अल्पसंख्यकवाद से तिरोहित होती संविधान की मूल भावना

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डा.अजय खेमरिया

भारतीय संविधान की मूल आत्मा पर अल्पसंख्यकवाद हावी हो रहा है,वोटों की राजनीति ने लोकनीति को इस सीमा तक अतिक्रमित कर लिया है कि सिर्फ वोटनीति ही भारत मे संसदीय राजनीति का चेहरा बनकर रह गई है वोटों की फसल में छिपी सत्ता की मलाई को कोई भी नही छोड़ना चाहता औऱ इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि संविधान बनाने वाले हमारे महान पूर्वज जिन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी वे ऊपर सिवाय रोने के कुछ नही कर पा रहे होंगे।संविधान एक जीवंत इकाई है खुद डॉ भीमराव रामजी अम्बेडकर ने सविंधान संशोधन प्रावधान जोड़े जाने के दौरान यह कहा था कि बदलते वक्त की आवश्यकताओं औऱ अभिलाषाओं को प्रतिबिंबित औऱ प्रतिध्वनित होना संविधान की प्रकृति में होना चाहिये ये कोई पत्थर की लकीर नही होगा।दुनिया के सबसे अधिक संशोधन भी हमारे ही संविधान में हुए कुछ बदलते वक्त की जरूरतों के हिसाब से लेकिन इस ज्यादातर सिर्फ सियासी फायदे के लिये।शुरुआती दौर से ही एक खतरनाक चलन अल्पसंख्यक वाद का चल निकला दुनिया के किसी देश मे संविधान के अंदर मेजोरिटी औऱ माइनॉरिटी शब्द नही है लेकिन हमारे यहां न केवल ये शब्द शामिल है बल्कि लागू होने के बाद से लगातार इसे शासन और लोकनीति में आगे बढ़ाया जाता रहा है आज देश की संसदीय राजनीति में यही अल्पसंख्यकवाद सबसे अहम सवाल बन गया है ।धर्मनिरपेक्षता इसी की एक विकृत व्याख्या है ,दुनिया मे किसी देश के नागरिक अल्पसंख्यक औऱ बहुसंख्यक नही हैं ,अमेरिका का आदमी अमरीकी है चीन का चीनी,जर्मनी का जर्मन लेकिन हम भारतीय नही है उससे पहले हिन्दू,मुस्लिम,सिख,औऱ अब अगड़े,पिछड़े,दलित,महादलित,।क्या कोई मुल्क अपने ही नागरिकों को इस तरह विभाजित करके चलता है? यह सिर्फ हमारे यहां ही संभव है।आजकल तो एक नया उभार हम देख रहे है अल्पसंख्यक होने की होड़ मची है,जिन वर्गों ने हजारों साल से इसी धरती पर सदभाव के साथ सह अस्तित्व की मिसाल पेश की वे खुद को अल्पसंख्यक घोषित कराने पर आमादा है वोट की निकृष्ट राजनीति इस बेहूदी मानसिकता को पोषित करने में जुटी है,2014 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने जैन समाज को अल्पसंख्यक घोषित कर दिया,उस महावीर को मानने वालों को जो सनातन धर्म मे विष्णु के अवतार माने गए,वे सभी जैन जो हिन्दू धर्म के अनुसार ही जीवन जीते रहे जिनके रोटी,बेटी के रिश्ते सनातनी लोगो से आज भी बरकरार है वे सभी अब अल्पसंख्यक हो गए।

