शानदार भारत के बढ़ते कदम


फिलीपींस की राजधानी मनीला में हुए आसियान देशों के सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प और भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति से इस सम्मेलन का महत्व बढ़ गया। भारत, जापान, ऑस्टे्रलिया और अमरीका ने इस सम्मेलन में चतुष्कोणीय नौसैनिक सहयोग के रास्ते पर चलने का महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक निर्णय लिया है। इस निर्णय के दूरगामी परिणाम निकलेंगे और यह निर्णय वास्तव में दूर भविष्य को लक्ष्य में रखकर ही लिया गया है। पी.एम. मोदी ने एक बार पुन: सिद्घ किया है कि वह अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत का सम्मान बढ़ाने के प्रति तो कृतसंकल्प हैं ही साथ ही देश की सुरक्षा को मिलने वाली सम्भावित चुनौतियों के प्रति भी वह सजग हैं। वास्तव में इस समय गुटनिरपेक्षता का समय चला गया है और ना ही अब गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का कोई औचित्य रहा है। यह उसी समय महत्वपूर्ण था जब अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में दो शक्तियां अमेरिका और रूस अपने-अपने खेमों को मजबूत करने के लिए अपने दोस्त ढ़ूंढती थीं। तब बड़ी संख्या ऐसे देशों की थी जो किसी भी खेमे में जाना उचित नहीं मानते थे। ऐसे में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का नेता बनकर भारत ने ऐसे देशों की आवाज बनने का काम किया था। निस्सन्देह इसके लिए नेहरूजी और इंदिरा जी की बुद्घिमत्ता और उनके नेतृत्व को प्रशंसा मिलनी ही चाहिए।
पर आजकल परिस्थितियां बदल गयी हैं। अब रूस का पलड़ा हलका हो चुका है और अमेरिका की दादागीरी चल रही है। जिसे रोकने के लिए चीन, पाकिस्तान जैसे अपने साथियों के साथ मैदान में दमखम ठोक रहा है, पाकिस्तान दोरंगी चाल चल रहा था। वह आतंकवाद पर विश्व समुदाय के साथ खड़ा होने का नाटक करता था तो अपने ही भूभाग पर आतंकियों को प्रशिक्षण दे रहा था।
इतनी ही नहीं जिस अमेरिका के हथियारों को वह खरीद रहा था और जिसके साथ वह कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होने का नाटक कर रहा था-उसी अमेरिका के विरूद्घ चुपचाप चीन के साथ गलबहियां कर रहा था।
अब अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने पाकिस्तान को सीधा करने का मन बना लिया लगता है। अमेरिका पहली बार पाकिस्तान के विषय में स्पष्ट भाषा का प्रयोग कर रहा है। बात साफ है कि पाकिस्तान के पीछे खड़े चीन को अमेरिका साफ-साफ देख रहा है। इधर भारत को भी ये ही समस्या है कि उसकी सारी समस्याओं के पीछे पाकिस्तान और उसके पीछे चीन खड़ा होता है। ऐसे में चीन पर भारत का भी नजरिया लगभग वही है जो अमेरिका का है। यह वही चीन है जो बार-बार के समझाने पर और कहने-सुनने पर भी यूएन की सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सीट की दावेदारी में बार-बार अड़ंगा डालता है। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर वह भारत को नीचा दिखाने के लिए आतंकवाद पर भी अस्पष्ट है। ऐसे में चीन को लेकर भारत किसी प्रकार की भ्रान्ति में नहीं रह सकता।
दूसरी ओर अन्तर्राष्ट्रीय जगत में इस समय उत्तरी कोरिया जिस प्रकार एक तानाशाह की छत्रछाया में उभर रहा है वह वर्तमान विश्व के लिए भस्मासुर हो सकता है। उसके दृष्टिगत भी इस समय विश्वशान्ति को खतरा है और विश्व नेता इस समय अपने-अपने स्थायी मित्र खोजने में लगे हैं। कब क्या हो जाए?-कुछ कहा नहीं जा सकता। इस समय छोटे-मोटे देशों को साथ लगाकर उनकी आवाज बनने का समय नहीं है-अपितु अपनी आवाज अपने आप बनकर सबको यह संदेश देने की आवश्यकता है कि हम अपनी सुरक्षा करने में सक्षम है। साथ ही यदि किसी अन्य देश पर भी किसी प्रकार का अत्याचार करने का प्रयास किसी बड़ी शक्ति ने किया तो उसके विरूद्घ भी एक मजबूत आवाज हमारे पास है। इसी मजबूत आवाज के रूप में भारत, जापान, ऑस्टे्रलिया और अमेरिका के उपरोक्त चतुष्कोणीय नौसैनिक सहयोग को देखना चाहिए।
