संदर्भः-अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री नजमा हेपतुल्ला का बयान
प्रमोद भार्गव
यह अच्छी बात है कि अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री श्रीमती नजमा हेपतुल्ला ने मुस्लिम समुदाय के लोगों को परिवार नियोजन अपनाने की नसीहत दी है। शिमला में आयोजित एक कार्यक्रम में नजमा ने कहा कि बढ़ती आबादी देश की प्रमुख समस्याओं में से एक है। इसलिए मुस्लिमों का भी कर्तव्य बनता है कि वे खुले दिमाग से परिवार नियोजन अपनाएं। इस पर अमल करने से इसी समुदाय का भला होगा। क्योंकि ऐसा करने से ज्यादातर मुस्लिम परिवार,अल्पसंख्यकों के हितों के लिए चलाई जा रही लोक-कल्याणकारी परियोजनाओं से जुड़ जाएंगे। इसे न अपनाने से गरीबी बढ़ती हैं और परिवार में अशिक्षा बनी रहती है। नजमा ने मदरासों में पढ़ाई जा रही तालीम में भी पारदर्शिता अपनाने पर जोर दिया है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत में आबादी की बढ़ती दर बेलगाम है। 2011 के जनगणना के हासिलों से पता चलता है कि बढ़ती आबादी तमाम विषमताओं का भी पर्याय बन रही है। आबादी का बढ़ता महत्व दक्षिण भारत की बजाय उत्तर भारत में ज्यादा है,क्योंकि इन इलाकों में मुस्लिम आबादी परिवार नियोजन नहीं अपना रही है। लैंगिक अनुपात भी लगातार बिगड़ रहा है। देश में 62 करोड़ 37 लाख पुरूष और 58 करोड़ 65 लाख महिलाएं हैं। मसलन 1 हजार पुरुषों पर 930 महिलाएं है। शिशु लिंगानुपात की दृष्टि से प्रति हजार बालकों की तुलना में महज 912 बालिकाएं हैं। हालांकि 15वीं जनगणना के सुखद परिणाम आए हैं। जनगणना वृद्धि दर में 3.96 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। ऐसे में यदि धर्म,जाति और क्षेत्र निरपेक्ष सोच विकसित होती है तो आबादी पर नियंत्रण ज्यादा असरकारी ढंग से हो सकता है।
इस परिप्रेक्ष्य में यहां असम के डाॅ.इलियास अली के जागरूकता अभियान का जिक्र करना जरूरी है। डाॅ. अली गांव-गांव जाकर मुसलमानों में अलख जगा रहे हैं कि इस्लाम एक ऐसा अनूठा धर्म है,जिसमें आबादी पर काबू पाने के तौर-तरीकों का ब्यौरा दर्ज है। इसे ‘अजाल‘ कहा जाता है। इसी बिना पर मुस्लिम देश ईरान में परिवार नियोजन अपनाया जा रहा है। यही नहीं वहां परिवार नियोजन की जरूरत के प्रचार-प्रसार की जबावदारी धार्मिक नेताओं को सौंपी गई है। ये नेता ईरानी दंपत्तियों के बीच कुरान की आयतों की सही व्याख्या कर लोगों को आबादी पर काबू पाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
डाॅ.इलियास अली चिकित्सा महाविद्यालय गुहाटी में प्राघ्यापक हैं। वे प्रवृत्ति से धार्मिक हैं। डाॅ.अली के विचारों से प्रभावित होकर ही असम सरकार ने उन्हें खासतौर से मुस्लिम बहुल इलाकों में परिवार नियोजन अपनाने के सिलसिले में जागरूकता जगाने की कमान सौंपी है। डाॅ. अली जागृती के इस अभियान की शुरूआत केरल के साक्षरता अभियान से करते हैं। जहां सभी धर्मावलंबियों ने समान भाव से साक्षरता के प्रति जिज्ञासा जताई और साक्षरता कक्षाओं में हिस्सा लेकर साक्षर हुए। नतीजतन केरल का मुस्लिम समाज भी जनसंख्या नियंत्रण में बराबर की भागीदारी कर रहा है।
इस दिशा में सार्थक पहल करते हुए केरल राज्य ने एक ऐसा कानून का मसौदा तैयार किया है,जो किसी नागरिक को धर्म या जाति के आधार पर बच्चे पैदा करते जाने की छूट नहीं देता। इस नजरिए से केरल सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘वुमेन कोड बिल 2011‘ को जनसंख्या नियंत्रण की दृष्टि से एक असरकारी कानून माना जा रहा है। इस कानून का प्रारूप न्यायाधीश वी आर कृष्णन अय्यर की अघ्यक्ष्ता वाली 12 सदस्ीय समिति ने तैयार किया है। मसौदे में प्रावधान है कि किसी नागरिक को धर्म,जाति,क्षेत्र और भाषा के आधार पर परिवार नियोजन से बचने से छूट नहीं मिलेगी। साथ ही गर्भ निरोधक संबंधी उपायों की जानकारी और गर्भपात की निशुल्क चिकित्सकीए सुविधा भी राज्य सरकार हासिल कराएगी। हालांकि दो मर्तबा विधानसभा पटल पर रखे जाने के बावजूद यह कानून अभी तक पारित नहीं हो पाया है।
शायद ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी केंद्र सरकार के मंत्री ने सीधे मुस्लिम समुदाय को परिवार नियोजन अपनाने की सलाह बिना किसी संकोच के दी है। अन्यथा पूर्व केंद्र सरकारें अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का ही छद्म राजनीतिक खेल खोलती रही हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने तो राज्यों को भेजे एक पत्र में हवाला दिया था कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रो में मुस्लिम पुलिसकर्मियों,स्वास्थ्यकर्मियों और शिक्षकों की तैनाती को तरजीह दी जाए। कुछ इसी तर्ज का फरमान इसी सरकार में अल्पसंख्यक आयोग के अघ्यक्ष रहे अब्दुल्ल रहमान अंतुले ने दिया था। उनका कहना था कि अब देश के 90 जिलों में मुसलमानों के लिए सुविधाएं और सरकारी नौकरियां हासिल कराई जाएंगी। मुस्लिम बहुल आबादी से जुड़े 330 नगरों और कस्बों में भी मुसलमानों को अतिरिक्त नागरिक सुविधाएं और आर्थिक अवसर मुहैया कराए जाएंगे। इन थोथी घोषणाओं पर थोड़ा बहुत ही अमल हुआ हो,ऐसी जानकारी तो देखने में नहीं आई,लेकिन तुष्टिकरण के ये छलावे बोट बैंक की राजनीति करने के जरूर बहाने लगते हैं।
दरअसल लोकतांत्रिक संवैधानिक व्यवस्था में इसी तरह की कवायदें ही बेमानी हैं। शासन-प्रशासन के स्तर पर संविधान सम्मत समान्य सिद्धांत की मूल भावना को खारिज नहीं किया जा सकता है। कोई भी सरकारी कर्मचारी केंद्र या राज्य सरकार का प्रतिनिधि होता है। किसी जाति या धर्म का नहीं। हिंदू आरक्षक,मुस्लिम शिक्षक,सिख स्वास्थ्यकर्ता अथवा ईसाई रेलकर्मी जैसा कोई भी पद किसी विभाग में नहीं होता है। इस तरह के अनर्गल बयान देश की राश्ट्रीय एकता अखंडता और धर्म-निरपेक्ष स्वभाव को ठेस पहुंचाते हैं।
समता और समरता भिन्न समुदायों में बनाए रखने की दृष्टि से नजमा हेपतुल्ला की सलाह बेहद महत्वपूर्ण है। उनकी नसीहत आबादी नियंत्रण के उपायों तक ही सीमित नहीं रही। उन्होंने मदरसा शिक्षा में भी पारदर्शिता लाने पर जोर दिया। उनका कहना था कि मदरासों में मजहबी तालीम दी जाती हैं,लेकिन इसे लेकर कोई शक पैदा होता है तो उसे दूर करने की जरूरत है और यदि कहीं देशहित के खिलाफ शिक्षा दी जा रही है तो उसे सजा देने से भी गुरेज नहीं करना चाहिए। मुस्लिम समुदाय को उनके ही वर्ग के किसी नेता ने ऐसी जमीनी नसीहतें दी हों, कम ही देखने में आता हैं। बहरहाल मुस्लिम समुदायों को जरूरत है कि वह नजमा की नसीहतों को उदारतापूर्वक अपनाने की दिशा में आगे बढ़े।