टीबी से निजात पाने की चुनौती

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-अरविंद जयतिलक
आज दुनिया भर में टीबी के सबसे अधिक मरीजों की तादाद भारत में है। भारत में टीबी रोग में वृद्धि का मूल कारण जागरुकता की कमी और उचित इलाज का अभाव है। उसी का नतीजा है कि भारत में टीबी के मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। एक आंकड़े के मुताबिक वर्ष 2019 में 24.04 लाख टीबी रोगी अधिसूचति किए गए जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह आंकड़ा 26.9 लाख के आसपास है। इस लिहाज से देखें तो इसमें पिछले वर्ष की तुलना में तकरीबन 14 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई है। इसी तरह भारत टीबी रिपोर्ट 2020 में कहा गया है कि 2019 में टीबी रोग से 79144 लोगों की मौत हुई। लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो इस दरम्यान तकरीबन 4.4 लाख लोगों की मौत हुई। गौर करें तो कमोवेश हर वर्ष टीबी के लाखों मरीज मौत के मुंह में जा रहे हैं। चिंता की यह भी बात है कि भारत में टीबी के अनगिनत मामले दर्ज भी नहीं होते हैं। आंकड़े बताते हैं कि दर्ज नहीं होने वाले मामलों में विश्व में हर चैथा मामला भारत का होता है। उदाहरण के लिए वर्ष 2019 में दुनिया के दस देशों में तकरीबन 24 लाख तपेदिक के मामले दर्ज ही नहीं हुए जिनमें सर्वाधिक संख्या भारतीयों की थी। इस बीच अच्छी बात यह है कि भारत सरकार ने 2025 तक टीबी पर नियंत्रण पाने का लक्ष्य सुनिश्चित किया है। इस कार्य में विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत की भरपूर मदद कर रहा है। गौरतलब है कि टीबी माइकोबैक्टिरियम टुबरक्लोरसिस नामक जीवाणु के कारण होता है। यह प्रतिवर्ष 20 लाख से अधिक लोगों को प्रभावित करता है। भारत में हर वर्ष तीन लाख से अधिक लोगों की टीबी के कारण मौत होती है। आंकड़ों के मुताबिक टीबी के मामले में भारत विश्व में पांचवे स्थान पर है। गौरतलब है कि टीबी का फैलाव इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति द्वारा लिए जाने वाले श्वास-प्रश्वास के द्वारा होता है। चिकित्सकों की मानें तो केवल एक रोगी पूरे वर्ष के दौरान 10 से भी अधिक लोगों को संक्रमित कर सकता है। यह बीमारी प्रमुख रुप से फेफड़ों को प्रभावित करती है। अगर समय रहते उपचार न कराया जाए तो यह रक्त के द्वारा शरीर के दूसरे भागों में भी फैलकर उन्हें संक्रमित करती है। ऐसे संक्रमण को द्वितीय संक्रमण कहा जाता है। यह संक्रमण किडनी, पेल्विक, डिंब वाही नलियों या फैलोपियन टूब्स, गर्भाशय और मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है। टीबी महिलाओं के लिए तो एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। इसलिए कि इसके लक्षण तत्काल दिखायी नहीं देते हैं और लक्षण दिखायी देने तक यह प्रजनन क्षमता को पहले ही नुकसान पहुंचा चुके होते हैं। आंकड़े बताते हैं कि टीबी से पीड़ित हर दस महिलाओं में से दो गर्भधारण नहीं कर पाती हैं। जननांगों की टीबी के 40 से 80 प्रतिशत मामले महिलाओं में ही देखे जाते हैं। अधिकतर वे लोग इसकी चपेट में आते हैं जिनका इम्यून सिस्टम या रोग प्रतिरोधक तंत्र कमजोर होता है और जो संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आते हैं। जब संक्रमित व्यक्ति खांसता या छींकता है तब वैक्टिरिया वायु में फैल जाते हैं और जब हम सांस लेते हैं तो यह हमारे फेफड़ों में पहुंच जाते हैं। महिलाओं के साथ बच्चों के लिए भी टीबी एक बहुत बड़ा खतरा है। बच्चों के कुछ समूह अन्य लोगों की तुलना में टीबी के दायरे में ज्यादा होते हैं। ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि टीबी की जद में आने वाले बच्चों को तत्काल इलाज की व्यवस्था की जाए। बीसीजी का टीका बच्चों में टीबी के उपचार में काफी हद तक कारगर साबित हो रहा है। आमतौर पर टीबी के साधारण लक्षण होते हैं जिनकी आसानी से पहचान की जा सकती है। तीन सप्ताह से अधिक समय से खांसी या थूक के साथ खून आए तो सतर्क हो जाना चाहिए। टीबी की जद में आने वाले व्यक्ति को अकसर रात्रि के समय ज्वर आता है और धीरे-धीरे उसका वजन कम होता जाता है। उन्हें भूख भी नहीं लगती है और शरीर कमजोर होता जाता है। अगर ऐसा कुछ लक्षण दिखे तो तत्काल डाॅक्टर से चिकित्सकीय परामर्श लेकर उचित इलाज होनी चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि गरीबी, कुपोषण, सरकारी अस्पतालों में डाॅक्टरों और दवाओं की कमी और सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं के लिए धन की कमी इस जानलेवा बीमारी पर नियंत्रण लगाने की राह में सबसे बड़ी बाधा है। भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की दशा कितनी दयनीय है यह किसी से छिपा नहीं है। गत वर्ष पहले मेडिकल जर्नल लैंसेट ने खुलासा किया था कि बेहतर इलाज और अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं देने के मामले में भारत की स्थिति बेहद दयनीय है। 137 देशों पर किए गए सर्वे के मुताबिक देश में खराब इलाज के कारण हर वर्ष तकरीबन 24 लाख लोगों को मौत के मुंह में जाना पड़ रहा है। तब रिपोर्ट में कहा गया था कि वर्ष 2016 में मरने वालों का आंकड़ा 16 लाख था जो कि 2018 में बढ़कर 24 लाख हो गया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि तपेदिक (टीबी), दिल की बीमारी, पक्षाघात, टेस्टीकूलर कैंसर, कोलोन कैंसर और किडनी की बीमारी से जुड़े लोगों की सर्वाधिक मौते होती हैं। रिपोर्ट में भारत को चेताते हुए कहा गया था कि अगर स्वास्थ्य सेवाओं में विस्तार नहीं हुआ तो गंभीर बीमारियों से मरने वालों की तादाद में वृद्धि हो सकती है। ये आंकड़े रेखांकित करते हंै कि तमाम प्रयासों के बावजूद भी देश में अभी स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर नहीं हुई हैं। एक आंकड़े के मुताबिक भारत में प्रतिदिन तकरीबन साढ़े तीन करोड़ लोग डाॅक्टरों के पास स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों के निदान के लिए जाते हैं। इसमें टीबी मरीजों की संख्या सर्वाधिक होती है। इस तरह देखें तो भारत विश्व की सर्वाधिक बीमारियों का बोझ उठाने वाले देशों में शुमार हो चुका है। आंकड़ों के मुताबिक विश्व की कुल 7.3 अरब की जनसंख्या के मुकाबले भारत की 1.3 अरब की आबादी में सालाना विश्व भर में होने वाली मौतों का 18 प्रतिशत मौतें भारत में हो रही हैं। कस्बों और शहरों में तो हालात और अधिक बदतर है। यहां न तो डाॅक्टर हैं और न ही अस्पताल। भला ऐसे में टीबी पीड़ित मरीजों का इलाज कैसे होगा। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि सत्तारुढ़ राजनीतिक पार्टियां चुनाव अभियान में जितना रकम खर्च करती हैं अगर उसका एक हिस्सा भी टीबी पर नियंत्रण की योजनाओं में लगाया जाए तो टीबी के विरुद्ध जंग को फतह किया जा सकता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो सरकार को दूसरे गैर-जरुरी खर्चों में कटौती करके सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित परियोजनाओं को पर्याप्त धन मुहैया कराना चाहिए। इसलिए और भी कि धन की कमी की वजह से टीबी से आधी-अधूरी लड़ाई लड़ी जा रही है जो बेहद ही खतरनाक है। अच्छी बात यह है कि केंद्र की मौजूदा सरकार देश के लोगों के स्वास्थ्य के संदर्भ में सकारात्मक दृष्टिकोण अपना रही है। दो वर्ष पूर्व आयुष्मान भारत योजना का एलान स्वास्थ्य सुरक्षा की दिशा में एक क्रांतिकारी पहल है। इस योजना के जरिए देश के करोड़ों गरीब नागरिको को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध हुआ है। इस योजना के तहत लोग सरकारी व निजी अस्पतालों में 5 लाख रुपए तक अपना इलाज करा करा रहे हैं और इलाज के खर्च का भार सरकार उठा रही है। इसका सुखद पहलू यह है कि इस योजना का लाभ टीबी रोग से ग्रसित उन गरीब लोगों को भी मिल रहा है जिनके लिए निजी अस्पतालों में इलाज कराना संभव नहीं है। उचित होगा कि केंद्र व राज्य सरकारें आयुष्मान योजना की तरह अन्य स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं को आकार दें ताकि टीबी जैसे गंभीर रोगों पर प्रभावी नियंत्रण लग सके। इसके लिए आवश्यक है कि सरकारें ठोस रोडमैप तैयार करंे और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे अन्य निजी स्वास्थ्य संगठनों को भी साथ जोड़े ताकि इस खतरनाक बीमारी से निजात पाया जा सके।

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