भारतीय गणतंत्र की चुनौतियां

1
461

अरविंद जयतिलक

26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ। कैबिनेट मिषन योजना (1946) के तहत ब्रिटिश सरकार ने भावी भारत के संविधान के लिए संविधान सभा के गठन की मंजूरी दी। 9 दिसंबर 1946 को डा0 सचिदानन्द सिंहा की अध्यक्षता में संविधान सभा की पहली बैठक हुई और डा. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष चुने गए। 13 दिसंबर 1946 को पं0 जवाहर लाल नेहरु ने संविधान सभा में उद्देश्य प्रस्ताव रखा और स्पष्ट किया कि भारत एक पूर्णतया स्वतंत्र एवं प्रभुतासंपन्न गणराज्य होगा। 24 जनवरी 1950 को डा. राजेंद्र प्रसाद भारत संघ के प्रथम राष्ट्रपति बने और 26 जनवरी 1950 को भारत ने संसार को एक नए गणराज्य के गठन की सूचना दे दी। संविधान की भावना के अनुरुप आज भारत एक प्रभुतासंपन्न गणतंत्रात्मक धर्मनिरपेक्ष समाजवादी राज्य है। देश में संविधान का शासन है। संसद सर्वोच्च है। देश स्वतंत्र होने के बाद प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने कहा था कि हमें अपने राष्ट्रीय लक्ष्य के बारे में गलतफहमी नहीं रखनी चाहिए। हमारा उद्देश्य एक शक्ति शाली, स्वतंत्र और जनतंत्री भारत है। इसमें प्रत्येक नागरिक को समान स्थान, विकास और सेवा के लिए समान अवसर मिलेगा। भारत में अलग रहने की नीति, छुआछुत, हठधर्मिता और मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण का स्थान नहीं होगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या आजादी के साढ़े छः दशक बाद हम इन लक्ष्यों को हासिल कर पाएं हैं? क्या समाज में व्याप्त छुआछुत और शोषण को मिटाया जा सका है? क्या हाशिये पर खड़े लोगों को वाजिब अधिकार मिला है? क्या गैर-बराबरी खत्म हुई है? क्या महिलाओं के प्रति समाज के नजरिए में बदलाव आया है? क्या भारत शक्ति शाली और जनतंात्रिक राष्ट्र के रुप में स्थापित हुआ है? क्या देश की आंतरिक और वाह्य सुरक्षा मजबूत हुई है? क्या देश आतंकवाद और नक्सलवाल से निपटने में समर्थ हुआ है? ढेरों ऐसे सवाल हैं जो आजादी के साढ़े छः दशक बाद भी मौंजू बने हुए हैं। दो राय नहीं कि इन साढ़े छः दशक में भारत ने भरपूर उन्नति की है। कृषि की उत्पादकता बढ़ी है और उद्योग-धंधों का विस्तार हुआ है। शिक्षा, विज्ञान व संचार के क्षेत्र में बुलंदी को छुआ है और सामाजिक सुरक्षा व सेवाओं का दायरा बढ़ा है। लेकिन क्या यह सच नहीं है कि आज भी जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, नक्सलवाद, अलगाववाद, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, गरीबी, भूखमरी और बेरोजगारी जैसी समस्याएं बरकरार हैं? क्या यह सच नहीं है कि आज भी देश की एक बड़ी आबादी जीने के मूलभूत सुविधाओं मसलन रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं से महरुम है? यह तथ्य है कि देश में 30 करोड़ लोग ऐसे हैं जो गरीबी रेखा से नीचे हैं। मैकेंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट (एमजीआइ) की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में बुनियादी सुविधाओं से महरुम 68 करोड़ लोग ऐसे हैं जो जीवन की आठ सुविधाएं यानी खाद्य, उर्जा, आवास, पेयजल, स्वच्छता, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं सामाजिक सुरक्षा इत्यादि से वंचित हैं। यह स्थिति तब है जब देश में आर्थिक सुधार और गरीबी उन्मूलन से जुड़ी ढे़र सारी परियोजनाएं मसलन सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना, स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना, प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना, अत्योदय अन्न योजना और मनरेगा योजना चल रही हैं। विश्व बैंक ने ‘गरीबों की स्थिति’ नाम से जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया में करीब 120 करोड़ लोग गरीबी से जुझ रहे हैं, जिनमें से एक तिहाई संख्या भारतीयों की है। स्वास्थ्य के मोर्चे पर भी स्थिति दयनीय है। हाल ही में पुणे स्थित चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन तथा नई दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट आॅफ जिनेमिक्स एंड इंटिग्रेटेड बायोलाॅजी की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि भारत की आधी से अधिक आबादी गैर-संक्रामक रोगों से ग्रस्त है। प्रतिदिन साढ़े तीन करोड़ लोग डाॅक्टरों के पास स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों के निदान के लिए पहुंच रहे हैं। महिलाओं की स्थिति तो और भी खराब है। सेव द चिल्ड्रेन संस्था की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत मां बनने के लिहाज से दुनिया के सबसे खराब देशों में शुमार है। 