2024 के आम चुनावों का तय होने लगा एजेंडा!

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लिमटी खरे

लगभग आठ सालों से देश पर राज करने वाली भारतीय जनता पार्टी अब 2024 के आम चुनावों के लिए तैयारी करती दिखाई देने लगी है। भाजपा के द्वारा आम चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जाएगा, यह एजेंडा अब तय होता दिख रहा है। उधर, विपक्ष में बैठी कांग्रेस अभी भी आम चुनावों में किस मुद्दे को लेकर जनता के बीच जाएगी, यह बात साफ नहीं हो पाई है। दरअसल, सियासी पार्टियों के चुनावों के लिए जो भी एजेंडे होते हैं, उन पर पार्टियों के द्वारा चुनावों के लगभग दो साल पहले से ही कवायद आरंभ कर दी जाती है। कांग्रेस अभी भी भ्रष्टाचार और मंहगाई के मुद्दे पर ही अटकी दिख रही है। कांग्रेस के द्वारा दोनों ही मामले जोर शोर से नहीं उठाए जा रहे हैं, यहां तक कि कांग्रेस की जिला इकाईयों के द्वारा भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी आदि के मामलों में अपने अपने स्थानीय भाजपा प्रतिनिधियों को घेरने की कवायद आरंभ नहीं की गई है।

देश में शासन करने वाली भाजपा में दो ही नेता सर्वशक्तिमान प्रतीत होते हैं। पहले हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरे गृहमंत्री अमित शाह। दोनों ही अपने बयानों के जरिए भाजपा की आगामी रणनीति के संकेत भी देते आए हैं। हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के द्वारा साफ तौर पर कहा गया था कि राम मंदिर मामला हो या अनुच्छेद 370 अथवा जम्मू काश्मीर में शांति की स्थापना हो या फिर सीएए या फिर तीन तलाक, हर मामले में फैसले लिए जा चुके हैं। अब बारी समान नागरिक संहित अर्थात सिविल कोड की है। उत्तर प्रदेश और उत्ताखण्ड में इस तरह के बयानों की पुष्टि वहां की सरकारों के कदमताल से मिलती है। अब लगने लगा है कि अगला चुनाव कामन सिविल कोड पर ही लड़ा जा सकता है।

कामन सिविल कोड पर देश की शीर्ष अदालत में भी याचिकाएं लंबित हैं। इसके पहले राम मंदिर मामला हो या तीन तलाक, इस तरह के मामलों में केंद्र सरकार पक्षकार के बतौर नहीं थी, किन्तु समान नागरिक संहित के मामले में सरकार पक्षकार है, इसलिए इस मामले को दो सालों में अंजाम तक पहुंचाने में सरकार को बहुत ज्यादा परेशानी शायद ही महसूस हो। दरअसल, वर्तमान में सभी धर्मों के लिए अलग अलग पर्सनल ला हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ में चार शादियों को मंजूरी है तो दीगर पर्सनल लॉ में महज एक शादी ही जायज मानी गई है। मुस्लिम युवतियों में व्यस्कता की आयु का स्पष्ट निर्धारण नहीं है तो अन्य पर्सनल लॉ में युवतियों की विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई है।

साल दर साल अदालतों के द्वारा तो समान नागरिक संहिता के लिए सरकारों को दिशा निर्देश दिए जाते रहे हैं किन्तु इस पर संजीदगी से अमल नहीं किया गया। लगभग 37 साल पहले 1985 में शीर्ष अदालत के द्वारा शाहबानो प्रकरण में यह तक कह दिया था कि देश के संविधान का अनुच्छेद 44 मृत अक्षर बनकर रह गया है। इसके दस साल बाद सरला मुदगल प्रकरण में शीर्ष अदालत के द्वारा एक बार फिर कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 44 में संविधान निर्माताओं की मंशाओं को पूरा करने में कितना वक्त और लिया जाएगा सरकारों के द्वारा!

इसके बाद सन 2017 में तीन तलाक से संबंधित मामले में शीर्ष अदालत ने सरकार को निर्देशित किया था कि वह इस संबंध में उचित कानून बनाने के मार्ग प्रशस्त करे। शीर्ष अदालत के द्वारा ही 2019 में जोंस पाऊलो प्रकरण के दौरान टिप्पणी की थी कि क्या कारण है कि देश में समान नागरिक आचार संहिता बनाने की दिशा में प्रयास नहीं किए गए!

बहरहाल, बात चल रही थी 2024 के आम चुनावों में मुद्दा यानी एजेंडा तय होने की। इस मामले में भाजपा के द्वारा अपना रास्ता लगभग तय कर लिया ही प्रतीत हो रहा है। भाजपा शासित केंद्र सरकार एवं भाजपा शासित सूबाई सरकारों के द्वारा समान नागरिक आचार संहिता की जिस तरह से वकालत की जा रही है उससे लगने लगा है कि राम मंदिर मामला, अनुच्छेद 370 अथवा जम्मू काश्मीर में शांति की स्थापना, सीएए या तीन तलाक इन सब मामालों को अंजाम तक पहुंचाने के बाद अब भाजपा कामन सिविल कोड पर बिसात बिछाकर शह और मात का खेल खेल सकती है।

कांग्रेस अभी भी 2024 का एजेंडा तय करने में दिख रही पीछे

कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी पार्टियों के द्वारा हिन्दुत्व से इतर अपनी नीतियां रखने के आरोप भी लगते आए हैं, वहीं भाजपा के द्वारा जिस तरह की नीतियां अपनाई गई हैं, उसके चलते आज आम भारतीय के मन में कहीं न कहीं भाजपा के प्रति साफ्ट कार्नर दिखाई देता है। यही कारण है कि आज अड़ानी अंबानी का मामला हो या मंहगाई व भ्रष्टाचार पर विपक्ष का वार। इस तरह के कमोबेश हर मामले तूल पकड़ने के बजाए धड़ाम से गिरते नजर आते हैं। आज नरेंद्र मोदी की छवि उनके पहले के लगभग सभी प्रधानमंत्रियों के समकक्ष ही मानी जा सकती है। कांग्रेस को अगर 2024 में किला फतह करना है तो उसे सबसे पहले चुनाव का एजेंडा सेट कर उस पर अभी से काम करना आरंभ करना होगा साथ ही अपने नेताओं को जमीनी तौर पर सक्रिय करना होगा वरन शोभा की सुपारी बनी कांग्रेस की आईटी सेल में बदलाव करते हुए सोशल मीडिया पर स्थानीय मामलों को उकेरना जरूरी है, क्योंकि जिला स्तर के नेताओं के द्वारा जब प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री पर सीधे वार किए जाते हैं तो लोगों को लगता है कि स्थानीय सांसद या विधायक से विपक्ष सेट है और प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री जिन तक उनकी आवाज नहीं पहुंच सकती उनको गरियाकर स्थानीय स्तर के नेता सिर्फ खबरों में बने रहना चाहते हैं . . .

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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