तेल की बढ़ती कीमतों पर मंत्री का बेतुका बयान

0
128

संदर्भः-पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों पर केंन्द्रीय मंत्री अल्फोंस का बेतुका बयान

प्रमोद भार्गव

एक ओर जहां पेट्रोल एवं डीजल की रोज-रोज बढ़ती कीमतों को लेकर जनता परेशान है, वहीं केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री केजे अल्फोंस ने तेल की कीमतों को लेकर चोंकाने वाला बयान देकर राजनीतिक हलचल को गरमा दिया है। उन्होंने कहा कि जिनके पास कार और बाइक हैं, वे भूखे नहीं मर रहे हैं। यह लोग कर चुकाने में सक्षम हैं, इसलिए हम उन पर कर लगा रहे हैं। गोया, उन्हें कर चुकाना ही होगा। माननीय मंत्री का यह बयान ऐसे समय आया है जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें लगातार घट रही हैं, बाबजूद देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें शिखर पर हैं। साफ है, यदि ये कीमतें इसी तरह बढ़ती रही, तो मंहगाई भी बढ़ती जाएगी। जो आम आदमी की दाल-रोटी को प्रभावित कर सकती है, क्योंकि पेट्रोल-डीजल केवल कार और बाइक चलाने वाले ही नहंीं खरीदतें हैं, बल्कि जिन मालगाड़ियों, ट्रेक्टर और ट्रकों से रोजमर्रा की खान-पान की वस्तुएं यातायात कर दुकानों तक पहुंचाई जाती हैं, उनमें यही महंगा होता तेल डलता है। मंत्रीजी को मालूम होना चाहिए कि ट्रेक्टर से ही खेती होती है और फसलों को मंडियों तक पहुंचाया जाता है। यह ट्रेक्टर डीजल से चलता है। स्वाभाविक है यदि तेल की कीमतें इसी तरह बढ़ती रहीं तो आम आदमी से खान-पान की वस्तुएं दूर होती चली जाएंगी।

विपक्ष ने इस मुद्दे को आम आदमी के प्रति सरकार की असंवेदनशीलता करार दिया है। हालांकि अल्फोंस ने पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में वृद्धि को जायज ठहराने की कोशिष करते हुए बहाना बनाया है कि यह सब गरीबों के कल्याण के लिए किया जा रहा है, इसलिए मजबूरी में अमीरों पर ज्यादा टैक्स लगाने को विवष होना पड़ा है। जबकि सच्चाई यह है कि नौकरशाह से राजनेता बने अल्फोंस को आम आदमी की समस्याओं का अहसास ही नहीं है। इस नसमझी के कारण समस्याओं का निदान तो नहीं होता, उल्टे वे गहरा जाती हैं।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस समय तेल की कीमत 12 साल के बाद सबसे निचले स्तर पर है। बाबजूद भारत में तेल कीमतें रोजाना बढ़ रही हैं। ऐसा केंद्र सरकार द्वारा डीजल और पेट्रोल पर लगातार उत्पादन शुल्क बढ़ाए जाने के कारण हो रहा है। मालूम हो कि सरकार ने नवबंर 2014 और जनवरी 2016 के दौरान 9 बार पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाया। कुल मिलाकर इस दौरान पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क में 11.77 रुपए प्रति लीटर तक और डीजल पर 13.4 रुपए की वृद्धि की गई। शुल्क वृद्धि से सरकार का 2016-17 में उत्पाद शुल्क संग्रह बढ़कर 2.42 लाख करोड़ रुपए हो गया है। सार्वजनिक क्षेत्र की सबसे बड़ी तेल विपणन कंपनी इंडियन आॅयल काॅर्पोरेषन के आंकड़ों के अनुसार, तेल कंपनियां रिफाइनरियों से 22.46 रुपए प्रति लीटर पर तेल उपलब्ध कराती हैं। इस पर विशिष्ट उत्पाद शुल्क 19.73 रुपए प्रति लीटर है। वहीं डीजल का रिफायनरी मूल्य 18.69 रुपए प्रति लीटर की दर से क्रय करने के बाद डीलरों को 23.11 रुपए प्रति लीटर की दर से हासिल कराया जाता है। डीजल पर उत्पाद शुल्क 13.47 रुपए प्रति लीटर है। यदि डीजल-पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क घटा दिया जाए तो उपभोक्ताओं को मंहगा तेल खरीदने से राहत मिलेगी।

