एक दिन ये शहर मुझ को अजनबी हो जायेगा

 शादाब जफर ‘‘शादाब’’

पुण्यतिथि:- 10 अगस्त पर विशेष

हर कदम नजर-ए-गम-ए- आवारगी हो जायेगा, एक दिन ये शहर मुझको अजनबी हो जायेगा, हर नफस मरना है तो मरने दे अब ऐ जिन्दगी, तू सलामत है तो जीना भी कभी हो जायेगा। स्वः राम अवतार गुप्ता ‘‘मुज्तर’’ साहब का ये मतला और एक शेर उन की पूरी जिन्दगी की हकीकत ब्यान कर रहा है। यू तो नजीबाबाद के जर्रे जर्रे में बेपनाह मोहब्बत बसी है। इस से जुडे़ लोगो की मोहब्बत के यू तो सैकडो किस्से कहानिया है पर आज आप को उस शख्स के बारे में बताने जा रहा जो एक गैर वतन संडीला (लखनऊ) से नजीबाबाद आकर बसा और नजीबाबाद का होकर रह गयां नजीबाबाद का साथ छूटा तो बस मरने के बाद। पर आज भी रामअवतार मुज्तर हम नजीबाबाद वालो के दिलो में खुशबू की तरह बसे है। अपने वतन जहॅागीराबाद के एक छोटे से गॉव सांखनी से हिजरत करते वक्त रोटी की जरूरत जब उन्हे नजीबाबाद रेलवे डिपार्टमेन्ट में सुईचमैन के ओहदे पर लेकर आ रही थी तब पलट कर उन्होने जब अपने उस गॉव को देखा होगा तो यकीनन उन के मुह से ये दो शेर तभी निकले होगे। यू तो स्वः मुज्तर साहब से मेरा ताल्लुक उस वक्त से है जब में अदब की दुनिया में अपनी जबान की तुतलाहट दूर कर रहा था। मरहूम ने कदम कदम पर मेरी रहनुमाई करने के साथ साथ मेरे शेरो को सुनकर कभी दाद ओ तहसीन से नवाजा तो कभी मेरे कलाम पर इस्लाह फरमाकर मेरी हौसला अफजाई की। उन्ही कि कुरबत थी की मोहतरम शकील रहमानी साहब ने मुझे गालिब एकेडमी का जनरल सेक्रेट्री बनाया लगभग छः साल तक मैने मुज्तर साहब की सदारत में गालिब एकेडमी की दिलो जान से खिदमत की। इन छः सालो के दौरान मुझे मुज्तर साहब को बहुत करीब से देखने समझने का मौका मिला। मुज्तर साहब के शेरो में अभिव्यक्ति बिजली की तरह कौंध कर गायब हो जाती है वह धूप की तरह नही फैलती बल्कि ऑखो को चकाचौंध कर के ओझल हो जाती है लेकिन ओझल होते होते भी एक ऐसा एहसास दे जाती है जो सुनने वाले की अनुभूतियो में अपना स्थान बना लेती है।

एक गरीब परिवार में जन्मे मुज्तर साहब के जदीदियत पसंद अशआरो ने अक्सर लोगो के दिलो को झिंझोड कर रखने के साथ साथ दिलो दिमाग में जिन्दगी की हरारत पैदा कर दी। इन की शायरी में ज्यादातर इन्सान, दोस्ती, वतनपरस्ती, भाईचारा, अमनो इत्तेहाद, जिन्दगी कि तल्खिया देखने को मिलती रही है। यू तो मुज्तर साहब जिन्दगी भर खुद से और तन्हाई से लडते रहे। और अपनी खाली जिन्दगी में बच्चो की कमी शिद्दत से महसूस करते रहे शायद अकेलापन ही उन्हे अदब की दुनिया में ले आया। खुदा की रजा में राजी होकर उन्होने लब्जो को गोद तो ले लिया पर काफी अरसे तक उन्होने इस राज को पोशीदा रखा। आखिर एक दिन ये राज दुनिया पर खुल कर ऊर्द्व अदब को एक बेषकीमती हीरा मिलना था या यू कहा जाये कि खुदा कि कुछ ऐसी ही मर्जी थी उस जमाने के मशहूर उस्ताद शायर हजरत नजर संदीलवी का भेजा एक लिफाफा मुज्तर संदीलवी के नाम जब नजीबाबाद पहूचा कर रेलवे स्टेषन मास्टर को मिला तो तबीयत से शायर नजीबाबाद के स्टेशन मास्टर साहब ने मुज्तर साहब से सारा माजरा पूछा मुज्तर साहब ने कहा नजर साहब मेरे उस्ताद है और इस लिफाफे में मेरी गजल उस्ताद ने इस्लाह कर के भेजी है। मुज्तर साहब के शायर होने का राज उस दिन खुला। राम अवतार मुज्तर साहब बचपन से ही तबीयत से बेहद हस्सास थे। हमेशा गुमसुम रहने वाला ये शख्स कुछ ही दिनो में ऊर्द्व अदब का बेशकीमती हीरा बनकर मशहूर शोरा की जमात में शामिल हो गया जिसने भी इस हीरे की चमक देखी वो तारीफ करे बिना नही रह सका। आज अदब में जो बेअदबी का माहौल चल रहा है मुज्तर साहब उस से हमेशा अछूते रहे। फरिश्ता सिफ्त ये इन्सान मौहब्बत का भूखा होने के साथ साथ अमन पसन्द और छुपते छुपाते जरूरत मन्द लोगो कि पैसो से मदद भी करता था। बडो को इज्जत छोटे से प्यार करना उन की रोज मर्राह की जिन्दगी में शामिल था। दूर से देखकर मुस्कुरा देना इन की आदत में शामिल था।

बैहैसियत शायर नजीबाबाद में रूसवा होने के बाद इश्क और मुश्क की तरह उन की शायरी की खुश्बू नजीबाबाद के अदीबो और अदबी हल्को तक पहुॅने लगी। इन कि शायरी की महक जब गालिब एकेडमी नजीबाबाद के सदर आली जनाब शौक मानवी साहब के कानो तक पहुॅची तो वो इन की शायरी और शख्सीयत से बहुत ज्यादा मुतासिर हुए। शौक साहब ने ऐकेडमी के सरपरस्त, शायर और मुजाहिदे आजादी जनाब शकील रहमानी साहब और जफर रहमानी साहब से मुज्तर साहब की ऐसी मुलाकात कराई जो आज उन के मरते दम तक कायम रही। दरअसल मुज्तर साहब अव्वल दर्ज की रवादारी के साथ ही अपने दोस्तो के साथ मुखलिसाना व मशफिकाना रवैया रखते थे। नजीबाबाद में मुज्तर नाम का सूरज जब उदय हुआ उस वक्त यहॅा इल्मो फन उरूज पर था मरहूम उस्ताद शायर अख्तर साबरी, शकील रहमानी, मक्फी साहब, इरशाद अहमद इरशाद, इशरत जमा खॉ, शमीमुल कादरी, अयाज खा साहब, साकिब, माहिर मण्डावरी, जफर रहमानी जैसे दानिशवरो की खुशबू से नजीबाबाद की सरजमी महक रही थी। ऐसे में इन दानिषवरो के बीच राम अवतार मुज्तर ने अपनी एक अलग पहचान बना कर ये साबित किया कि उन की शायरी में भी दम है। मुज्तर साहब के लिखे गीत आकाशवाणी नजीबाबाद से समय समय पर प्रसारित होते रहे है पिछले दिनो इन का एक काव्य संग्रह ऊर्द भाषा में ‘‘सीपियो में समन्दर’’ नाम से प्रकाशित हुआ था जिसे ऊर्द अदब में काफी नाम मिला। पिछले दिनो मुम्बई से प्रकाषित ऊर्द की मशहूर अदबी पत्रिका ‘‘षायर’’ ने जुलाई 2010 के शुमारे में मुज्तर साहब पर नम्बर जारी कर ये साबित कर दिया कि हिन्दुस्तान के शोरा हजरात में उन का श्ुमार पहली सफ के शोराओ में बिलयकी किया जाता है।

अपने करम फरमा माहिर मण्डावरी और शमीमुल कादरी की मौत पर फूट फूट कर रोने वाले राम अवतार मुज्तर साहब 10 अगस्त 2010 को हम सब को रोता बिलखता छोड चुपचाप इस दुनिया से उस दुनिया में जा बसे और पीछे छोड गये अपनी वो शायरी जिस से जमाना बरसो बरस फैजयाब होता रहेगे बेहद संजीदगी से जिन्दगी जीने वाले मुज्तर साहब आज हमारे बीच नही रहे पर उन का छोडा गया कलाम ताउम्र हमारे दिलो में उन्हंे जिन्दा रखेगा।

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