वैश्विक आतंकवाद इस समय विश्व की ज्वलंत समस्या है और यह समस्या सुलझने के स्थान पर उलझती ही जा रही है। इसे कुछ लोगों ने तीसरे विश्व युद्घ की चिंगारियों के रूप में भी देखना आरम्भ कर दिया है। वैश्विक आतंकवाद के इस दानवीय स्वरूप से कोई भी देश अकेला निपटने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में भारत को स्थायी और मजबूत देशों से अपनी दोस्ती करनी ही होगी।
जिस समय विश्व शीतयुद्घ की चपेट में था उस समय के भारत को जिस दृष्टि से देखा जाता था-उस दृष्टि पर चीन के हाथों मिली करारी पराजय भी एक महत्वपूर्ण कारण था। जिससे हमें अधिक सम्मान नहीं मिलता था। पर आज का भारत पंजा लड़ाकर चीन को डोकलाम से भगाने की स्थिति में खड़ा भारत है। स्पष्ट है कि आज एक सक्षम सशक्त और सबल भारत से विश्व मुखातिब है। इस भारत को विश्व ढूढ़ रहा है और यह भारत विश्व की शक्तियों के साथ बराबरी के आधार पर बैठकर बातें करने की अपनी मजबूत स्थिति के कारण निरन्तर आगे बढ़ता जा रहा है। इस आगे बढ़ते भारत को रोकने के लिए बड़े स्तर पर चुनौतियां का जाल बिछाया जा रहा है। जिसे भारत समझ रहा है और यही कारण है कि वह अपनी चुनौतियों को चुनौती देने के लिए ‘मजबूत दोस्त’ बढ़ाता जा रहा है। ‘आसियान’ से भारत पुन: एक मजबूत देश और भरोसेमंद साथी के रूप में उभरा है। चीन जिस प्रकार हिंद महासागर में अपनी सैन्य गतिविधियां बढ़ाता जा रहा था उससे इस क्षेत्र का सैन्य सन्तुलन और सुरक्षा का वातावरण गड़बड़ा रहा था। उस पर रोक लगाने के लिए भारत का सजग रहना अनिवार्य था। इस बदलते हुए वैश्विक परिवेश के साथ अपने आपको यदि ढालेंगे नहीं तो फिर चोट खा सकते हैं। चोट देने वाला भी कोई और नहीं होगा, अपितु वही देश होगा जिसने कभी ‘हिंदी चीनी, भाई-भाई’ का नारा देकर हमारी पीठ में छुरा घोंपने का दुष्टतापूर्ण कार्य किया था।
इस समय विश्व साम्प्रदायिक गुटबन्दी में भी उलझता जा रहा है। ऐसे में तीसरे विश्व युद्घ की अवांछित स्थिति में वही देश अधिक क्षति उठाएंगे-जिनका कोई साम्प्रदायिक गुट विश्वमंचों पर न होगा। उस स्थिति में भारत को अधिक क्षति होगी। अत: भारत का यह दूरगामी निर्णय प्रशंसनीय ही माना जाएगा कि वह इस समय अपनी किसी भी प्रकार की सुरक्षा में से कोई खामी छोडऩा नहीं चाहता। भारत इस समय अपनी अंतरात्मा के आधार पर निर्णय ले रहा है और अंतरात्मा कभी गलत नहीं होती। भारत की अंतरात्मा मरी नहीं है-वह सशक्त और सनातन है उसी शाश्वत और सनातन से ऊर्जा लेेते भारत के नेतृत्व का स्वागत है।
इतनी ही नहीं जिस अमेरिका के हथियारों को वह खरीद रहा था और जिसके साथ वह कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होने का नाटक कर रहा था-उसी अमेरिका के विरूद्घ चुपचाप चीन के साथ गलबहियां कर रहा था।
अब अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने पाकिस्तान को सीधा करने का मन बना लिया लगता है। अमेरिका पहली बार पाकिस्तान के विषय में स्पष्ट भाषा का प्रयोग कर रहा है। बात साफ है कि पाकिस्तान के पीछे खड़े चीन को अमेरिका साफ-साफ देख रहा है। इधर भारत को भी ये ही समस्या है कि उसकी सारी समस्याओं के पीछे पाकिस्तान और उसके पीछे चीन खड़ा होता है। ऐसे में चीन पर भारत का भी नजरिया लगभग वही है जो अमेरिका का है। यह वही चीन है जो बार-बार के समझाने पर और कहने-सुनने पर भी यूएन की सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सीट की दावेदारी में बार-बार अड़ंगा डालता है। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर वह भारत को नीचा दिखाने के लिए आतंकवाद पर भी अस्पष्ट है। ऐसे में चीन को लेकर भारत किसी प्रकार की भ्रान्ति में नहीं रह सकता।
दूसरी ओर अन्तर्राष्ट्रीय जगत में इस समय उत्तरी कोरिया जिस प्रकार एक तानाशाह की छत्रछाया में उभर रहा है वह वर्तमान विश्व के लिए भस्मासुर हो सकता है। उसके दृष्टिगत भी इस समय विश्वशान्ति को खतरा है और विश्व नेता इस समय अपने-अपने स्थायी मित्र खोजने में लगे हैं। कब क्या हो जाए?-कुछ कहा नहीं जा सकता। इस समय छोटे-मोटे देशों को साथ लगाकर उनकी आवाज बनने का समय नहीं है-अपितु अपनी आवाज अपने आप बनकर सबको यह संदेश देने की आवश्यकता है कि हम अपनी सुरक्षा करने में सक्षम है। साथ ही यदि किसी अन्य देश पर भी किसी प्रकार का अत्याचार करने का प्रयास किसी बड़ी शक्ति ने किया तो उसके विरूद्घ भी एक मजबूत आवाज हमारे पास है। इसी मजबूत आवाज के रूप में भारत, जापान, ऑस्टे्रलिया और अमेरिका के उपरोक्त चतुष्कोणीय नौसैनिक सहयोग को देखना चाहिए।
वैश्विक आतंकवाद इस समय विश्व की ज्वलंत समस्या है और यह समस्या सुलझने के स्थान पर उलझती ही जा रही है। इसे कुछ लोगों ने तीसरे विश्व युद्घ की चिंगारियों के रूप में भी देखना आरम्भ कर दिया है। वैश्विक आतंकवाद के इस दानवीय स्वरूप से कोई भी देश अकेला निपटने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में भारत को स्थायी और मजबूत देशों से अपनी दोस्ती करनी ही होगी।
जिस समय विश्व शीतयुद्घ की चपेट में था उस समय के भारत को जिस दृष्टि से देखा जाता था-उस दृष्टि पर चीन के हाथों मिली करारी पराजय भी एक महत्वपूर्ण कारण था। जिससे हमें अधिक सम्मान नहीं मिलता था। पर आज का भारत पंजा लड़ाकर चीन को डोकलाम से भगाने की स्थिति में खड़ा भारत है। स्पष्ट है कि आज एक सक्षम सशक्त और सबल भारत से विश्व मुखातिब है। इस भारत को विश्व ढूढ़ रहा है और यह भारत विश्व की शक्तियों के साथ बराबरी के आधार पर बैठकर बातें करने की अपनी मजबूत स्थिति के कारण निरन्तर आगे बढ़ता जा रहा है। इस आगे बढ़ते भारत को रोकने के लिए बड़े स्तर पर चुनौतियां का जाल बिछाया जा रहा है। जिसे भारत समझ रहा है और यही कारण है कि वह अपनी चुनौतियों को चुनौती देने के लिए ‘मजबूत दोस्त’ बढ़ाता जा रहा है। ‘आसियान’ से भारत पुन: एक मजबूत देश और भरोसेमंद साथी के रूप में उभरा है। चीन जिस प्रकार हिंद महासागर में अपनी सैन्य गतिविधियां बढ़ाता जा रहा था उससे इस क्षेत्र का सैन्य सन्तुलन और सुरक्षा का वातावरण गड़बड़ा रहा था। उस पर रोक लगाने के लिए भारत का सजग रहना अनिवार्य था। इस बदलते हुए वैश्विक परिवेश के साथ अपने आपको यदि ढालेंगे नहीं तो फिर चोट खा सकते हैं। चोट देने वाला भी कोई और नहीं होगा, अपितु वही देश होगा जिसने कभी ‘हिंदी चीनी, भाई-भाई’ का नारा देकर हमारी पीठ में छुरा घोंपने का दुष्टतापूर्ण कार्य किया था।
इस समय विश्व साम्प्रदायिक गुटबन्दी में भी उलझता जा रहा है। ऐसे में तीसरे विश्व युद्घ की अवांछित स्थिति में वही देश अधिक क्षति उठाएंगे-जिनका कोई साम्प्रदायिक गुट विश्वमंचों पर न होगा। उस स्थिति में भारत को अधिक क्षति होगी। अत: भारत का यह दूरगामी निर्णय प्रशंसनीय ही माना जाएगा कि वह इस समय अपनी किसी भी प्रकार की सुरक्षा में से कोई खामी छोडऩा नहीं चाहता। भारत इस समय अपनी अंतरात्मा के आधार पर निर्णय ले रहा है और अंतरात्मा कभी गलत नहीं होती। भारत की अंतरात्मा मरी नहीं है-वह सशक्त और सनातन है उसी शाश्वत और सनातन से ऊर्जा लेेते भारत के नेतृत्व का स्वागत है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here