80 विकासशील देशों में उसे 76 वां स्थान प्राप्त है और यहां हर वर्ष लाखों माताएं प्रसव के दौरान दम तोड़ रही हैं। एक आंकड़े के मुताबिक दवा और उचित इलाज के अभाव में 20 वर्ष से कम उम्र की 50 फीसदी महिलाएं प्रसव के दौरान ही दम तोड़ देती हैं। एक आंकड़े के मुताबिक देश में 74000 मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और लगभग 21066 आंग्लिजरी नर्स मिडवाइफस् की कमी है। मैदानी इलाकों में एक हजार की आबादी पर एक आशा कार्यकर्ता और पांच हजार की आबादी पर एक एएनएम होना चाहिए। लेकिन इसका अभाव है। महिलाएं लैंगिक असमानता की भी शिकार हैं। संयुक्त राष्ट्र की ‘द वल्र्डस वीमेन 2015’ की रिपोर्ट से उद्घाटित हुआ है कि भारत में पांच साल से कम उम्र की लड़कियों की मौत इसी उम्र के लड़कों की तुलना में ज्यादा होती है। रिपोर्ट के मुताबिक पांच साल से कम उम्र में मौत के मामले में भारत का लिंगानुपात सबसे कम है। यह अनुपात 93 का है। यानी अगर पांच साल की उम्र से पहले 93 लड़कों की मौत होती है तो इसी आयु में 100 लड़कियों की मौत होती है। महिलाओं की भागीदारी पर नजर डालें तो सरकार हो या संसद, विधानसभा हो या विधानपरिषदें, उच्च न्यायालय हो या उच्चतम न्यायालय, आईएएस हों या बैंक कर्मचारी सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों में फैसले लेने वाले उच्च पदों पर महिलाओं की हिस्सेदारी उनकी आबादी की तुलना में बहुत कम है। केंद्रीय सांख्यिकीय एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की रिपोर्ट पर गौर करें तो केंद्रीय मंत्रिपरिषद में महिलाओं की हिस्सेदारी महज 17 फीसद है। इसी तरह लोकसभा के कुल सदस्यों में केवल 11 फीसद सदस्य ही महिलाएं हैं। अगर राज्य विधानसभाओं और विधापन परिषदों में महिलाओं की हिस्सेदारी पर गौर करें तो यह क्रमश:  9 और 6 फीसद है। निःसंदेह पंचायतों में महिलाओं को प्रतिनिधित्व का संवैधानिक अधिकार हासिल है लेकिन असल में प्रतिनिधित्व की लगाम उनके पतियों या अभिभावकों के ही हाथों में कैद है। देश में सख्त कानून के बावजूद भी महिलाओं पर अत्याचार थम नहीं रहे हैं। घरेलू हिंसा, बलात्कार, कन्या भ्रुण हत्या, दहेज-मृत्यु, अपहरण और अगवा, और आॅनर कीलिंग जैसी जघन्य घटनाएं बढ़ रही हैं। यह भी चिंतित करने वाला है कि तमाम प्रयासों के बावजूद भी भ्रष्टाचार और कालेधन पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। पिछले दिनों ट्रांसपरेंसी करप्शन इंटरनेशनल की रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि भारत में भ्रष्टाचार कम होने के बजाए बढ़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक तीन चौथाई लोगों ने स्वीकार किया है कि विगत वर्षों में भ्रष्टाचार में कई गुना वृद्धि हुई है। पिछले दिनों अमेरिकी रिसर्च ग्रुप जीएफआइ की रिपोर्ट में कहा गया कि देश से बाहर कालाधन भेजने के मामले में भारत दुनिया के टाॅप 5 देशों में है। अच्छी बात है कि देश की मौजूदा सरकार भ्रष्टाचार और कालेधन से निपटने के लिए ढे़र सारे उपाय कर रही है। देश में रोजगार सृजन करना भी एक बड़ी चुनौती है। हाल ही में श्रम मंत्रालय की इकाई श्रम ब्यूरो द्वारा जारी ताजा सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में बेरोजगारी की दर 2013-14 में बढ़कर 4.9 फीसद पहुंच गयी है। हालांकि सरकार द्वारा रोजगार सृजन का प्रयास हो रहा है और इस दिशा में पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने स्टार्ट अप कार्यक्रम की शुरुआत की। मुद्रा बैंक योजना से भी लोगों को रोजगार के लिए ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। माना जा रहा है कि इस पहल से देश की सूरत बदलेगी। लेकिन नक्सलवाद, अलगाववाद, आतंकवाद और क्षेत्रीयता जैसी चुनौतियां पहले से सघन हुई है। आज नक्सलवाद से डेढ़ दर्जन से अधिक राज्य पीड़ित हैं लेकिन अभी तक उस पर काबू पाने का कोई ठोस रोडमैप तैयार नहीं किया जा सका है। निःसंदेह आतंकवाद से निपटने की प्रतिबद्धता और सतर्कता बढ़ी है। लेकिन पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद, इस्लामिक स्टेट और अलकायदा जैसे संगठनों ने चुनौतियां बढ़ायी है। आज की तारीख में जम्मू-कश्मीर से लेकर सुदुर पूर्वोत्तर तक देश आतंकवाद और अलगाववाद से झुलस रहा है। देश की सीमाओं पर भी शत्रुओं के पदचाप सुनायी दे रहे हैं। चीन लगातार भारतीय भूमि को अतिक्रमित कर रहा है। यह स्थिति गणतंत्र की अधूरी तस्वीर ही पेश करती है।

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here