दरअसल सरकार उपभोक्ता को राहत दे देती तो उसे कैसे राहत मिलती ? तेल की कीमतों में गिरावट के चलते ही सरकार को बीते वित्त वर्ष के आयात बिल में 6,500 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ है। दूसरी तरफ डीजल-पेट्रोल सस्ता होने से सब्सिडी के रूप में भी सरकार को करीब 900 करोड़ रुपए की बचत हुई है। वहीं ईंधन गैस सब्सिडी पर नियंत्रण के उपायों के चलते सरकार ने करीब पौने दो लाख करोड़ रुपए की बचत की है। नियंत्रण के यही उपाय अब मिट्टी के तेल पर किए जाने वाले हैं। रसोई गैस की तरह कैरोसिन की सब्सिडी भी सीधे लाभार्थी के खाते में भेजने की योजना पर तेजी से काम हो रहा है। फिलहाल यह सब्सिडी सात राज्यों के 33 जिलों में दी जाएगी। इस योजना के तहत राज्य सरकारों को पहले दो वर्षों में 75 फीसदी की रियायत दी जाएगी। तीसरे वर्ष इसे 50 प्रतिशत और चैथे वर्ष में 25 प्रतिशत कर दिया जाएगा। देश की तेल व ईंधन संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भरता कम करने के उपायों में भी सरकार लगी है। इस मकसद पूर्ति के लिए एथनाॅल की खरीद बढ़ाई जा रही है। एथनाॅल पर उत्पाद शुल्क भी समाप्त कर दिया गया है। इस साल डीजल-पेट्रोल में पांच प्रतिशत एथनाॅल मिश्रण का लक्ष्य हासिल कर लेने की उम्मीद सरकार को है। इस उत्पाद से ही 7 से 8 हजार करोड़ का मुनाफा होने की उम्मीद सरकार को है। बाबजूद सरकार है कि उपभोक्ता को राहत देने में कंजूसी बरत रही है। जबकि जब यही भाजपा विपक्ष में थी, तब पेट्रोलियम पदार्थों में मामूली वृद्धि होने पर ही संसद ठप कर देती थी। लेकिन अब बेतुके बोल बोलकर उपभोक्ता को दोषी ठहरा रही है।

पूरी दुनिया में कच्चा तेल वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं की गतिशीलता का कारक माना जाता है। ऐसे में यदि तेल की कीमतों में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है, तो इसका प्रत्यक्ष कारण है कि दुनिया में औद्योगिक उत्पादों की मांग घटी है। इस मांग का घटना इस बात का संकेत है कि समूचे विश्व पर मंदी की छाया मंडरा रही है। दुनिया का एक तिहाई तेल उत्पादन करने वाले ओपेक देशों के समूह में खलबली है। क्योंकि इन देशों की कमाई घटती जा रही है। इस कारण इन देशों के नागरिक औद्योगिक-प्रौद्योगिकी उत्पाद खरीदने की साम्थ्र्य खो रहे हैं। चीन की डांवाडोल हो रही अर्थव्यवस्था का बड़ा कारण यही ओपेक देश हैं। सउदी अरब और ईरान में चला आ रहा तनाव खत्म हो गया है। अमेरिका और यूरोपीय संघ ने ईरान से परमाणु प्रतिबंध हटा लिए हैं। प्रतिबंध हटते ही इन देशों ने अपना तेल बाजार में खपाने में तेजी ला दी है। भारत अब ईरान से सस्ता तेल आयात कर रहा है। इसी दौरान भारत ने अमेरिका से भी तेल आयात का सिलसिला शुरू कर दिया है। भारत ने पहली खेप में अमेरिका से 100 मिलियन डाॅलर मूल्य का 2 मिलियन बैरल कच्चा तेल खरीदा है। यह तेल इस माह के अंत तक ओड़ीसा के पाराद्वीप बंदरगाह पर पहुंच जाएगा। अमेरिका के तेल बाजार में उतरने से भी तेल कीमतों में लगातार गिरावट बनी हुई है।  हालांकि तेल के दामों में भारी गिरावट न केवल भारत के लिए फलदायी रही है, बल्कि राजग सरकार की अर्थव्यवस्था को संजीवनी देने का काम फिलहाल यही गिरावट कर रही है। 2016 के पहले माह में ही तेल के मुल्यों में करीब 16 प्रतिशत की कमी आई है,इस वजह से तेल पानी से भी सस्ता हो गया है। नतीजतन नरेंद्र मोदी सरकार की बल्ले-बल्ले है। बाबजूद यह विडंबना ही है कि तेल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं।

 

कच्चे तेल की गिरती कीमतों के लिए किसी एक कारक या कारण को जिम्मेबार नहीं ठहराया जा सकता है। एक वक्त था जब कच्चे तेल की कीमतें मांग और आपूर्ति से निर्धारित होती थीं। इसमें भी अहम् भूमिका ओपेक देशों की रहती थी। ओपेक देशों में कतर, लीबियां, सऊदीअरब, अल्जीरिया, ईरान, ईराक, इंडोनेशिया, कुबैत, वेनेजुएला, संयुक्त अरब अमीरात और अंगोला शामिल हैं। दरअसल अमेरिका का तेल आयातक से निर्यातक देश बन जाना,चीन की विकास दर धीमी हो जाना, षैल गैस क्रांति, नई तकनीक, तेल उत्पादक देशों द्वारा सीमा से ज्यादा उत्पादन, ऊर्जा दक्ष वाहनों का विकास और इन सबसे आगे बैटरी तकनीक से चलने वाले वाहनों का विकास हो जाने से कच्चे तेल की कीमतें तय करने में तेल निर्यातक देशों की भूमिका नगण्य होती जा रही है। भारत भी जिस तेजी से सौर ऊर्जा में आत्मनिर्भरता की और बढ़ रहा है, उसके परिणामस्वरूप कालांतर में भारत की तेल पर निर्भरता कम होने वाली है। इस्लामिक आतंकवाद और कई देशों में शिया-सुन्नियों के संघर्ष के चलते सीरिया, लीबिया, इराक और अफगनिस्तान में जिस तरह से जीवन बचाने का संकट उत्पन्न हुआ है, उसने सामान्य जीवन तहस-नहस कर दिया है। नतीजतन विस्थापन व शरणार्थी जैसी विकट समस्याएं पैदा हुई हैं। इन हालातों के शिकार लोग वाहनों के इस्तेमाल से वंचित हो गए हैं। बाबजूद इन सस्ती दरों का लाभ देश के उपभोक्ताओं को न देना सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करती है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,031 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress