शरद पूर्णिमा का महत्व

डा. राधेश्याम द्विवेदी

शरद पूर्णिमा का महत्व डा. राधेश्याम द्विवेदी दीपावली से 15 दिन पहले दीपावली की तरह एक और महत्वपूर्ण शरद पूर्णिमा की रात आती है जिसका महत्व दीपावली से तनिक कम नहीं है। प्राचीन काल से शरद पूर्णिमा को बेहद महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। इसी दिन से हेमंत ऋतु की शुरुआत होती है।, इस रात में लक्ष्मी पूजन करके रात्रि जागरण करना धन समृद्धि दायक माना गया है। इस रात्रि के उस पहर का जिसमें 16 कलाओं से युक्त चंद्रमा अमृत की वर्षा धरती पर करता है। वर्षा ऋतु की जरावस्था और शरद ऋतु के बाल रूप का यह सुंदर संजोग हर किसी का मन मोह लेता है। रात्रि 12 बजे होने वाली इस अमृत वर्षा का लाभ मानव को मिले इसी उद्देश्य से चंद्रोदय के वक्त गगन तले खीर या दूध रखा जाता है जिसका सेवन रात्रि 12 बजे बाद किया जाता है। मान्यता तो यह भी है कि इस तरह रोगी रोगमुक्त भी होता है। इसके अलावा खीर देवताओं का प्रिय भोजन भी है। लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा :- पूर्णिमा तिथि के स्वामी भगवान विष्णु और माने जाते हैं इसलिए पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है। शरद पूर्णिम की रात देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा के लिए उत्तम माना गया है। ऐसी मान्यता है कि इस रात की धवल चांदनी में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण के लिए आते हैं। लोकमान्यता है कि जो लोग इस रात में सोते रह जाते हैं मां लक्ष्मी उनके द्वार से ही लौट जाती हैं। इसीलिए शरद पूर्णिमा की रात को जागरण की रात भी कहा गया है। इस दिन किए जानेवाले व्रत को कोजागरा व्रत कहते हैं। इस दिन व्रत और रात में पूजन करने से मां लक्ष्मी की कृपा से सभी कर्ज शीघ्र उतर जाते हैं और व्यक्ति की आर्थिक स्थिति लगातार मजबूत बनती है। पूजा पाठ की विधि :- लक्ष्मी माता और भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए लाल कपड़ा या पीला कपड़ा चैकी पर बिछाकर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमा इस पर स्थापित करें। भगवान की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाएं। इसके बाद गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत और रोली से तिलक लगाएं। तिलक करने के बाद मीठे ( सफेद या पीली मिठाई ) से भोग लगाएं। लाल या पीले पुष्प अर्पित करें। माता लक्ष्मी को गुलाब का फूल अर्पित करना विशेष फलदाई होता है। इसके बाद पूरी रात (तड़के 3 बजे तक, इसके बाद ब्रह्ममुहूर्त शुरू हो जाता है) जागते हुए विष्णु सहस्त्रनाम का जप, श्रीसूक्त का पाठ, भगवान श्रीकृष्ण की महिमा, श्रीकृष्ण मधुराष्टकम् का पाठ और कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। पूजा शुरू करते समय सबसे पहले गणपति की आरती जरूर करें। लक्ष्मीजी की प्रतिमा के अलावा कलश, धूप, दुर्वा, कमल का पुष्प, हर्तकी, कौड़ी, आरी (छोटा सूपड़ा), धान, सिंदूर व नारियल के लड्डू प्रमुख होते हैं। जहां तक बात पूजन विधि की है तो इसमें रंगोली और उल्लू ध्वनि का विशेष स्थान है। इस प्रकार जगतपालक और ऐश्वर्य प्रदायिनी की पूजा करने से सभी मनवांछित कार्य पूरे होते हैं। साथ ही हर तरह के कर्ज से मुक्ति मिलती है। शरद पूर्णिमा मुहूर्त:- इस बार शरद पूर्णिमा 24 अक्टूबर बुधवार को है। 10 बजकर 37 मिनट से पूर्णिमा तिथि लग रही है जिससे निशीथ काल में पूर्णिमा तिथि होगी। शास्त्रों के मतानुसार जिस दिन पूर्णिमा तिथि प्रदोष काल में यानी शाम के समय होती है उसी दिन शरद पूर्णिमा मनायी जानी चाहिए। 24 तारीख को शरद पूर्णिमा पूरे दिन और रात के 10 बजकर 15 मिनट तक है इसलिए 24 तारीख को शरद पूर्णिमा मनाना शास्त्रों के नियम के अनुसार उचित है। 24 तारीख की शाम में 5 बजकर 40 मिनट से 5 बजकर 45 मिनट तक का समय बहुत ही शुभ रहेगा। इसके बाद 9 बजकर 24 मिनट से रात 11 बजकर 37 मिनट तक शुभ मुहूर्त रहेगा।

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