यह साबित किया है कि भारत में जननांगों की टीबी संक्रमण कितनी तेजी से बढ़ रहा है। अनियोजित तरीके से जिंदगी जी रही महिलाएं कैसे इसकी चपेट में आ रही हैं।
हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो महिलाओं में जननांगों की टीबी बढ़ने का प्रमुख कारण इसकी जानकारी न होना है। विशेषज्ञ बताते हैं कि जननांग टीबी, एसिम्टोमेटिक प्रकार की टीबी है। जिसमें महिलाएं संक्रमित रहती है, मगर उसके लक्षण दिखाई नहीं देते। कई बार लक्षण दिखते भी हैं तो सामान्य रोगों की समान ही होते हैं। मसलन थकान, चक्कर आना, भूख की कमी और अनियमित माहवारी होना। इसलिए महिलाएं इसे गंभीरता से नहीं लेती।
लेकिन जब लंबे समय तक गर्भधारण नहीं होता तो इस रोग का पता चलता है।  तब तक संक्रमण बहुत बढ़ जाता है और इसे कंट्रोल करना कठिन हो जाता है। डब्लूएचओ के अनुसार भारत में जननांगों की टीबी की दर लगातार बढ़ी है। 2011 में इसकी वृद्धि दर मात्र 19% थी जो 2015 तक बढ़कर 30% हो गई थी। डॉक्टर्स को चिंता है कि इसी दर से जनाइटल टीबी बढ़ती रहेगी। अगर ऐसा ही रहा तो भारत को 2025 तक टीबी मुक्त करना असंभव हो सकता है।
जननांगों की टीबी किसी भी आयु वर्ग की महिला को हो सकती है। लेकिन 15 से 45 साल की महिलाएं इसकी चपेट में ज्यादा आती हैं। इसके साथ ही ऐसी महिलाएं जिनका इम्युनिटी लेवल कमजोर है और जो कुपोषण की शिकार हैं उन्हें भी संक्रमण तेजी से लगता है। महिलाएं जो पहले ही टीबी की मरीज हैं या उनका  साथी किसी तरह की टीबी से पीड़ित है उनमें जनाइटल टीबी का संक्रमण तेजी से फैलता है। ऐसी महिलाएं जो एचआईवी या कोविड- 19 से संक्रमित हैं उनमें भी जननांगों की टीबी होने का खतरा रहता है।
जननांगों की टीबी महिलाओं के गर्भाधान में सबसे बड़ी रुकावट है। यह गर्भाशय से लेकर अन्य अंगों को प्रभावित करती है और इंफर्टिलिटी को बढ़ाती है। महिला की फेलोपियन ट्यूब सबसे ज्यादा टीबी के रिस्क में होती है। क्षय संक्रमण के कारण फैलोपियन ट्यूब में सूजन आती है। अंडोत्सर्ग नहीं हो पाता और निषेचन बाधित होती है। ऐसे तो जननांग टीबी महिलाओं के सभी जननांगों को संक्रमित करता है लेकिन फैलोपियन ट्यूब को इसका सबसे ज्यादा खतरा रहता है।
बृहम मुंबई म्युन्सिपल कॉरपोरेशन के 2022 के आंकड़े बताते हैं कि 2022 में यहां 33, 080 महिलाएं टीबी की चपेट में आई, जबकि 32, 487 पुरुष टीबी से संक्रमित मिले हैं।
जननांगों की टीबी में, टीबी का जीवाणु गर्भाशय में पहुंचकर उसकी दीवारों की एंड्रोमीट्रियम लाइनिंग को नष्ट कर देता है। साथ ही गर्भाशय की दीवारों के स्तरों को आपस में चिपका देता है। जिससे गर्भ के आरोपण में समस्या आती है और महिला मां नहीं बन पाती। बार-बार मिसकैरेज की संभावना बढ़ जाती है। यदि टीबी ओवरीज तक पहुंच जाए तो यह गोनेडोट्रॉपिन हार्मोन की आवश्यकता को बढ़ा देती है। इससे ओव्यूलेशन में देरी होती है। आज जननांगों की टीबी के कई उपचार मेडिकल साइंस में हैं। यह पूरी तरह ठीक होने वाला रोग है। लेकिन समय पर सही इलाज न मिलने से यह रोग बढ़ता जाता है। सही समय पर पूरा इलाज मिले तो भारत की आधी आबादी को इससे सुरक्षित किया जा सकता है और इनके मातृत्व सुख प्रदान किया जा सकता है।

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