सिर्फ वोटों के खातिर।जिन विवेकानंद ने पूरी दुनिया में सनातन धर्म की विजय दुंदभी बजाई उनके अनुयायी रामकृष्ण मठ भी खुद को ऐसा ही दर्जा मांगता रहता है,खालसा पंथ के लिये सनातन समाज जिसे हिन्दू भी कहते हैं  अपने लोगो को सहर्ष भेजा वह आज अलग धर्म बन गया,अभी हाल ही में सिर्फ कर्नाटक राज्य का विधानसभा चुनाव जीतने के लिये कांग्रेस ने वहाँ की लिंगायत जाति को अल्पसंख्यक घोषित कर दिया।सवाल इस अल्पसंख्यक दर्जे का क्यों है?हमारे संविधान में अनुछेद 29 औऱ 30 धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यक समुदायों को कुछ विशेष रियायतों का प्रावधान करते हैं  उन्हें कुछ उन्मुक्तियाँ देते हैं  जो विशुद्ध रूप से आर्थिक हितलाभ पर आधारित है। जिस सामाजिक न्याय की गारंटी,समता औऱ अवसर की समानता की बात संविधान में उल्लेखित है उससे मुक्ति होकर सिर्फ अपने कुछ लोगों के लिये रियायते ऒर सुविधाएं हासिल करने की स्वार्थी सोच इस अल्पसंख्यक दर्जे की चाहत में छिपी है। ,हमारे राजनीतिक दल इस समय देश को मुफ्तखोरी का अड्डा बनाने पर तुले है इसीलिये हर दल यही साबित करना चाहता है कि उसने किस समुदाय के लिये कितनी मुफ्तखोरी की व्यवस्था की है,कितना संविधान से परे जाकर,विधि के शासन औऱ अवसर की समानता को दरकिनार कर अल्पसंख्यक वाद को बढ़ावा दिया है,ताजा लिंगायत प्रकरण हो या एस सी एस टी एक्ट के लिये रिव्यू पिटीशन की मांग सब इस वाद में छिपी सत्ता को किसी कीमत पर अपने लिये मोड़ना चाहते है।

इस दौरान देश कहाँ है किसी को नही पता ऒर न इसका पता कोई करना चाहता है।यूँ संविधान धर्मनिरपेक्ष है पर इसी को आड़ बनाकर सरकारें धर्म तय कर रही है सिर्फ उस समुदाय के वोटों के खातिर।एक सबसे बड़ी रेखांकित की जाने वाली बात ये सब हिन्दू धर्म की कीमत पर हो रहा है क्योंकि बहुसंख्यक औऱ जाति मूलक समुदाय होने के कारण ये आपस मे ही बिखरा हुआ है।सिख,बौद्ध, जैन, इसी सनातन संस्कृति से निकले सत्ता निर्मित धर्म ही है,अब रामकृष्णन मिशन,औऱ लिंगायत इसके नए सदस्य होंगे।हिन्दू धर्म के विरुद्ध सत्ता का यह षड्यंत्र नया नही है ये आजादी के बाद से ही जारी है,अंग्रेजों ने 1857 में हिन्दू औऱ मुस्लिम को अलग अलग बांटा लेकिन हमारे अपने लोगों  ने हमे जाति, पन्थ,वर्गों में बांटने में कोई कसर नही छोड़ी है,दुनिया मे शायद ही कोई मुल्क होगा जहां की सरकारें अपने लोगों को बैकवर्ड घोषित करती हो लेकिन यहाँ पूरी लड़ाई ही पिछड़ा दलित,होने के लिये हो रही है यानी बिल्कुल उल्टा।उत्कर्ष सबका सपना होता है पर मेरे मुल्क में पराक्रम औऱ पुरुषार्थ की जगह आरक्षण की बैशाखी लगाने की अंधी होड़ मची है और सपना देश को एक महाशक्ति बनाने का।इस उलटवाँसी के चक्रव्यूह में हम इतना उलझते जा रहे है कि देश का सामाजिक सदभाव खत्म होने के कगार पर है,जिस सनातन संस्क्रति ने पूरी दुनिया के कल्याण का उदघोष किया,पृथ्वी के हर जीव के कल्याण की कामना की है, उसी धरती पर अगड़े,पिछड़े,दलित,महादलित ,अतिपिछड़े के रूप में नकली अस्मिताओं को खड़ा कर दिया गया,हाल ही में दलित एक्ट को लेकर जो वर्ग सँघर्ष के हालात देश मे बनें उसने सत्तानशीनो को झकजोरा या नही ?पर आम आदमी जरुर भयभीत हो उठा है।

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